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“RBI से करोड़ों मांगने की बजाय सरकार ठग पूंजीपतियों पर लगाम क्यों नहीं कसती”

अपने विध्वंसकारी आर्थिक सुधारों और अनर्गल क्रियाकलापों से देश की अर्थव्यवस्था का बेड़ा गर्क कर चुकी सरकार अब देश के केंद्रीय बैंक यानि रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया से 3.6 लाख करोड़ रुपये की मांग कर रही है।

हालांकि सरकार ने अब इस बात से इनकार कर दिया है कि RBI से किसी भी प्रकार के रकम की मांग की गई थी। सरकार का कहना है कि सरकार की राजकोषीय हालत बिलकुल दुरुस्त है और रिजर्व बैंक से 3.6 लाख करोड़ रुपये या एक लाख करोड़ रुपये मांगने का कोई प्रस्ताव ही नहीं रहा।

खबरों के अनुसार, RBI ने आने वाली समस्या की जटिलता का अंदाज़ा पहले से ही लगाकर सरकार को यह कहते हुए रुपये देने से मना कर दिया कि यह जनता की खून पसीने की पूंजी है।

RBI की इस प्रतिक्रिया के चलते सरकार और रिज़र्व बैंक में ठन भी गई है। ऐसा कहा जा रहा कि बैंक द्वारा पैसे देने से मना किये जाने के बाद सरकार ने RBI एक्ट की धारा 7 का इस्तेमाल करते हुए, बैंक की स्वायत्ता में दखल देने का प्रयास किया है। अगर यह खबर सही है तो देश की स्वतंत्रता के बाद 83 वर्षो में यह पहला मौका है, जब कोई सरकार इस तरह से RBI के कामकाज में अड़ंगा डाल रही है।

स्थिति इतनी दयनीय हो चली है कि बैंक के डिप्टी गवर्नर को विरल आचार्य को बकायदा एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सरकार से बैंक के कामकाज को सुचारू रूप से चलने देने की लिए अनुरोध करना पड़ा।

आश्चर्य की बात तो यह है कि यह 3.6 लाख की धनराशि उतनी ही है, जितनी की सरकार के पूंजीपति मित्र सरकार को ही चूना लगाकर विदेशों में ऐश फरमा रहे हैं।

सरकार रिज़र्व बैंक की इस पूंजी का इस्तेमाल करते हुए इन पूंजीपतियों द्वारा खाली किये गए खज़ाने को भरना चाहती है, जिससे कि आने वाले 2019 के चुनावों में लोग बीजेपी को धन मुहैया करा सके और फिर से बिना कुछ किये बीजेपी सत्ता पर काबिज़ हो सके।

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