शिक्षा समाज का वह महत्वपूर्ण अंग है जिसके बिना सभ्य समाज की कल्पना भी नहीं की जा सकती। संपूर्ण भारत में अभी एक स्लोगन बहुत प्रसिद्ध हुआ है, “पढ़ेगा इंडिया तभी तो बढ़ेगा इंडिया।” छत्तीसगढ़ स्कूल शिक्षा विभाग पर यह स्लोगन लागू नहीं होता। जब हम सरकारी स्कूलों पर नज़र डालेंगे तब छात्रों के भविष्य को लेकर हमारे माथे पर चिंता ज़रूर दिखेगी। इससे हम समझ पाएंगे कि किस प्रकार से स्कूल शिक्षा विभाग ऑक्सिजन की बाट जोह रहा है।
साल 2015 में छत्तीसगढ़ में शिक्षा की दशा को लेकर केंद्र व राज्य दोनों ही सरकारों ने सर्वे कराया जिसमे छत्तीसगढ़ के करीब 16000 विद्यालयों को ‘C’ व ‘D’ श्रेणी में रखा गया था। इसी रिपोर्ट के बाद अक्टूबर 2015 में ‘APJ शिक्षा गुणवत्ता अभियान‘ शुरू की गई। इस अभियान की शुरुआत करते हुए छत्तीसगढ़ मुख्यसचिव विवेक ढांड ने छत्तीसगढ़ के स्कूली शिक्षा पर चिंता प्रकट की थी। उन्होंने कहा था कि राज्य के स्कूलों में शिक्षा की दशा इतनी बदतर है कि आठवीं के छात्र पांचवीं की किताबें नहीं पढ़ सकते।
रिपोर्ट के मुताबिक आठवीं के 73.5 % छात्र उनसे छोटी कक्षाओं की किताब नहीं पढ़ सकते। कक्षा 5वीं के लिए यह आंकड़ा 57 % है। 31 मार्च मार्च 2017 को जारी हुई CAG की रिपोर्ट पर जब हम नज़र डालेंगे, तब पाएंगे कि केवल 25% स्कूलों को ही ‘A’ ग्रेड के दाएरे में रखा गया है। इस रिपोर्ट में एक और बात सामने आती है कि शिक्षा पर प्रतिवर्ष लगभग 5000 करोड़ खर्च किए जाने के बाद भी छत्तीसगढ़ के 879 गांवों में प्राथमिक स्कूल आज तक नहीं है।
छत्तीसगढ़ विधानसभा में स्कूली शिक्षा मंत्री केदार कश्यप ने एक अतार्किक प्रश्न के जवाब में बताया था कि छत्तीसगढ़ के स्कूलों में प्रिंसिपल के कुल 47562 पदों में से 24936 पद आज तक रिक्त हैं। यानी 52.42% उच्च पद रिक्त है। पंचायत शिक्षकों के 53000 पद रिक्त हैं और बस्तर संभाग जो हमारे मंत्री जी का गृह क्षेत्र है वहां 75% से अधिक स्कूल शिक्षकों की कमी से जूझ रहे हैं।
हाल ही में बस्तर प्रवास के दौरान स्वतंत्रता दिवस के कार्यक्रम में जिस स्कूल में हमें बच्चों के साथ राष्ट्रगान का मौका मिला, वहां केवल 2 शिक्षक स्कूल संचालित कर रहे थे। राजधानी रायपुर के ही कबीर नगर में केवल 1 शिक्षक प्राथमिक स्कूल संभाल रहे हैं।
छत्तीसगढ़ की स्कूली शिक्षा व्यवस्था का हाल भयावह है। यह अधिक चिंता का विषय इसलिए भी है क्योंकि हर साल सरकार बजट का लगभग 20 फीसदी ( लगभग 5000 करोड़ ) हिस्सा शिक्षा पर खर्च करती है। इतनी बड़ी राशि खर्च किए जाने के बाद भी राज्य में शिक्षा का स्तर गिरता जा रहा है। इतने बड़े बजट के बाद भी छत्तीसगढ़ में शिक्षा की ऐसी स्थिति सरकार की असफलताओं की पोल खोलती है।
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