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सैकड़ों गालियों और घिना देने वाले क्राइम सीन का गट्ठर है ‘मिर्ज़ापुर’

सेक्स, क्राइम, खून-खराबा, गालियां, गालियां और गालियां, ओवररेटेड भौकाल! ये कुछ मूल तत्व हैं जिनसे मिलकर दर्शकों को रिझाने लायक वेब सीरीज़ तैयार हो जाती है। दर्शक अब फिल्मों के दौर से आगे निकल चुके हैं, यूट्यूब, अमेज़न प्राइम और नेटफ्लिक्स के दौर में दर्शक पूरी तरह से वेब सीरीज़ की ओर मुड़ चुके हैं। वहां कंटेंट भी अधिक है और तरह-तरह के दर्शंकों की रूचि के अनुसार मनोरंजन मिल जाता है, हिंदी, अंग्रेज़ी सहित तमाम भाषाओं में।

इस मामले में अब भारतीय मनोरंजन इंडस्ट्री और भारतीय बॉलीवुडिया दर्शक भी पीछे नहीं हैं, वे हॉलीवुड सीरीज़ तो बड़े चाव से देखते ही हैं साथ ही भारत में बनी वेब सीरीज़ भी देखने लगे हैं। हाल ही में नेटफ्लिक्स पर आयी सेक्रेड गेम्स सीरीज़ काफी चर्चा में रही, ये अलग बात है कि पूरी पटकथा फैंटेसीनुमा थी लेकिन बुनावट, प्रेज़ेटेशन और कुछ मंझे हुए एक्टर्स की बदौलत इस वेब सीरीज़ ने काफी चर्चा और तरीफ बटोरी। इस बीच इस तरह की और भी वेब सीरीज़ आईं।

हाल ही में अमेज़न प्राइम पर उत्तर प्रदेश के ज़िले मिर्ज़ापुर के नाम से 9 एपिसोड वाली ‘मिर्ज़ापुर’ वेब सीरीज़ लॉंच हुई जिसकी चर्चा काफी दिनों से हो रही थी। इस सीरीज़ में पंकज त्रिपाठी जैसे वर्सेटाइल एक्टर ने काम किया है तो वहीं कुलभूषण खरबंदा, रसिका दुग्गल और दिवेन्दु शर्मा (प्यार का पंचनामा वाला लिक्विड) जैसे अच्छे कलाकार भी हैं। इन सबने अपनी क्षमता और उम्मीद के अनुसार काम भी किया है। इसमें चॉकलेटी बॉय अली फज़ल भी हैं जो मिर्ज़ापुर में बवाल मचाना चाहते हैं और पूर्वांचल के गुंडे के रोल में आने की कोशिश की है लेकिन शायद गलती से आ गए इस सीरीज़ में या डायरेक्टर समझ नहीं पाए कि इस रोल के लिए वे सही नहीं हैं। कहीं-कहीं तो उनकी एक्टिंग, उनकी भाषा और एक्सप्रेशन देखकर हंसी आ जाती है।

एक समय में विश्वभर में कालीन के व्यापार का गढ़ माने जाने वाले मिर्ज़ापुर क्षेत्र और उस कालीन के व्यापार के इर्दगिर्द क्राइम और राजनीति के बैकग्राउंड को लेकर यह सीरीज़ बनाई गई है लेकिन गालियों, अनावश्यक सेक्स सीन, ज़बरदस्ती की अतिशयोक्तिपूर्ण मार-काट वाले सीन का पुलिंदा भर बनकर रह गया है। कुछ जगह तो गालियां ठूंसने के लिए वाक्य लम्बे कर दिए गए हैं। किरदार एक वाक्य बोलने के लिए 10 गालियां दे रहे हैं। देखते हुए कई बार ये लगता है कि भाई अब रुक जाओ कुछ बोल लो काफी गाली दे चुके लेकिन ये सिलसिला रुकता नहीं शुरू से अंत तक चलता रहता है।

क्राइम सीन की तो बात ही मत पूछिए। मिर्ज़ापुर के सबसे बड़े बाहुबली कालीन भैया (पंकज त्रिपाठी) का लड़का मुन्ना भैया (दिवेन्दु शर्मा) एक लड़के की उस्तरे से गला रेतकर सिर्फ इसलिए हत्या कर देता है कि उसके जूतों पर पेशाब के छींटे आ गए थे और उसे किसी को उस्तरे से गला रेतकर देखना था कि कैसा लगता है। इस सीन में एक संवाद है जिसमें मुन्ना भैया का दोस्त कहता है ‘मुन्ना भइया आप फिर जब कहेंगे आपको फिर डेमो दे देंगे उस्तरे से गाला रेतने का’ इतने पर ही बात नहीं रुकती।

