Site icon Youth Ki Awaaz

“गरीबों को फ्री में जियो नहीं, भूख मिटाने के लिए रोटी चाहिए”

भूख से तड़पते लोग

भूख से तड़पते लोग

दिवाली के दौरान मेरे और ऐसे तमाम घरों में जितना ‘घी’ और ‘तेल’ सिर्फ दीये जलाने में इस्तेमाल किए गए, उतना तो बहुत लोगों को सालभर भी नसीब नहीं होता। अगर इन चीज़ों से हम यह दिखाना चाहते हैं कि हम काफी समृद्ध हो गए हैं तब यह बेहद शर्मनाक है।

कुछ महीनों पहले ‘वापी’ रेलवे स्टेशन पर भीख मांगने के दौरान जब एक छोटी बच्ची मेरी शर्ट खींच रही थी तब मैंने महसूस किया कि उम्र के अनुसार वह काफी कमज़ोर और दुर्बल थी। मैंने उसे पार्लेजी के दो बिस्किट दिए और वो चली गई। पास बैठे एक प्रौढ़ ने मुझे अपराधी जैसी फीलिंग देते हुए कहा कि मैंने बहुत गलत किया।

उन्होंने ज्ञान बांटते हुए आगे कहा कि ये लोग ऐसे ही होते हैं साहब। माँ-बाप इन्हें पैदा कर छोड़ देते है और ये बस देश को बर्बाद करते रहते हैं। मैं उस बच्ची को देखते हुए सोच रहा था कि क्या वाकई देश की बर्बादी में उसका योगदान है।

खैर, हर वर्ष 16 अक्टूबर को ‘वर्ल्ड फूड डे’ होता है। मैं यह तो नहीं कह सकता हूं कि लोग इसे कैसे मनाते हैं लेकिन इतना ज़रूर है कि त्योहारों और जयंतियों से कम ही महत्व दिया जाता है।

भारत के कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने अभी हाल में अपने एक बयान में कहा कि सरकार वर्ष 2030 तक भुखमरी समाप्त करने के लक्ष्य को हासिल करने के लिए चरणबद्ध तरीके से लगातार काम कर रही है। दूसरी तरफ अक्टूबर महीने में ‘ग्लोबल हंगर इंडेक्स’ की रिपोर्ट जारी होते ही कृषि मंत्री के दावों की पोल खुल गई। रिपोर्ट के मुताबिक 119 देशों की सूची में भारत को 103वां स्थान प्राप्त हुआ है।

गौरतलब है कि साल 2014 में ‘ग्लोबल हंगर इंडेक्स’ में भारत 55वें स्थान पर था, जबकि साल 2015 में 80वें और साल 2016 में 97वें पायदान पर था। पिछले वर्ष से तुलना की जाए तो भारत के रैंक में तीन अंकों की गिरावट हुई है।

ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि हिन्दुस्तान में भुखमरी के मामले में स्थिति काफी गंभीर होती जा रही है। डिजिटल इंडिया कहलाने की होड़ में हम भूखे होते जा रहे हैं।

केवल मध्य प्रदेश की बात की जाए तो जनवरी 2016 से लेकर जनवरी 2018 के बीच 57,000 बच्चों ने कुपोषण के कारण दम तोड़ दिया। महिला एवं बाल विकास मंत्री अर्चना चिटनीस ने अपने एक बयान में यह माना कि राज्य में हर रोज़ 92 बच्चों की मौत कुपोषण के कारण होती है। 2016 में यह आंकड़ा 74 था।

सिर्फ उचित भोजन ना मिलने के कारण इस महान संस्कृति वाले देश के मध्य प्रदेश में 92 बच्चे प्रतिदिन मर रहे हैं। जी हां, 92 बच्चे प्रतिदिन। मैंने इस आंकड़े को इसलिए दोहराया ताकि बार-बार पढ़ने से आपकी ज़बान एक बार तो लड़खड़ाए ज़रूर। यह सिर्फ किसी एक राज्य में बच्चों की मौत का आंकड़ा नहीं है बल्कि यह हमारी गिरती शर्म और असंवेदनशीलता का स्कोर भी है।

ज़रा कल्पना करने की कोशिश कीजिए कि आज भी दुनिया भर में इतने लोग भूख से मर रहे हैं जबकि हमारा भोजन हमसे सिर्फ एक मोबाइल ऐप दूर होता है। सिर्फ भारत की बात की जाए तो यहां हर रोज़ 20 करोड़ लोग भूखे सोते हैं, जबकि अपना पिज्ज़ा आधे घंटे के अंदर पहुंच जाता है।

मूर्तियां बनाना, शहरों और स्टेशनों के नाम बदलना शायद ज़रूरी हो सकता है लेकिन भूख से बड़ी कोई मूर्ति बन नहीं पाई है और ना ही इसका कोई दूसरा नाम है। हमें मंदिर, मूर्ति, आधार और राफेल नहीं चाहिए, भले ही कर दो सबरीमाला के दरवाज़े बंद। चाहे पाकिस्तान से जंग करो या ना करो, हमें तो बस दो वक्त की रोटी चाहिए।

राजस्थान और छत्तीसगढ़ में चुनावों से ठीक पहले लोगों को जियो फोन बांटे गए। इसका मतलब तो यही है कि जनता के पास खाने के पैसे बेशक ना हो लेकिन सरकार के वादे देखने के लिए प्रतिदिन 2 जीबी फ्री नेट ज़रूर हो। अंत में यही कहना चाहूंगा, “जनाब! सबको ‘जियो’ नहीं जीने का हक चाहिए। देश के भंडारों में अनाज का सड़ जाना और भूख से लोगों का मर जाना सत्ता पर एक कलंक ही है।

Exit mobile version