कहते हैं कि अगर किसी समाज को बुराइयों ने घेर रखा है तो उसे दूर करने में कई वर्ष लग जाते हैं। यही हाल हमारे देश का है। राजा राममोहन राय ने बाल-विवाह और सती प्रथा का विरोध कर पुनर्जागरण तो किया लेकिन देश में आज भी लोग इसका दंश झेल रहे हैं।
देश की दूसरी विडम्बना है पंचायतों का तुगलकी फरमान। देश में जहां पंचायत सबल है, वहां तुगलकी फरमान आम बात हो चुकी है। कभी-कभी खुद पर भरोसा नहीं होता है कि हम एक लोकतांत्रिक, विकसित और शिक्षित समाज में जी रहे हैं।
बात शुरू करते हैं जोधपुर की, जोधपुर में एक बच्ची की शादी तीन साल की उम्र में तय कर दी गई लेकिन वह पढ़ती-लिखती रही। 22 वर्ष की उम्र में सीए की परीक्षा पास कर वह सीए बन गई। इस उम्र में लड़की ने पूर्व में तय हुई शादी को मानने से इनकार कर दिया। लड़के का परिवार उस पर दबाव बनाता रहा। लड़की के ना मानने पर लड़के पक्ष वालों ने पंचायत में शिकायत कर दी।
पंचायत ने सबकुछ सुनने के बाद लड़की के परिवार पर सोलह लाख का जुर्माना लगा दिया जिसे लड़की के घरवालों ने दिया लेकिन इस बात की शिकायत लड़की ने पुलिस से कर दी। पंचायत ने पुलिस शिकायत को बुरा माना और लड़की के परिवार पर 20 लाख का जुर्माना लगा दिया।
इसके बाद लड़की के परिवार का सामाजिक बहिष्कार कर दिया गया। इन सबसे परेशान होकर लड़की ने ज़हर खा लिया, हालांकि समय से उपचार होने पर उसकी जान बच गई है और अब भी वह अस्पताल में है।
ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर लड़की और लड़की के परिवार के साथ इस तरह की घटनाएं होती रहीं और पुलिस सोती रही। क्या पंचायत के इन फरमानों के खिलाफ कार्रवाई करने की पुलिस कमिश्नर या प्रशासन की ज़िम्मेदारी नहीं बनती थी? अगर पुलिस प्रशासन समय पर जाग जाता तो शायद लड़की के परिवार वालों को इतने पैसे ना चुकाने पड़ते और ना ही लड़की ज़हर खाने जैसे कदम उठाती।
प्रशासन को चाहिए जिन लोगों ने ऐसा किया है या जो लोग इस घटना के लिए ज़िम्मेदार हैं उन्हें सज़ा दिलाए, ताकि इस तरह की घटना ना हो। दूसरी चीज़ सरकार को बाल-विवाह जैसी कुरीतियों को खत्म करने के लिए जागरूकता अभियान भी चलाने की ज़रूरत है, ताकि इस तरह की घटना ना होने पाए।