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कविता: “ससुरे कम्युनिस्ट”

clash of communists and right wing

वह मुट्ठी भींचे मुझे चेता रहा था-

देखना एक दिन यह देश

योगियों-मुनियों के पावन युग में लौट आएगा

धरती सोना उगलेगी, कण-कण राममय हो जाएगा

और…और, कम्युनिस्टों का नाश हो जाएगा!

 

मैंने कहा, यार पंडित

तू जाने किस युग की बात कर रहा है?

देश में तो अभी ही आ गया है रामराज

विराजे बैठे हैं सत्ता की कुर्सी पर योगी महाराज!

 

मेरा दोस्त और भड़क उठा-

मत करो बात उस अधम पाखंडी की

जिसके पाप से शिशुओं की सांस उखड़ जाए

बहु-बेटियों की आए दिन लाज उघड़ जाए

जो बात करे तो दुर्गंध झरे

जिसके चेले दैत्य-सरीखे दिन-रात लड़े!

 

इस पाप से फिर मुक्ति कैसे?

 

उसने उसी तेवर और तड़प से कहा-

और कैसी होगी मुक्ति…

ये ससुरे कम्युनिस्ट ही निकालेंगे इसकी युक्ति!

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