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20 साल की उम्र में डायबिटीज़ का मतलब हर रोज़ ज़िंदगी से एक नई लड़ाई थी

वो मेरा 21वां जन्मदिन था, सुबह के 6 बजे थे और मैं साउथ इंडिया के सबसे बेहतर इंडोक्राइनोलॉजिस्ट डॉ. बिपिन सेठी के सामने बैठी थी। मैं नींद से जाग तो चुकी थी लेकिन काफी थकी और कमज़ोर महसूस कर रही थी। पिछले दो महीनों में सेठी छठे डॉक्टर थे जिनसे मैं अपनी डायबिटीज़ के सिलसिले में मिल रही थी।

2013 में एक मीडिया कॉलेज से ग्रैजुएट होने के बाद मैं अपने घर हैदराबाद वापस आ गई थी। मैं वापस अपने शहर में रहने को लेकर काफी उत्साहित थी लेकिन मुझे क्या पता था कि ऐसी बीमारी मेरा इंतज़ार कर रही है! ये सबकुछ मेरी कमर के नीचे एक फोड़े से शुरू हुआ, जिसकी वजह से मेरे लिए बैठना, चलना, बाइक चलाना सबकुछ मुश्किल हो चुका था। मैं हैदराबाद में एक मुख्य अंग्रेज़ी अखबार के लिए रिपोर्टिंग कर रही थी। काम के सिलसिले में मुझे हर वक्त शहर के अलग-अलग कोने में भागदौड़ करनी होती थी।

इन सबका मतलब यह था कि मेरे पास इस फोड़े पर ध्यान देने के लिए काफी कम वक्त था। मैं इससे पहले ओबेसिटी और पहले पीरियड्स के कारण बेहद गंभीर PCOD का सामन कर चुकी थी। इसलिए मैंने सोचा कि यह फोड़ा या तो गर्मी की वजह से हुआ है या PCOD की वजह से, एक बैंडेड बांधा और काम करना जारी रखा। कुछ हफ्तों के बाद मेरा सामना बेहद बुरी UTI (यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन) से हुआ और एक महीने के बाद अचानक से मेरे पूरे शरीर पर फोड़े हो गए थे और यह साफ संकेत था कि अब इनके तरफ ठीक से ध्यान दिया जाए।

मेरे एक फैमिली डॉक्टर ने मुझे ब्लड शुगर टेस्ट करवाने को कहा। बचपन से ही मेरा ब्लड शुगर लेवल ज़्यादा रहा है इसलिए यह सलाह बिल्कुल वाजिब थी। लेकिन इस टेस्ट के नतीजे इतने चौंकाने वाले आएंगे ये मैंने भी कभी नहीं सोचा था। बिना खाए मेरा ब्लड शुगर लेवल 267 था (सामान्य स्तर 70-100 होता है और 100-125 बॉर्डर लाइन), खाना खाने के बाद मेरा ब्लड शुगर 469 था (सामान्यत: खाने के 2 घंटे के बाद यह स्तर 140 से कम होना चाहिए)।  मेरे लिए सबकुछ जैसे एक झटके में बदल गया। मैं महज़ 20 साल की थी, कॉलेज बस खत्म ही हुआ था और कई सपने थे जो पूरे करने थे।

मेरी मां उन टेस्ट्स पर भरोसा नहीं करना चाहती थी। हम अलग-अलग डॉक्टर्स और डायगनॉस्टिक सेंटर गए मेरा ब्लड शुगर चेक करवाने लेकिन हर जगह नतीजे एक ही थे। मैं काम छोड़ चुकी थी, हर रोज़ 64 ml इंस्यूलिन लेना, अलग तरह के खाने खाना (हालांकि मैं हमेशा से स्वस्थ्य खाना ही खाती थी), हर दिन डॉक्टर्स के पास जाना, ब्लड टेस्ट करवाना ये सब मुझे अंदर से तोड़ चुका था।

