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“इतिहास में Ph.D करके क्या फायदा जब लोग मुझे सुनना ही नहीं चाहते”

पीएचडी छात्र

पीएचडी छात्र, प्रतीकात्मक तस्वीर

मुझे याद है जब मैं ट्रेन पकड़कर अपने शहर से दिल्ली जा रहा था तब सामने वाली सीट पर बैठकर लोग धर्म को लेकर बातें कर रहे थे। लोग बहस कुछ इस कदर कर रहे थे कि मैंने चुप रहना ही ठीक समझा। वहां हिन्दू-मुस्लिम समुदाय के तमाम लोग अपने धर्म की महानता के अलावा शांति स्थापित करने को लेकर भी बात कर रहे थे। इस दौरान इतिहास को काफी गलत तरीके से पेश किया जा रहा था जिससे मैं हैरान रह गया।

लोग बहस के दौरान इतने आक्रोश में थे कि बगैर तथ्यों और तारीखों की पुष्टि के ही बात कर रहे थे। एक पल के लिए ऐसा लगा कि मेरा इतिहास पढ़ना ही गुनाह है क्योंकि उन्हें समझाने जाता तो मैं ही गलत साबित हो जाता।

ऐसा सोचना लाज़मी भी है क्योंकि हिन्दुस्तान में आजकल लोग दूसरों की बातों पर ज़्यादा विश्वास करने लग गए हैं। ऐसी चीज़ें ट्रेन में भी दिखी जब लोग अपने आप को श्रेष्ठ दिखाने के लिए धर्म के नाम पर गलत बातें कर रहे थे। एक चीज़ जो मुझे अच्छी लगी वो यह कि अंत में एक व्यक्ति ने कहा, “जब सभी धर्म हमें अच्छाई ही सीखाते हैं, तब हम टुकड़ों में क्यों बंट रहे हैं।”

इस बात का जवाब तो वे लोग भी नहीं दे सके जो इतनी देर से बहस कर रहे थे। वे बस एक-दूसरे की तरफ देखते रह गए। इस बहस से मैं इतना तो ज़रूर समझ पाया कि ये लोग बेहद स्वार्थी थे जो खुद को सर्वश्रेष्ठ साबित करने के लिए एक-दूसरे को नीचा दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे।

कभी-कभी इतिहास का छात्र होने और Ph.D करने पर मुझे काफी दुख होता है क्योंकि मुझे पता है आज के ज़माने में इतिहास जानने वाले को कोई सुनना ही नहीं चाहता। लोग इसलिए भी नहीं सुनना चाहते क्योंकि उन्हें लगता है कि इससे सिर्फ लड़ाई के कारण का पता लग पाएगा। मौजूदा दौर की राजनीति ऐसी हो चुकी है कि लोगों का ऐसी बातें सोचना लाज़मी है।

राजनैतिक पार्टियां और उनके तमाम नेता भी तो आजकल इतिहास बदलने में लगे हुए हैं। हालात तो ऐसे हो चुके हैं कि हमें अगली सुबह न्यूज़पेपर में इतिहास के साथ छेड़छाड़ की खबरें पढ़ने को मिलती हैं। यही अंधी सोच का नतीजा है कि हम सोशल मीडिया और हज़ारों की संख्या में बढ़ रहे समाचार चैनलों के भड़काऊ बातों का शिकार होते जा रहे हैं।

आज की तारीख में सोशल मीडिया के ज़रिए कई तरह के भड़काऊ मैसेजेज़ देखने को मिलते हैं और लोग तथ्यों की बगैर जांच-पड़ताल किए ही उग्र हो जाते हैं। हमें विवेक से काम लेते हुए सही और गलत के बीच की पहचान को समझने की ज़रूरत है। हमें सिर्फ यह नहीं सोचना चाहिए कि हिन्दू और मुसलमान पर किसने क्या कहा और हमें कैसे प्रतिक्रिया देनी है, क्योंकि याद रखिए आपके एक भड़काऊ मैसेज से कई लोग उग्र हो सकते हैं और मज़हब के नाम पर किसी मासूम की जान जा सकती है।

मुझे उम्मीद है कि बदलते वक्त के साथ लोगों की सोच में भी तब्दिली आएगी और इसी के साथ नीचे ‘पोल’ के ज़रिए आपसे पूछना चाहता हूं कि क्या लोग इतिहास को जनाते हैं? तीन ऑप्शन में से किसी एक का चयन आप ज़रूर करें।

नोट: तस्वीर प्रतीकात्मक है।

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