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“ब्राह्मणवादी पितृसत्ता से प्रभावित लोग अंबेडकर की गलत आलोचना क्यों करते है?”

अंबेडकर

अंबेडकर

देश में हर साल 26 नवंबर को संविधान दिवस मनाया जाता है। इस दिन संविधान के निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर को यादा किया जाता है। उन्होंने भारतीय संविधान के रूप में दुनिया का सबसे बड़ा संविधान तैयार किया है। यह दुनिया के सभी संविधानों को परखने के बाद बनाया गया था। इसे विश्व का सबसे बड़ा संविधान माना जाता है जिसमें 448 अनुच्छेद, 12 अनुसूचियां और 94 संशोधन शामिल हैं।

यह हस्तलिखित संविधान है जिसमें 48 आर्टिकल हैं। इसे तैयार करने में 2 साल 11 महीने और 17 दिन का वक्त लगा था। 26 नवंबर 1949 को संविधान सभा ने इसे अपनाया था और 26 नवंबर 1950 को इसे लोकतांत्रिक सरकार प्रणाली के साथ लागू किया गया। यही वजह है कि 26 नवंबर को संविधान दिवस के तौर पर मनाया जाता है।

अंबेडकर ने संविधान के ज़रिए सिर्फ आरक्षण ही नहीं बल्कि महिलाओं को समानता का अधिकार भी दिया। आरक्षण को संवैधानिक अधिकार दिए जाने को लेकर सोशल मीडिया पर कई तरह के सवाल खड़े हुए हैं। एक खास तबके को लगता है कि संविधान में बीआर अंबेडकर का योगदान महज़ आरक्षण है लेकिन हमें समझना पड़ेगा कि क्या वाकई में ऐसा है?

दरअसल, मैंने बहुत सारी महिलाओं को संविधान को गाली देते हुए और अंबेडकर पर अभद्र टिप्पणी करते देखा है। क्या उन महिलाओं ने संविधान सभा की बहसें सुनी हैं? या फिर “ब्राह्मणवादी पितृसत्ता” ने उन्हें ना तो कुछ सोचने दिया और ना ही समझने का मौका दिया।

हिन्दू धर्म के अनुसार महिलाओं को शादी खत्म करने या तलाक लेने का अधिकार नहीं है और ना ही उन्हें संपत्ति पर कोई अधिकार प्राप्त है। हम सबको मालूम है कि अंबेडकर ‘हिन्दू कोड बिल’ पास करवाना चाहते थे जिसके तहत महिलाओं को शादी का अधिकार, संपत्ति में अधिकार और पति के एक से अधिक विवाह पर रोक का प्रावधान था।

भीमराव अंबेडकर। सौजन्य: Flickr

अंबेडकर के इस निर्णय का खासा विरोध हुआ था। उस समय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और हिन्दू महासभा ने इसका विरोध करते हुए संविधान को हिन्दू विरोधी बताया था। उनका दवा था कि अगर हिन्दू कोड बिल पास हो गया तब महिलाओं को तलाक और संपत्ति का अधिकार प्राप्त हो जाएगा, जो धर्म के खिलाफ है। यानि कि अगर अत्याचार या पिटाई करें तब महिलाओं को सहना है।

बेटों को संपत्ति में अधिकार और बेटियों को नहीं, ऐसे असामान्य प्रथा पर हिन्दू कोड बिल से विराम लगता और अंबेडकर का यह कदम ब्राह्मणवादी पितृसत्ता के ठेकेदारों को रास नहीं आया। हालांकि बाद में कुछ संशोधनों के साथ भारतीय संसद द्वारा हिन्दू विवाह अधिनियम को सन 1955 में पारित कर दिया गया।

सिर्फ आरक्षण के तराजू पर अंबेडकर को तोला नहीं जा सकता है। उस वक्त अंबेडकर समानता की पैरवी करने वाले प्रगतिशील व्यक्ति थे। आरक्षण तो सिर्फ उनके द्वारा किये गए कामों का एक हिस्सा है।

संविधान बदलने से क्या होगा?

कुछ महीनों पहले मोदी सरकार के एक मंत्री ने कहा था कि वो संविधान को बदलने के लिए सत्ता में आए हैं। ये संविधान इतनी आसानी से नहीं मिला है, जो लोग इसे बदलने की बात कर रहे हैं। संविधान को बदलना यानि धर्म के अनुसार कानून की स्थापना करना। इतिहास गवाह है कि महिलाओं की हालत इतिहास में महज़ एक ‘सेक्स ऑब्जेक्ट’ की तरह थी। उन्होंने औरतों को देवी का दर्जा देकर मूर्ति बनाना चाहा और यह समझा कि मूर्ति को कैसे भी रखो उसे फर्क नहीं पड़ता। उन्हें अधिकार दो या नहीं दो, बात एक ही है।

संविधान को बदलना मतलब ‘हिन्दू कोड बिल’ के साथ छेड़छाड़। ऐसा करने से तलाक लेने पर महिलाओं की स्वतंत्रता और संपत्ति का अधिकार समाप्त कर देगा। यह कहना भी गलत नहीं होगा कि लोकतंत्र खत्म हो जाएगा और रजवाड़ों की हुकूमत फिर से शुरू हो जाएगी। राज घराने की महिलाओं को छोड़कर सभी देवदासी हो जाएंगी। जब अंबेडकर ने यह सब खत्म कर दिया तब हमारे समाज का एक तबका उन्हें गलत क्यों कहता है?

हम यह नहीं कहेंगे कि अंबेडकर के संविधान ने सब कुछ बदल दिया क्योंकि उसका पालन करने वाले लोग घटिया ही रहे हैं। हां, यह ज़रूर कह सकता हूं कि भारतीय संविधान आधुनिक भारत का ब्लू मैप है।

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