देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी यानि केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) एक बार फिर अपने कामों और आंतरिक कलह के कारण विवादों के घेरे में है। पीएमओ के अंतर्गत आने वाली सीबीआई को शुरू से ही सरकार द्वारा नियंत्रित किए जाने की बातें सामने आई हैं। पिछले कुछ सालों में सीबीआई के अंदर जो उथल-पुथल की स्थिति बनी है उससे इसकी छवि पर काफी बुरा असर पड़ा है।
क्या है सीबीआई विवाद
सीबीआई के भीतर दो प्रमुख पदों पर नियुक्त अधिकारियों ने एक दूसरे पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए। इन अधिकारियों में सीबीआई चीफ आलोक वर्मा और स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना हैं। राकेश अस्थाना ने सीबीआई प्रमुख आलोक वर्मा पर सतीश सना और मोइन कुरैशी मामले में 2 करोड़ रुपए की रिश्वत लेने का आरोप लगाया तो वहीं दूसरी तरफ आलोक वर्मा ने भी अस्थाना पर 3 करोड़ की रिश्वत लेने का आरोप लगाया। मामला तब और बढ़ गया जब सीबीआई ने भ्रष्टाचार के आरोप में राकेश अस्थाना पर एफआईआर दर्ज करा दी।
इस बीच मुख्य सतर्कता आयोग (सीवीसी) और कैबिनेट सेक्रेटरी को चिट्ठी लिखकर राकेश अस्थाना ने डायरेक्टर वर्मा के खिलाफ हरियाणा में एक ज़मीन के सौदे में गड़बड़ी करने और भ्रष्टाचार के दूसरे मामलों की शिकायत दर्ज करा दी।
राकेश अस्थाना ने सीबीआई की एफआईआर को हाईकोर्ट में चुनौती दी। हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए कुछ दिनों के लिए अस्थाना की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी।
23 अक्टूबर की देर रात पीएमओ ने एक आदेश जारी करते हुए अस्थाना और वर्मा को छुट्टी पर भेज दिया। इसके बाद कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) के हवाले से एक आदेश जारी कर सीबीआई के जॉइंट डायरेक्टर और चौथे नंबर के अधिकारी एम नागेश्वर राव को तत्काल प्रभाव से अंतरिम निदेशक नियुक्त किया गया।
इन सबके बीच आलोक वर्मा ने उनको छुट्टी पर भेजे जाने के मामले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देते हुए केंद्र सरकार पर सीबीआई के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप का आरोप लगाया।
सुप्रीम कोर्ट ने 26 अक्टूबर को केन्द्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) को निर्देश दिया कि केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के निदेशक आलोक वर्मा के खिलाफ दो हफ्तों के भीतर जांच पूरी की जाए।
सीबीआई विवाद पर क्या है सरकार का पक्ष
सरकार का पक्ष रखते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि दोनों अधिकारियों पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे हैं, इसलिए निष्पक्ष जांच करने के लिए एक तीसरे व्यक्ति की ज़रूरत थी। उन्होंने कहा कि जांच पूरी होने तक दोनों अधिकारियों को कार्यभार से मुक्त रखा जाएगा और सरकार ने जो फैसला लिया है वह पूरी तरह से कानूनसम्मत है।
विपक्ष ने सरकार के फैसले को असंवैधानिक बताया और सर्वोच्च न्यायालय का अपमान करने का आरोप लगाया।
12 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
केंद्रीय सतर्कता आयोग ने आलोक वर्मा की जांच की रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में पेश कर दी। कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई की तारीख 16 नवंबर तक के लिए यह कहकर टाल दिया कि पूरी रिपोर्ट पढ़ने के लिए समय चाहिए।
16 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
16 नवंबर को शीर्ष अदालत ने सीवीसी की रिपोर्ट को लेकर सीबीआई निदेशक को निर्देश दिया था कि वो सोमवार यानि 19 नवंबर तक अपना जवाब सीलबंद लिफाफे में दाखिल करें। पिछली सुनवाई में कोर्ट ने यह भी कहा था कि सीवीसी ने अपनी जांच रिपोर्ट में कुछ बहुत ही प्रतिकूल टिप्पणियां की हैं। सुप्रीम कोर्ट कुछ आरोपों की आगे जांच करना चाहता है, जिसके लिए उसे और समय चाहिए।
आपको बता दें 19 नवंबर को सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा ने सीवीसी की रिपोर्ट पर सुप्रीम कोर्ट में अपना जवाब दाखिल किया। आलोक वर्मा ने सोमवार सुबह सुप्रीम कोर्ट से चार बजे तक जवाब दाखिल करने का समय मांगा था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें केवल दो घंटे का समय दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा मामले की सुनवाई मंगलवार को होगी।
गौरतलब है कि सीबीआई निदेशक आलोक द्वारा सीलबंद लिफाफे में अपना जवाब दाखिल करने के बाद 20 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। इस दौरान मंगलवार को मीडिया में लीक कथित दस्तावेजों का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने तल्ख टिप्पणी की।
मीडिया में कथित रूप से लीक दस्तावेजों पर नाराजगी जताते हुए प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘हम नहीं मानते हैं कि आप लोगों में से कोई सुनवाई के लायक है।’ सुप्रीम कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 29 नवंबर के लिए स्थगित कर दी है।