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“क्या इन 5 सालों में विकास के वादों पर प्रधानमंत्री के जुमले ज़्यादा भारी पड़ गए?”

नरेन्द्र मोदी

नरेन्द्र मोदी

आज से चार साल पहले बच्चों से लेकर बुज़ुर्गों तक की ज़ुबान पर सिर्फ और सिर्फ नरेन्द्र दामोदर दास मोदी का नाम था। लोग बीजेपी से भी ज़्यादा नरेन्द्र मोदी की तारीफें करने लगे थे। इससे पता चलता है कि वो कितने लोकप्रिय नेता हैं। 26 मई 2014 को नरेंद्र मोदी ने देश के 16वें प्रधानमंत्री के रूप में पद संभाला।

चुनाव से पहले नरेन्द्र मोदी द्वारा कई जुमले गढ़े गए, जैसे- ‘सबका साथ सबका विकास’, ‘बहुत हुई मंहगाई की मार अबकी बार मोदी सरकार’, ‘बहुत हुई पेट्रोल की मार अबकी बार मोदी सरकार’, ‘देश को बचाना है तो मोदी सरकार को लाना है।’ इन जुमलों के ज़रिए वोटरों को अपने पाले में करने में भाजपा सफल रही।

सबसे पहले देशभर में स्वच्छता अभियान चलाया गया जिसके तहत शौचालय निर्माण के अलावा गंगा को साफ करने की बात कही गई। कई हज़ार रुपये खर्च करने के बाद भी गंगा की हालत हमारे सामने है।

कालेधन पर लगाम लगाने के लिए देश में नोटबंदी के फैसले लिए गए लेकिन परिणाम क्या हुआ यह सभी जानते हैं। कृषि मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक किसानों पर काफी बुरा प्रभाव पड़ा है।  ऐसे में कालेधन पर लगाम लगाने की बात तो छोड़ ही दीजिए। नोटबंदी के दौरान 100 लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा।

प्रधानमंत्री जनधन योजना के तहद देशभर में 32 करोड़ से अधिक बैंक खाते खोले गए।  दावा किया गया कि इससे गरीबों को काफी फायदा होगा लेकिन जब गरीबों के पास खाने के ही पैसे नहीं हैं, तब वे ज़ीरो बैलेंस का खाता लेकर क्या करेंगे?

नोटबंदी के दौरान मोदी ने कहा, “मैंने देश से 50 दिन मांगे हैं, अगर 30 दिसंबर के बाद मेरी कोई गलती निकल जाए, तब आप जिस चौराहे पर खड़ा कर सजा देना चाहें, मैं तैयार हूं लेकिन मेरे देशवासी दुनिया आगे बढ़ रही है। आप मुझे मौका दीजिए और आपने जैसा हिंदुस्तान चाहा है, मैं वैसा हिंदुस्तान आपको दूंगा।”

एक राजनैतिक रैली के दौरान नरेन्द्र मोदी के समर्थक। Photo Source: Getty

प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना तहत लगभग 4 कोरोड़ से भी ज़्यादा घरों में गैस सिलेंडर बांटने के दावे किए गए। चलिए मान लेते हैं कि बहुत लोगों को इस योजना का फायदा मिला लेकिन सोचने वाली बात यह है कि क्या उज्ज्वला योजना वाकई में गरीब जनता के लिए थी? यदि हां, फिर बच्ची भात-भात करते हुए भूख से कैसे मर गई?

क्यों किसानों की आत्महत्याओं का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है? नज़ीब कहां है? जुनैद, अफराजुल और रोहित की मौत का ज़िम्मेदार कौन है? वे भगौड़े कहां हैं, जो देश का पैसा लेकर भाग गए?

कहां हुआ सबका साथ सबका विकास? सभी को साथ लेकर चलने का यह कैसा नारा है जहां मुसलमानों को मार दिया जाता है। दलित होने पर उसे मंदिर में प्रवेश करने नहीं दिया जाता है। यह कैसी राजनीति है जहां बलात्कार की बढ़ती घटनाओं के बीच सरकार सिर्फ राजनीति कर रही है।

यही कुछ सवाल हैं जो चीख-चीखकर कहते हैं कि सरकार ने 2014 में जो वादे किए थे, वे जुमलों में क्यों तब्दील हो गए। इन चीज़ों से ध्यान भटकाने के लिए सरकार राम मंदिर और मस्जिद का मुद्दा लेकर आती है। जब तक इस देश में लोग धर्म के नाम पर वोट देते रहेंगे तब तक विकास संभव नहीं है।

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