मुझे यह तो पता था कि मेरे पिता (जो हमारे साथ नहीं रहते हैं) को डायबिटीज़ था लेकिन उन्होंने हमेशा से स्ट्रेस को इसका कारण बताया और कहा करते थे कि उन्हें 35 साल की उम्र में यह हुआ। हालांकि अनुवांशिक वजहों को नहीं नकारा जा सकता लेकिन मैं अभी भी अमंजस में थी कि 20 साल की उम्र में डायबिटीज़ होने का मतलब क्या है? क्या मैं टाइप 1 ( जुवेनाइल डायबिटीज़ जिसमें शरीर इन्सुलिन बनाने में बिल्कुल ही अक्षम हो जाता है, जो काफी खतरनाक होता है) या टाइप 2 (अधिक लोगों में पाया जाने वाला, इन्सुलिन प्रतिरोधक) डायबिटीज़ से जूझ रही हूं।

काफी डॉक्टर्स से मिलने और खुद भी रिसर्च करने के बाद मुझे पता चला कि मुझे टाइप 2 डायबिटीज़ है और सच बताऊं तो मुझे थोड़ी राहत मिली। हालांकि इस राहत से कुछ अंतर नहीं आया, मुझे लगता था जैसे मेरी ज़िंदगी खत्म हो गई है, मेरा भविष्य बर्बाद हो चुका है। मैं बस 20 साल की थी और मैं एक लम्बी बीमारी के साथ नहीं जीना चाहती थी। मुझे नहीं पता था कि एक डायबेटिक मरीज़ की ज़िंदगी कैसी होती है, क्योंकि मेरी मां के परिवार में किसी को भी डायबिटीज़ नहीं था।

हर सुबह मैं दालचीनी के पाउडर के साथ उठती थी, ताज़ी हवा में टहलने जाती थी, ब्लड शुगर टेस्ट करवाती थी, 1200 कैलरी से कम खाती थी और सारा दिन अस्पतालों के चक्कर लगाती थी। घर आकर और भी थकी और परेशान महसूस करती थी। मेरे लिए कहीं से भी कोई आशा की किरण नज़र नहीं आती थी।

इसका असर मेरे घर पर भी पड़ा। मैंने इस स्थिति से बाहर निकलने की उम्मीद ही छोड़ दी थी लेकिन मां ने कभी हिम्मत नहीं हारी। मां ने यह ठान लिया था कि उनकी बेटी ऐसे नहीं जिएगी, वो लगातार अलग-अलग उपाय ढूंढती रही। आखिरकार उन्हें डॉ. बिपिन सेठी को ढूंढ लिया और बिल्कुल सुबह की अप्वाइंटमेंट ले ली।

उन्होंने मेरे रिपोर्ट्स देखीं, मेरी इन्सुलिन डोज़ बदली, मेरी तरफ देखकर मुस्कुराएं और कहा, “अगर तुम 30 साल की उम्र से पहले हार्ट अटैक के खतरे को कम करना चाहती हो तो बेरिआट्रिक (वजन कम करने वाली) सर्जरी करवा लो।” इस सर्जरी में मेरे पेट का एक हिस्सा बाहर निकाला जाना था। आसान शब्दों में कहें तो एक फुटबॉल के आकार के पेट को सर्जरी के बाद केले के आकार का बना दिया जाएगा। इस सर्जरी से किसी भी इंसान की एकबार में ज़्यादा खाने की क्षमता कम कर दी जाती है और हर दो घंटे बाद थोड़ा-थोड़ा खाने की ज़रूरत पड़ती है।

इसके कुछ साइड इफेक्ट्स भी हैं जिनमें से डिप्रेशन और विटामिन की कमी काफी आम है। अगर मुझे डायबिटीज़ को नियंत्रण में रखना था तो अपनी जीवनशैली में कुछ ज़रूरी बदलाव करने थे। अपनी डायट को बेहद गंभीरता से लेना, नियमित एक्सरसाइज़ करना, ज़्यादा शराब ना पीना बेहद ही ज़रूरी चीज़ें थी।

बेरियाट्रिक सर्जरी मुख्यत: वजन कम करने के लिए की जाती है। हालांकि मेरा वजन उस वक्त 106 किलो था लेकिन यह सर्जरी के लिए निर्धारित वजन से कम था। लेकिन मैं ओबेसिटी और डायबिटीज़ दोनों का सामना कर रही थी इसलिए मैं यह सर्जरी करवा सकती थी। इतनी बड़ी सर्जरी करवाना एक मुश्किल फैसला था क्योंकि इससे साइड इफेक्ट्स के भी काफी आसार थे। हमने कई दिन लगाएं यह सोचने में लेकिन बाकी सारे ऑप्शन्स भी सर्जरी की तरफ ही इशारा कर रहे थे।

