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फेक न्यूज़ के दौर में जवाहरलाल नेहरू का होना

“नेहरू की मौत STD यानि सेक्सुअली ट्रांसमिटेड डीसीज़ से हुई थी।” इसका ज़िक्र किसी भी इतिहास की किताब या अखबार के लेख में नहीं मिलता। मिलेगा भी कैसे क्योंकि फेक न्यूज़ की जद में आकर हम यह पता लगाने की ज़हमत ही नहीं उठाते कि नेहरू की मौत असल में दिल का दौरा पड़ने से हुई थी। आपको कई लोग ऐसे ज़रूर मिल जाएंगे जो इस बात पर पूरी तरह यकीन करते हैं। आए दिन भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के बारे में वॉट्सऐप और अन्य सोशल मीडिया साइटों पर अलग-अलग तरह की फेक न्यूज़ हमें देखने को मिल जाती हैं।

“नेहरू एक अय्याश किस्म के इंसान थे”, “नेहरू के संबंध कई महिलाओं से थे”, “नेहरू ने आरएसएस की शाखा की बैठक में हिस्सा लिया था”, “1962 की लड़ाई चीन से हारने के बाद नेहरू को भीड़ ने पीटा था” ऐसी खबरें तस्वीरों या छोटी-छोटी खबरों के रूप में हम तक पहुंचने लगी हैं। 14 नवंबर को पंडित जवाहर लाल नेहरू का जन्मदिन भारत में बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है। बचपन में हम नेहरू के बारे में बस यही 2 बातें जानते थे। पहला कि नेहरू हमारे देश के पहले प्रधानमंत्री थे और दूसरा कि वह ‘चाचा नेहरू’ हैं जो हमेशा अपनी कोट की जेब में एक गुलाब लगाते थे और उन्हें बच्चों से बेहद प्यार था। सोशल मीडिया की बढ़ती पहुंच के साथ उनकी यह पहचान धूमिल होती जा रही है।

फेक न्यूज़ के इस दौर में हम वॉट्सऐप पर आए नेहरू से जुड़े मैसेज कि 60 सालों तक देश की तथाकथित बर्बादी की वजह सिर्फ और सिर्फ नेहरू थे, यह बिना क्रॉस चेक किए एक-दूसरे को फॉर्वर्ड करते रहते हैं। इतिहास और राजनीतिक विज्ञान की किताबों के वे चैप्टर्स जो हमने पढ़े थे उन्हें भूलाकर हम वॉट्सऐप फॉर्वर्ड्स पर अधिक भरोसा करने लगे हैं। फेक न्यूज़ कितना सशक्त हो चुका है इसका अंदाज़ा हम इस बात से लगा सकते हैं कि वकालत कर रहे मेरे एक रिश्तेदार भी अब कहते हैं कि नेहरू की मौत एसटीडी से हुई थी।

नेहरू की भतीजी नयनतारा सहगल के साथ उनकी तस्वीरों के साथ जब यह लिखकर शेयर किया जाता है कि देखिए नेहरू का चरित्र कैसा था, इस पर भी वह भरोसा कर लेते हैं। अक्सर नेहरू की ऐसी तस्वीरें हमें सोशल मीडिया पर देखने को मिल जाती हैं जहां उन्हें महिलाओं के साथ बेहद गलत तरीके से पेश किया जाता है। यहां तक कि दिल्ली के विधायक मजिंदर एस सिरसा ने भी इस तस्वीर को ट्वीट करने से पहले एक बार नहीं सोचा। नेहरू के काम, उनके राजनीतिक करियर की जगह उनकी निजी ज़िदंगी की बातें अक्सर की जाती हैं।

(फोटो साभार-ऑल्ट न्यूज)

नेहरू की आलोचना का आधार राजनीतिक होना चाहिए न कि उनका निजी जीवन। क्या यह कम दिलचस्प है कि जो राजनीतिक धड़ा नेहरू के निजी जीवन की बातें करता है, वही वर्तमान प्रधानमंत्री की पत्नी से अलगाव को निजी बताता है। यहां हम इक्वल टू की बात नहीं कर रहे, लेकिन ये पैमाने अलग कैसे हो सकते हैं। इसका स्पष्ट मतलब है कि नेहरू के बारे में ये अफवाहें किसी राजनीतिक षड्यंत्र के खिलाफ फैलाई जाती हैं।

फेक न्यूज़ की चुनौतियां

ये फेक न्यूज़ कोई आम इंसान घर पर बैठकर नहीं पैदा करता। स्वतंत्र पत्रकार स्वाति चतुर्वेदी की किताब ‘आइ एम अ ट्रोल’ में बताती हैं कि फेक न्यूज़ ज़्यादातर संगठित होते हैं मसलन इन्हें बनाने के लिए अलग से लोग जुटे रहते हैं। साथ ही किताब में यह भी बताया गया है कि किस तरह वॉट्सएप ग्रुप के कॉन्टेंट बनाए और फैलाए जाते हैं। हाल ही में भारत आए ट्विटर के सीईओ और कोफाउंडर जैक डॉर्सी ने भी कहा कि ट्विटर 2019 चुनाव से पहले फेक न्यूज़ पर लगाम लगाने की पूरी कोशिश कर रहा है। वॉट्सऐप ने भी भारत में फेक न्यूज़ को रोकने के लिए कई कदम उठाए।  इसी साल वॉट्सऐप पर आई फेक न्यूज़ के कारण कई लोगों की मॉब लिंचिंग तक कर दी गई।

फेक न्यूज़ कितना बड़ा खतरा बनकर उभर रहा है इस बात का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। जब लोग फेक न्यूज़ की जद में आकर दूसरों की जान लेने से नहीं चूक रहें तो नेहरू को लेकर फैलाया जा रहा फेक न्यूज़ तो कुछ भी नहीं। इस दौर में जहां सोशल मीडिया एक सशक्त माध्यम बन चुका है। इसकी पहुंच लोगों तक बढ़ती जा रही है। आंकड़े बताते हैं कि भारत में 2019 तक मोबाइल फोन इस्तेमाल करने वाले लोगों की संख्या 813.2 मिलियन हो जाएगी। वहीं  इकॉनमिक टाइम्स की रिपोर्ट बताती है कि भारत में एक सामान्य यूज़र हर महीने 11 जीबी डेटा का इस्तेमाल करता है। मोबाइल और डेटा के साथ-साथ हम तक पहुंचती है फेक न्यूज़। हालांकि,फेक न्यूज़ पर लगाम लगाने के लिए अभी सिर्फ नैतिक उपाय ही आए हैं और हर बार चर्चा इसी निष्कर्ष के साथ खत्म होती है कि लोगों के बीच जागरूकता लानी होगी।

देखा जाए तो जिस तरह से नेहरू से जुड़ी फेक खबरें हमारे पास आती हैं उस मुकाबले दूसरे राजनेताओं की नहीं आती। फेक न्यूज़ और नेहरू को जोड़कर देखें तो इस दौर में अब मीडिया और फैक्ट चेकर्स की ज़िम्मेदारी भी काफी बढ़ चुकी है वर्ना लोगों के बीच यह अवधारणा बनी रहेगी की नेहरू की मौत STD से हुई थी न कि दिल का दौरा पड़ने से।

 

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