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क्यों इंदिरा गांधी मेरी पसंदीदा महिलाओं में से एक है

इंदिरा गांधी

इंदिरा गांधी

इंदिरा गांधी मेरी सबसे पसंदीदा महिलाओं में से एक हैं। 1975 के आपातकाल पर उनकी खूब भर्त्सना भी करता हूं लेकिन फिर सोचता हूं कि जब आज महिलाओं के लिए राजनीति की डगर इतनी मुश्किल है तो उस समय एक औरत के लिए कितना मुश्किल हुआ होगा। विपक्ष तो दूर, काँग्रेस पार्टी के दिग्गज नेता तक उन्हें “गूंगी-गुड़िया” ही समझते थे। उन्होंने शायद यह सोचा कि इंदिरा महज़ एक महिला है तो इसे मुखौटा बनाकर खुद राज करने में आसानी होगी।

इंदिरा आज़ाद भारत की वह महिला थी जिसके पास अपना मुंह था, अपना चेहरा था, अपनी आवाज़ थी और अपनी समझ थी, सो इंदिरा को मुखौटा बनना स्वीकार नहीं था। उन्होंने उस पुरुषवादी मानसिकता को नकार दिया और खुद बोलने लगीं, खुद निर्णय लेने लगीं। अब एक महिला, खुद निर्णय लेने लगी तो यह समाज चरमराकर टूटने लगा, इसका खोखलापन बाहर आने लगा। हर तरफ से इंदिरा का विरोध होना स्वाभाविक था।

इंदिरा ने इस देश के राजाओं पर उनको सरकार के द्वारा दिये जाने वाला “प्रिवी पर्स” को 26वें संविधान संशोधन (1971) द्वारा खत्म कर, जबरदस्त प्रहार किया। फिर क्या, लगभग 500 से अधिक राजा बिफर गए। इंदिरा ने 1969 में, देश के 14 बड़े बैंकों का “राष्ट्रीयकरण” कर भारत की अर्थव्यस्था को एक नई पहचान दी। 18 मई 1974 को इंदिरा गांधी ने “परमाणु परीक्षण” कर भारत को “सामरिक-शक्ति” के रूप में दुनिया भर में स्थापित किया और भारत की सीमाओं को सुरक्षित किया।

अमेरिका ने भारत को नीचा दिखाने के लिए, देने वाले अन्न को प्रतिदिन के हिसाब से देने का निर्णय किया। ये भारत की अस्मिता पर एक गहरी चोट थी। बस फिर क्या था, इंदिरा ने 1965 ईसवी के आसपास “हरित-क्रांति” का एलान किया और फलस्वरूप भारत अन्न के मामले स्वपोषित राष्ट्र बन गया। 1971 में पूर्वी पाकिस्तान को एक अलग देश “बांग्लादेश” बनाकर दुनिया को यह दिखा दिया कि दक्षिण एशिया में भारत एकमात्र शक्तिशाली राष्ट्र है। पाकिस्तान की कमर टूट गयी, एक महिला इस देश की सिरमौर बन गयी। हर ज़ुबान पर इंदिरा छा गईं।

लेकिन प्रकृति में सत्ता की प्रवृति का भी खेल निराला है। लोग उनमें माँ का स्वरूप देखने लगे। लेकिन इंदिरा अपने ही बेटे के सामने हार गईं। और फिर शुरू हुआ आपातकाल का वो दौर जिसने इंदिरा के जीवन की सारी सफलताओं पर एक बदनुमा दाग लगा दिया। इंदिरा, एकमुखी रुद्राक्ष पहनने वाली शिव की उपासक थी जिन्होंने 42वें संशोधन (1974) के द्वारा संविधान में “धर्मनिरपेक्षता एवं समाजवाद” जैसे शब्दों को जोड़कर इस देश को सामूहिक जीवन का उद्देश्य दिया। इंदिरा के आपातकाल का ज़बरदस्त विरोध हुआ शायद वो इसलिए भी क्योंकि इंदिरा ने भारत को एक मज़बूत राष्ट्र बना दिया था और लोकतंत्र को जीवन शैली। मज़बूत लोकतंत्र अब लोकतांत्रिक मर्यादा को खत्म नहीं होने देना चाहता था।

1977 के चुनाव में इंदिरा की ज़बरदस्त हार हुई, यहां तक कि वो अपनी सीट भी ना जीत सकीं। लेकिन महज़ कुछ सालों में इंदिरा ने लोकतंत्र की ताकत को पहचान लिया था और इस देश ने इंदिरा की प्रशासनिक कुशलता को भी। बहरहाल, इंदिरा को देश ने वापस अपनाया और यह भी कहा जा सकता है कि इंदिरा को देश ने शायद आपातकाल के लिए माफ कर दिया था। इंदिरा के सामने अब पंजाब में तीव्र हो रहे अलग देश ‘खालिस्तान’ की मांग थी। इंदिरा ने पवित्र स्वर्ण मंदिर में कब्ज़ा जमाये आतंकवादियों को खत्म करने के लिए 3 जून से 8 जून 1984 तक “ऑपरेशन ब्लू-स्टार” चलाया। देश तो छलनी होने से बच गया लेकिन इंदिरा छलनी होने से नहीं बच पाई।

31 अक्टूबर 1984 की सुबह 9:20 भारत के इतिहास में एक अंधेरी शाम की तरह आई। इंदिरा गांधी को उनके सिख अंगरक्षक ने गोलियों से छलनी कर दिया था। इंदिरा को सुरक्षा एजेंसी ने सिख अंगरक्षक रखने से मना किया था लेकिन इंदिरा गांधी ने धर्मनिरपेक्षता को बचाने के लिए, अपनी कुर्बानी दे डाली।

इंदिरा गांधी के नाम ऐसी हज़ारों नीतियां दर्ज हैं जो शायद भारत को एक उज्ज्वल राष्ट्र बनाने के लिए ज़रूरी था। लेकिन क्या भारत की राजनीति ने इंदिरा को एक औरत होने के नाते कमतर आंका? यह सवाल आज भी भारत की राजनीतिक गलियारे में बार-बार आ जाता है। इंदिरा इंडिया तो नहीं लेकिन इंदिरा ने इंडिया को सर्वशक्तिमान एवं सर्वयुक्त बनने का रास्ता तो दिखा ही दिया था।

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