अन्त में मैंने सर्जरी करवाई। सर्जरी के बाद एक हफ्ते अस्पताल में बेड रेस्ट करने के बाद मेरा शुगर का स्तर सामान्य तक आ गया और मेरा भविष्य मुझे कुछ बेहतर नज़र आने लगा। मुझे अब बस हर दिन कसरत करना था, सही खाना था और अपना विटामिन सप्लिमेंट सही तरीके से लेना था।

आज उस ऑपरेशन के पांच साल के बाद अगर कोई मुझसे पूछे कि क्या मैंने डायबिटीज़ और वजन से हमेशा के लिए छुटकारा पा लिया है तो मैं कहूंगी नहीं। जहां मैंने अपना काफी वजन कम कर लिया वहीं मेरा ब्लड शुगर लेवल भी अब नियंत्रण में है। मुझे पता है कि इसके लिए मैंने काफी परेशानी झेली है, काफी मेहनत की है और पूरी ज़िंदगी शायद इतनी ही मेहनत और नियंत्रण के साथ ही जीनी होगी।

मुझे कभी-कभी काफी बुरा लगता है कि मैं अब कभी ओनम में पूरा साध्या नहीं खा पाऊंगी या कभी भी पूरा आंध्रा खाना नहीं खा पाऊंगी लेकिन क्या अपनी लाइफस्टाइल की वजह से अपने स्वास्थ्य को खतरे में डालना कहीं से भी एक बेहतर चुनाव है? मैं बीच-बीच में कार्बोहायड्रेट और चीनी खाती हूं, लेकिन इतना ज़रूर निश्चित करती हूं कि सबकुछ नियंत्रण में हो।

मैं PCOD को नियंत्रण में रखने के लिए हर दिन मेटफॉरमिन टैबलेट (डायबिटीज़ की दवाई) लेती हूं। मुझे इस दौरान यह भी पता चला कि PCOD कुछ लोगों में डायबिटीज़ का सूचक है। मैं ज़्यादा शराब नहीं पीती, जहां तक ऑपरेशन से साइड इफेक्ट का सवाल है मैं क्लिनिकल डिप्रेशन से गुज़र चुकी हूं और हाल के सालों में मुझे विटामिन B12 और D की कमी भी हुई है। मैं अब पहले से आशावान हूं और इतना जानती हूं कि मेरी ज़िंदगी बेहतरी की ओर जाएगी।

इस विश्व डायबिटीज़ डे के दिन मैं यह बिल्कुल नहीं कहूंगी कि डायबिटीज़ के साथ जीना बहुत ही साहस का काम है (मेरे मन में उन तमाम लोगों के लिए काफी इज्ज़त है जो इससे लड़ रहे हैं) क्योंकि मैं कभी डायबिटीज़ के साथ जीना ही नहीं चाहती थी, मैं हमेशा इससे लड़ना चाहती थी। मैं आज यह ज़रूर मानना चाहूंगी कि हेल्दी लाइफस्टाइल कभी भी मेरे लिए च्वाइस नहीं था बल्कि मुझे मजबूरी में इसे अपनाना पड़ा।

काश बड़े होते हुए मुझे किसी ने बताया होता कि एक्सरसाइज़ करना और स्वस्थ खाना सिर्फ फैट शेमिंग से बचने के लिए ज़रूरी नहीं है, या खूबसूरत दिखने और ब्वायफ्रेंड पाने के लिए ज़रूरी नहीं है। काश किसी ने बताया होता कि स्वस्थ शरीर और मन शायद इस दुनिया की सबसे बड़ी नेमत है जो आपको मिल सकती है।

हालांकि मैं इस बात पर ज़ोर देना चाहूंगी कि कभी भी बहुत देर नहीं होती और किसी भी उम्र में हम एक बेहतर और स्वस्थ जीवनशैली अपना सकते हैं। डायबिटीज़ के साथ जीना या इसे हमेशा खुद से दूर रखने की लड़ाई लड़ना काफी साहस और हिम्मत का काम है। यह वो लड़ाई है जो हम सबको हर रोज़ लड़नी है एक बेहतर जीवन के लिए।

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