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“बुढ़ापे में शौक से गया था ताजमहल देखने, बस कड़वे अनुभव लेकर लौटा”

ताजमहल देखने के लिए लाइन में लगे लोग

ताजमहल देखने के लिए लाइन में लगे लोग

मैं बचपन से ताजमहल की खूबसूरती का दीवाना होने के साथ-साथ इस खूबसूरत इमारत को एक दिन बहुत करीब से निहारना भी चाहता था। कभी बॉलीवुड फिल्मों तो कभी अखबारों में प्रकाशित चित्रों के ज़रिए अभी तक मैंने इस नायाब संगमरमरी इमारत को बस दूर से देखा था। जब मेरा सपना पूरा हुआ और मैंने ताजमहल को करीब से देखा, तब मेरे ज़ुबान से सिर्फ और सिर्फ ‘आह ताज’ ही निकलता रहा।

मेरी ताज भ्रमण की यात्रा बहुत ही अकल्पनीय और असहनीय थी, जो मुझे बार-बार यह सोचने को मजबूर करेगी कि अब यहा नहीं आना है। मैं एक 70 वर्षीय, रिटायर्ड गवर्नमेंट टीचर हूं और ताजमहल से लगभग 1300 किलोमीटर दूर हैदराबाद से अपने खास दोस्त के साथ 12 नवंबर 2018 को आया। मेरी और मेरे मित्र की उम्र लगभग एक ही जैसी है।

हम दोनों ने जैसे ही ताजमहल जाने के लिए शिल्पग्राम पार्किंग में कदम रखा, हमें अव्यवस्थाओं का मंज़र दिखाई देने लगा। वहां का नज़ारा ऐसा था कि युवा वर्ग के पर्यटक भी जद्दोजहद करते दिखाई पड़ रहे थे। हमलोगों ने बस के लिए इंतज़ार किया लेकिन बस नहीं मिली और हम पैदल ही ताजमहल के लिए निकल पड़े।

मुझे बस ताज के दर्शन करने थे और जल्द से जल्द मैं वहां पहुंचना चाहता था। करीब 20 मिनट पैदल चलने के बाद हमें दूर से ताज दिखाई दिया और हम टिकट लेने के लिए लाइन में खड़े हो गए। लाइन लंबी होने की वजह से मुझे लगा कि अब तो निराश होकर ही घर लौटना पड़ेगा। हम बुजुर्गों के लिए टिकट काउंटर पर कोई खास व्यवस्था नहीं थी।

काफी जद्दोजहद के बाद हम टिकट लेने में कामयाब हुए और खुशी-खुशी ताज के प्रवेश द्वार पर पहुंच गए। कुछ पल बाद हम दोनों रॉयल गेट से प्रवेश करते हुए जब ताज के ठीक सामने पहुंचे, तब मेरे मुंह से निकला, “My Dream Has Come True”. मैं काफी खुश होकर मन ही मन सोच रहा था कि मेरा मकसद  पूरा हुआ लेकिन आगे कई ऐसे अनुभव हुए जिसने मुझे यह कहने को मजबूर किया कि अब शायद मैं फिर कभी ताजमहल देखने ना आऊं।

हम दोनों दोस्त ताज के सामने खड़े होकर सेल्फी लेना चाहते थे लेकिन भीड़ इतनी थी कि संभव ना हो सका। मेरे दोस्त ने मुझे सांत्वना दी और हम आगे बढ़ने लगे। अब मेरी यात्रा का दूसरा कड़वा अनुभव मेरे सामने था। मैं बहुत निराश हुआ क्योंकि मेरी एक ख्वाहिश अधूरी रह गई। मैंने और मेरे मित्र ने नीचे फव्वारे के पास खड़े होकर एक सेल्फी ली।

ताजमहल के बाहर का नज़ारा

सेल्फी लेने के बाद मैं फिर खुश हो गया और पुराने सारे गिले-शिकवे मिटाकर अपने मित्र के साथ आगे बढ़ा। अब मेरे दोस्त ने सुझाव दिया कि हम सेंट्रल टैंक के लेडी डायना बेंच पर सेल्फी लेंगे लेकिन वह भी अधूरी रही और हम फिर निराश होकर आगे बढ़ गए।

अब हम दोनों मुख्य मकबरे के नज़दीक आते जा रहे थे। हम दोनों जल्दी-जल्दी अपने ‘शू कवर’ पहनकर जैसे ही आगे बढ़े, तब पता चला कि ताज अभी दूर है। हम एक लाइन में जाकर लग गए जहां पहले से बच्चे, बड़े, युवा, महिला और बुजुर्ग लगे हुए थे। कुछ लोग वहां ऐसे भी थे जो लाइन तोड़कर आगे बढ़ रहे थे जिन्हें देखकर हम जैसे असहाय लोगों का खून जल रहा था। उनको कोई रोकने वाला नहीं था।

लाइन में कई बच्चे रोते हुए अपने पेरेन्ट्स को बाहर जाने की ज़िद कर रहे थे। यह सब देखने और सहने के बाद भी हम लाइन में लगे हुए थे। मेरे घुटने में भी काफी दर्द हो रही थी लेकिन फिर भी ताज देखने के लिए मैं खड़ा रहा।

लाइन में लगातार आधे घंटे खड़े रहने के बाद हमें प्रवेश द्वार की सीढ़ियों के नज़दीक पहुंचने का मौका मिला। हम जैसे-जैसे अागे बढ़े, भीड़ और बढ़ती गई। मैं कैसे बताऊं कि उम्र के अंतिम पड़ाव में आकर घुटनों के दर्द, सूरज की तेज़ रौशनी और बेकाबू भीड़ के सामने हमारी कैसी हालत थी। मैं तो कई दफा अपने मित्र से कहा कि अब हिम्मत नहीं हो रही है, छोड़ देते हैं लेकिन मित्र मुझे कहता रहा कि बस आए हैं तो देख कर ही जाएंगे।

कुछ देर बार हम मुख्य गुंबद के अंदर प्रवेश करते हुए बाहर भी निकल गए लेकिन भीड़ की वजह से पता ही नहीं चल पाया। अब मेरा शरीर जवाब दे चुका था और मेरी हिम्मत नहीं थी कि हम फिर से अंदर जाएं। मन ही मन बहुत अफसोस हो रहा था कि दुनिया की खूबसूरत इमारतों में शामिल ताजमहल का क्या हाल बना दिया है।

मैं उम्मीद करता हूं कि भविष्य में यहां हालात ऐसे नहीं होंगे और खासतौर पर हम जैसे बुजुर्गों का ध्यान रखा जाएगा। हम भी मुहब्बत के इस प्रतीक को अच्छे से निहार पाएंगे। यह हमारी शान है और इसे बरकरार रखना है।

नोट: योगेश एक स्वतंत्र पत्रकार हैं जिन्होंने एक पर्यटक के साथ बातचीत के आधार पर यह लेख लिखा है।

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