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“देश के छात्रावासों में स्टूडेंट्स को कैदी की तरह क्यों रखा जाता है?”

हॉस्टल की प्रतीकात्मक तस्वीर

हॉस्टल की प्रतीकात्मक तस्वीर

हमारा देश कई तरीकों से बटा हुआ है। जब भी शिक्षा की बात होती है तब छात्रावास वाले विद्यालयों का ज़िक्र नहीं होता है। अभी हाल ही में जब एसआरएम इंस्टीट्यूट से अनुचित घटना की खबर सामने आई तब मुझे अपने विद्यालय के छात्रावास की बात भी याद आ गई। मैं तीसरी कक्षा से ही छात्रावास में रह रहा हूं। ऐसा इसलिए क्योंकि गाँव में अंग्रेज़ी माध्यम के स्कूल नहीं थे और घर में अलग-अलग तरह की दिक्कतें थीं।

मैं अब तक जिन छात्रावासों में रहा हूं वहां बच्चों को अच्छी शिक्षा के लिए नहीं बल्कि दो कारणों से भेजा जाता है। पहला यह कि वह गाँव में रहकर बांकियों की तरह अनपढ़ और बेरोज़गार ना रह जाएं और दूसरा, छात्रावास जाएगा तब इसकी बदमाशी कम होगी।

मेरा मानना है कि अच्छी शिक्षा सभी के लिए एक प्राथमिकता तो होनी ही चाहिए। ज़्यादातर लोग समाज के लगभग निम्न मध्यम वर्ग या मध्यम वर्ग से आते हैं। अभी उन बड़े-बड़े छात्रावास वाले विद्यालयों की बात नहीं हो रही है जहां बच्चों को अंग्रेज़ी पढ़ने, विदेश भेजने की तैयारी करवाई जाती है। अभी उन छात्रावासों की बात हो रही है जहां बच्चे अगर घर की याद में भागने की कोशिश करें तब उन्हें स्टंप से मारा जाता है। जहां लड़कियों को शारीरिक और मानिसक उत्पीड़न से गुज़रना पड़ता है।

जब एक 15-16 साल का लड़का छात्रावास से भागने की कोशिश करता था तब उसे पकड़कर बहुत पीटा जाता था। उससे ना तो यह पूछा जाता था कि वह क्यों भाग रहा है और ना ही उसे कुछ बोलने का मौका दिया जाता था। उसे डरा-धमकाकर उसके घर में बताया जाता था कि लड़का बहुत बदमाश है। अधिकतर मध्यम वर्गीय माता-पिता उसी बच्चे को और अधिक डांट लगा देते थे। लड़कियां तो कभी भागने की कोशिश ही नहीं कर पाती थीं, शायद हमारे समाज ने उन्हें यह भी करने का मौका नहीं दिया है।

आज सोचने से कई सारी चीजें समझ में आती हैं। एक बार अपनी एक महिला मित्र से बात करने के दौरान उसने मुझे बताया कि किस तरीके से एक शिक्षक लड़कियों को अनुचित तरीके से छूते थे।

इस लेख के माध्यम से मैं सिर्फ लड़कियों को छात्रावास में होने वाली दिक्कतें के बारें में ही नहीं बात करना चाहता बल्कि लड़कों और लड़कियों के मानसिक सेहत के बारें में बात करना चाहता हूं।

विद्यालयों के छात्रावासों में ज़्यादा से ज़्यादा 18 साल के ही बच्चे होते हैं और इन्हें कितना कुछ सहना पड़ता है। घर पर जब मैंने यह बात बताई तब मुझसे 2 साल बड़े भैया ने कहा कि उनके छात्रावास में रोटी के साथ सिर्फ हल्दी दी जाती थी। अगर वो कुछ नाश्ता ले जाते थे तब उसे वार्डन और हेडमास्टर खा लेते थे। इससे तो बेहतर हमारा ही छात्रावास था।

Image Source: Flickr

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