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“क्या देश को बांटने वाली भीड़ अधिक महत्वाकांक्षी हो रही है?”

भीड़तंत्र

भीड़तंत्र

किसी चीज़ की समझ ना हो और इस वजह से उपजी अनभिज्ञता का मतलब एवं निराकरण दोनों बड़ा आसान है। पहले बहुसंख्यक लोग ऐसे ही होते थे। कभी कुछ नई चीज़ समझते तो कभी नई जिज्ञासा प्रकट करते थे। वे जबतक लगातार अन्वेषण और अपने ज्ञान के विस्तार में लगे थे, तबतक सबकुछ सुचारू और सुंदर ही था।

अब इस नए दौर में हम और आप अपने अधकचरे ज्ञान के सहारे हर उस चीज़ को जान बैठते हैं जिसकी हमें रत्ती भर भी समझ नहीं होती है। नतीजतन ‘कॉन्फ्लिक्ट ऑफ नॉलेज’ से ‘कॉन्फ्लिक्ट ऑफ सो कॉल्ड आइडियोलॉजी’ और इससे ‘कॉन्फ्लिक्ट ऑफ सोशल स्ट्रक्चर’ का नया सफरनामा हमारे आस-पास आसानी से महसूस किया जा सकता है।

बहुत से लोगों को ना जर्मनी-इटली का इतिहास, ना हिटलर-मुसोलिनी का व्यक्तित्व, ना नाजीवाद-फासीवादी और ना ही फासिज़्म या फासिस्ट के बारे में पता होता है, लेकिन फिर भी वे व्हाट्सएप और फेसबुक पर प्राप्त मोड्यूलेटेड नए वाले ज्ञान के बड़े वाले ज्ञानी बन जाते हैं।

मौजूदा दौर में हम हर उस मुद्दे की हद तक जाकर अपनी जीत सुनिश्चित करना चाहते हैं, भले ही हमारे पास क्यों ना उस विषय में न्यूनतम ज्ञान भी ना हो। लोगों को हम एक दिन में मनवाना चाहते हैं कि हम बहुत बड़े ज्ञानी हैं।

हमें यहां तक मतलब नहीं कि सामने वाला हमारे तर्क को गंभीरता से सुन भी रहा है या हास्यास्पद समझकर मन ही मन में खिल्ली उड़ा रहा है। असल में हम एक अति महत्वाकांक्षी भीड़ का हिस्सा हैं जो एक ही दिन में सबकुछ पा लेना चाहती है।

भारत में इंटरनेट के दौर में भीड़तंत्र को बड़े ही सुनियोजित तरीके से संचालित किया जा रहा है और हम समझ नहीं पा रहे हैं कि यह किस प्रकार से हमारे लिए ही खतरा बन रहा है। आज हम सभी को बेबाकी से अपनी आवाज़ बुलंद करते हुए देश को टुकड़ों में बांटने वाली ताकतों से ना सिर्फ सचेत हो जाना चाहिए बल्कि उनका सामना भी करना चाहिए।

मैं अंत में बस आपको हरिशंकर परसाई की कुछ पंक्तियों के साथ छोड़ जाता हूं, जो इस प्रकार है-

दिशाहीन, बेकार, हताश, नकारवादी, विध्वंसवादी बेकार युवकों की यह भीड़ खतरनाक होती है। इसका उपयोग खतरनाक विचारधारा वाले व्यक्ति और समूह कर सकते हैं। इस भीड़ का उपयोग नेपोलियन, हिटलर और मुसोलिनी ने किया। यह भीड़ धार्मिक उन्मादियों के पीछे चलने लगती है।

यह भीड़ किसी भी ऐसे संगठन के साथ हो सकती है जो उन्माद और तनाव पैदा कर दे। फिर इस भीड़ से विध्वंसक काम कराए जा सकते हैं। यह भीड़ फासिस्टों का हथियार बन सकती है। हमारे देश में यह भीड़ बढ़ रही है। इसका उपयोग भी हो रहा है। आगे इस भीड़ का उपयोग सारे राष्ट्रीय और मानव मूल्यों के विनाश के लिए, लोकतंत्र के नाश के लिए करवाया जा सकता है।

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