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“उस घटना के बाद मैं शाम को अकेले सड़क पर चलने से डरती हूं”

हर रोज़ की तरह शाम को घर आना कुछ नया नहीं था मगर उस दिन दोस्त की मेहंदी थी। पापा से परमिशन तो मिली मगर खुद में डर था कि आज रुक जाऊंगी तो शायद शादी के दिन रुकने ना मिले। लोग इसे बंदिश का नाम देंगे मगर यह बंदिश नहीं थी, भय था कि ऑटो से आती जाती है, देर हो गई तो कैसे आएगी।

बिना वक्त गवाए मैं शाम के 5:30 बजे सर्दी के मौसम में दोस्त के घर से निकल गई। ऑटो का सफर भी लम्बा था, करीब 45 मिनट लम्बे रास्ते के बाद मैं घर के नज़दीक पहुंची ही थी कि मेरी छोटी बहन की दोस्त ऑटो में बैठ गई। वो मेरे घर के बगल में रहती थी। यह बताना ज़रूरी है क्योंकि मेरे घर दो रास्ते जाते हैं, एक लम्बा रास्ता और एक छोटा। मैं लम्बे रास्ते से घर जाती हूं क्योंकि उस रास्ते में स्ट्रीट लाइट्स लगी हैं। घर अनेक हैं, आप कह सकते हैं मैं नाक को सीधे नहीं बल्कि हाथ घुमाकर पकड़ती हूं क्योंकि सीधे पकड़ने में अकेलापन मिलता है।

तो उस दिन बहन की दोस्त साथ थी, सोचा आज इसके साथ हूं तो अपनी गली सही रहेगी। मैंने सीधा रास्ता चुना क्योंकि अकेलापन साथ नहीं था आज।

उस वक्त मोहल्ले में शिफ्ट हुए डेढ़ महीने ही हुए थे और कह सकते हैं यही ज़िन्दगी बितानी थी अब मुझे। मैं और बहन की दोस्त बात करते चलते रहें, अंधेरे में। ऐसे तो रास्ते में कई अपार्टमेंट्स बने हुए हैं मगर स्ट्रीट लाइट्स नहीं हैं, सड़कें भी टूटी-फूटी हैं। उस वक्त शाम का 6:15 हो रहा था। एक रास्ते के बाद मुझे लेफ्ट जाना था और मेरी दोस्त की बहन को राइट। हमने बाय-बाय करके अपने रास्ते मोड़ लिए।

मेरे आगे एक गड्ढा था और उसमें पानी, किनारे रखे पत्थरों के सहारे मैं चली जा रही थी कि तभी एक बाइक तेज़ी से इधर मुड़ी। रोड इतनी खराब थी कि वहां कोई गाड़ी आगे जाती नहीं थी। मैंने सोचा यह बाइक वाले को बड़ी जल्दी है तभी ऐसे रास्ते में भी इसने बाइक घुसा ली।

इसी बीच मैंने टूटा रास्ता पार कर लिया और जैसे घर के नज़दीक पहुंची उस बाइक वाले ने अपनी बाइक अचानक से मोड़ ली। जब तक मैं कुछ समझ पाती मेरे बगल से गुज़रते हुए मेरी छाती पर उसने हाथ मार दी और फुर्र से बाइक स्पीड करते हुए भाग गया। वहां ना लाइट थी, ना सही रोड और सड़क पर सामने पानी था, जिसकी वजह से मैं भागकर उसका पीछा भी ना कर सकीं।

बस ज़ोर से चिल्लाई, ना बाइक का नंबर देख पायी ना हेलमेट में छुपे चेहरे को और खुद को उस वक्त एकदम से नंगा महसूस करने लगी। लोग कहेंगे कपड़े कम होंगे, मगर दिसम्बर के महीने में स्वेटर जीन्स और स्टोल के साथ मैं पूरी तरह लिपटी हुई थी। उस वक्त घर जाकर सोचा, आखिर मैं कहा चूक गई, मेरी क्या गलती रही होगी?

उस दिन के बाद आज तक शाम को घर आने के वक्त उस रास्ते से नहीं आती हूं। दो साल बीत चुके हैं उस बात को मगर रोड में आज भी लाइट्स नहीं हैं, रोड भी अब तक ठीक से नहीं बने हैं और मेरी नज़र अब भी हर बाइक वाले में उस आदमी को खोजती है।

मैं कोई बाइक या गाड़ी गुज़रने पर रुक जाती हूं। अब कोई कहता है, Safety is in your hands, मगर जो उस शाम हुआ, उसको लेकर मैं यह कह सकती हूं कि जब तक मैं समझ पाती तब तक शायद ही कोई रिफ्लेक्स एक्शन भी काम करता। ना चाकू मार पाती, ना खुद को बचा पाती।

यह तो मेरी बात हुई, जो कि शाम का वक्त था मगर दिन हो या रात, लम्बे रास्ते का रुख करना मेरी नहीं उस गली की हर लड़कियों की मजबूरी है। किसी के पापा या भाई उन्हें लेने और छोड़ने जाते हैं, तो कोई मेरी तरह लम्बे रास्ते से आती-जाती है।

कब तक लड़कियों को दूसरे लड़कों से सुरक्षा के लिए अपने घर के लड़कों का सहारा लेना पड़ेगा? मेरा तो कोई भाई भी नहीं, पापा और मेरा आने जाने का समय भी एक नहीं है। मेरी कोशिश होती है कि पापा को परेशान ना करूं इसलिए खुद को इंडिपेंडेंट रखना चाहती हूं मगर ऐसी घटनाओं के बाद आज़ादी कभी-कभी मज़ाक बनकर रह जाती है।

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फोटो प्रतीकात्मक है। (फोटो सोर्स- Pexels)

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