मुन्ना भैया कटे हुए गले और चेहरे को उँगलियों से खोलकर देखता है कि खून कैसे बहता है। अति हो गई मतलब जहां डांट से, एक थप्पड़ से काम चल जाए वहां सनकी गुंडे गोली और उस्तरा चलाते हैं और कालीन भैया के आदमी गुड्डू भैया (अली फज़ल) का किरदार तो ऐसा है कि जिसे पता ही नहीं है और न ही अंदाज़ा है कि उसे करना क्या है! चलती सड़क पर बिना मतलब गोलियां चलाता फिरता है, होटल में छोटे से बच्चे को हड़काता फिरता है और परचुन की दुकान वाले को गोलियों से डराता है और जहां हां या ना कहना है वहां गालियों की गठरी खोल देता है और भाषा तो माशाअल्लाह है, पूर्वांचल की बोली भाषा के नाम पर कुछ भी बोला गया है।

भले ही वास्तविकता से वास्ता नहीं है इस सीरीज़ का लेकिन दिखाया तो कालीन के कारोबार और उसमें लिप्त क्राइम ही है न और सबसे बड़ी बात कि टाइम पीरियड वर्तमान का है लेकिन मिर्ज़ापुर की वर्तमान स्थिति बिलकुल ही दीगर है। तो ना समय, ना देशकाल, ना भाषा तो मिर्ज़ापुर, जौनपुर, गोरखपुर का नाम डालने का मतलब क्या हुआ? बहुत सारे सीन और संवाद तो साफ-साफ कॉपी किए हुए लगते हैं और बनावटी दिखते हैं। कई बार तो लगता है कि कहानी कहीं और जा रही और क्राइम, गालियां और सेक्स अपना अलग गुट बनाकर अलग ही दिशा में चले जा रहे हैं।

देख-देखी वेब सीरीज़ बनाने और क्राइम और गालियां भर देने से भारतीय परिपेक्ष्य में वेब सीरीज़ का भविष्य कहाँ तक जाएगा? कुछ तो जुड़ाव हो ज़मीनी हकीकत से, थोड़ा शोध किया गया होता, आखिर जो मिर्ज़ापुर के नाम पर जाकर ये सीरीज़ देखेगा उसे क्या मिलेगा वो क्या कनेक्ट कर पाएगा और वो क्यों देखे ये सीरीज़ इसका जवाब कहां है? अगर वेब सीरीज़ फिल्मों का विकल्प बनाना चाहती हैं तो वे कुछ दो-चार गिनीचुनी बातों के सहारे ज़्यादा दिन तक नहीं चल पाएंगी। आखिरकार भारत का परिवेश तो हॉलीवुडिया जनता से अलग ही है ना, यहां सिर्फ फंतासी से तो काम नहीं चलेगा और उद्देश्य क्या है गालियां ठूंसने का क्राइम ठूंसने का?

क्या इसका असर नहीं पड़ेगा लोगों पर लोग पसंद करेंगे तो कुछ तो असर भी होगा। लोग वास्तविक दुनिया से हटकर किसी अलग दुनिया में ही जाएंगे। इससे पहले कि इसपर भी सेंसर चले सोचना पड़ेगा कि सिर्फ गालियों और क्राइम सीन से से ही वेब सीरीज़ नहीं बनती भाई, उसमें स्टोरी और बुनावट भी होनी चाहिए और उतना ही ये सब सीन हो जो खप जाए और ओवररेटेड ना लगे लगे।

मिर्ज़ापुर का एक एपिसोड देखने के बाद ही समझ आ गया था देखने लायक कुछ नहीं है लेकिन पूरा देखा ताकि सबको बता सकूं कि ये क्यों नहीं देखना है, इतना वक्त भी दो और मिले सिर्फ कुछ गालियां और चीरफाड़। बाकि पंकज त्रिपाठी, रसिका दुग्गल और दिवेन्दु शर्मा ने अच्छी एक्टिंग की है लेकिन अली फज़ल को बैठकर एक बार अपनी एक्टिंग देखनी चाहिए कि उन्होंने क्या किया है।

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