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‘केदारनाथ’ में प्रेम कहानी दिखाने के साथ आपदा पर बात क्यों नहीं हुई?

फिल्म केदारनाथ

फिल्म केदारनाथ टीज़र

केदारनाथ में तबाही के बाद चारों ओर एक बेहद डरावना नज़ारा था। हर तरफ लोग चीखते-चिल्लाते अपनों की तलाश कर रहे थे। पहाड़ों की मनोरम गोद अचानक जंजाल बन गई थी और भूखे-प्यासे लोग खुद को बचा रहे थे। लोगों के बाहर निकलने के करीब सारे रास्ते बंद थे। देश की तीनों सेनाएं कंधे से कंधा मिलाकर जो कुछ बचा था उसे सुरक्षित बाहर निकालने का कार्य कर रही थी। लोग इस जलप्रलय में ज़िंदा दफन हो गए और जो बचे थे वो अपनों की तलाश रहे थे।

इस जयप्रलय में ना जाने कितनी माताओं की गोद सूनी हुई, कितनी पत्नियों के सुहाग उजड़ गए, कितने लोगों ने अपने परिवार खोए और कितने परिवार आज भी अपने लोगों के लौट आने का रास्ता निहार रहे हैं। जहां इस त्रासदी में विनाश के कारण खोजने थे, वहां फिल्म निर्माता निर्देशक अभिषेक कपूर प्रेम और नग्नता खोज बैठे।

असल में 2013 में उत्तराखंड के केदारनाथ में आई भीषण जलप्रलय की घटना को लेकर बनी फिल्म ‘केदारनाथ’ के टीज़र के सामने आते ही हंगामा खड़ा हो गया। कहा जा रहा है कि फिल्म अगले महीने रिलीज़ होने वाली है। फिल्म का विरोध कर रहे लोगों ने फिल्म के टीज़र में दिखे सुशांत राजपूत और सारा अली खान के किसिंग सीन को आस्था के साथ छेड़छाड़ बताया है। विरोध कर रहे लोगों का मानना है कि यह फिल्म ‘लव जिहाद’ का समर्थन कर रही है। सात दिसंबर को रिलीज़ हो रही अभिषेक कपूर की यह फिल्म बाढ़ में फंसी एक हिंदू श्रद्धालु को एक मुस्लिम द्वारा बचाए जाने के बाद दोनों के बीच की मुहब्बत की कहानी पर आधारित है।

फिल्म का केदारनाथ के पुजारियों से लेकर इक्का-दुक्का राजनैतिक दलों ने विरोध शुरू कर दिया है। इस फिल्म की कहानी कनिका ढिल्लों ने लिखी है। ये कहना गलत नहीं होगा कि कहानी लिखने से पहले बैठकर बात हुई होगी कि इस त्रासदी से व्यापार कैसे निकाला जा सकता है। सोचा होगा एक हिन्दू लड़का और एक लड़की को लेकर फिल्म बनाएंगे, फिर सोचा होगा, नहीं यार ऐसे नहीं। ऐसा करो कि लड़का मुस्लिम लो और लड़की हिन्दू, इससे फिल्म का प्रमोशन अच्छे से हो जाएगा। कोई विरोध करे तो उसे हिन्दू कट्टरपंथी कहकर किनारे कर दिया जाएगा। इससे राजनैतिक दलों में शोर होने से वोट बैंक में भी बढोतरी होगी।

कुछ लोगों को मेरी सोच से लग सकता है कि मैं सेक्यूलर नहीं हूं। ऐसे लोगों को मैं कहना चाहूंगा कि फिल्म में जिस तरीके से प्रेमी युगल को बाढ़ के बैकग्राउंड में बोल्ड सीन करते हुए  दिखाया गया है, वह शर्मनाक है।

उस त्रासदी में हज़ारों लोग मारे गए थे। ऐसे में तो यहीं समझा जा सकता है कि फिल्म निर्माता को संवेदना से कोई मतलब नहीं, बस सेक्स और वासना दिखाकर फिल्म हिट कराना है। मैं ये नहीं कहता कि इस विषय पर फिल्म नहीं बननी चाहिए थी लेकिन वो चीज़ें भी तो दिखाइए कि इतनी बड़ी त्रासदी हुई कैसे थी। फिल्म में दिखाना चाहिए कि जब हम प्रकृति के साथ खिलवाड़ करते हैं, तब वह कैसे वह अपना रौद्र रूप दिखाती है।

फिल्म में दिखाया जा सकता है कि आपदा के वक्त केदारनाथ में मौजूद रहे चश्मदीदों ने किस तरह घटना को महसूस किया। देश के इतिहासकार, वैज्ञानिक, भूगर्भशास्त्री और आपदा विशेषज्ञों की टीम को तबाही से पहले आगाह करते दिखाया जा सकता था। आपदा के बाद ये दिखाया जा सकता था कि प्रकृति से अत्यधिक छेड़छाड़ के क्या नतीजे हो सकते हैं।

फिल्म में भारतीय सेना के बारे में भी दिखाया जा सकता था, जिन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना कितने लोगों की जान बचाई थी। ये भी दिखा सकते थे कि किस तरह त्रासदी के बाद भूख और विषम परिस्थितयों से लोगों को जूझना पड़ा।

फिल्म में अगर प्यार दिखाने का इतना ही शौक है तो हिना तलरेजा और अदनान का प्यार दिखाइए जहां अदनान ने कैसे अपने दोस्तों से हिना का गैंगरेप करवाया और फिर उसे गोली मार दी गई। फिल्म बनाने वालों को पता है कि फिल्म के बहाने कैसे प्रसिद्धि और पैसा कमाया जाता है। वे जानते हैं कि धार्मिक रंग देकर फिल्मी मसालों को बेचा जाता है। फिल्म मेकर्स से को पता होता है कि कैसे कंट्रोवर्सी पैदा की जाती है।

देश में इस पद्मावत फिल्म का विरोध गलत था, बाजीराव मस्तानी का विरोध गलत था लेकिन माफ करना इस फिल्म का विरोध जाएज़ है और मैं समर्थन करता हूं।

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