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भौतिकतावाद से अलहदा हमें हमारी संस्कृति से जोड़ता है छठ पर्व

समस्त संसार के ऊर्जा के स्रोत सूर्य ही हैं। संसार के सभी जीव अपने पोषण के लिए उनकी ऊर्जा पर ही निर्भर रहते हैं। असीम आस्था एवं अगाध विश्वास, कठिन तप एवं कठोर अनुष्ठानों का त्यौहार ‘छठ’ भगवान सूर्य की उपासना को ही समर्पित है।

भारत में सूर्य उपासना का इतिहास अति प्राचीन एवं गौरवशाली है। ऋग्वेद में इस पर्व के उल्लेख के अलावा इसकी चर्चा भगवत पुराण, ब्रह्म वैवतपुरण तथा विष्णु पुराण आदि धर्म ग्रंथों में भी है। छठ का सांध्य अर्ध्य कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। प्रातः कालीन अर्ध्य और पारण छठ व्रत का चौथा और अंतिम दिन होता है जो कि कार्तिक के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को सम्पन्न होता है। व्रती जल में प्रवेश कर उदित सूर्य को देखते हुए अर्ध्य अर्पित करते हैं।

छठ को लेकर कई कथाएं भी प्रचलित हैं। सूर्य के अर्ध्य को लेकर मान्यता है कि सूर्य की पत्नियां उषा और प्रत्यूषा को दिया अर्ध्य दिया जाता है। सुबह और शाम दोनों समय अर्ध्य देने का मौलिक उद्देश्य सूर्य की इन दोनों पत्नियों की पूजा अर्चना करना है।

इस पूजा अर्चना के पीछे जनसामान्य की मान्यता है कि सृष्टि को चलाने एवं लोगों के कल्याण के लिए सूर्य की महत्वपूर्ण भूमिका है। भास्कर के प्रति आस्था एवं विश्वास की जो भक्ति भाव की लहरें उठती हैं उनके प्रभाव से सम्पूर्ण जगत के कलुषित विचारों का अंत हो जाता है। जीवन में ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे संतु निरामया:’ के भाव का प्रादुर्भाव होता है।

सूर्य देव को समर्पित छठ पर्व महज़ एक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह हमारी संस्कृति है। वह संस्कृति जो हज़ारों वर्षों से हमारे अंदर रची बसी है और आज भी इसे उतनी ही श्रद्धा और आत्मीयता के साथ मनाया जाता है जैसे हज़ारों वर्ष पूर्व रहा होगा।

बदलते समय के साथ कई त्यौहार मनाने के तरीकों में बदलाव आ चुके हैं परंतु छठ ही ऐसा पर्व है जिसपर भौतिकतावाद का कोई प्रभाव नहीं है। छठ वास्तव में हमें अपनी संस्कृति से जोड़ता है, अतीत और वर्तमान के बीच सामंजस्य का एक ज़रिया है।

असाध्य रोगों से मुक्ति को लेकर पुत्र प्राप्ति तक, अपने सुहाग-सिंदूर की लंबी उम्र को लेकर धन-धान्य की प्राप्ति तक तथा परिवार सौभाग्य की प्राप्ति के लिए व्रती द्वारा छठ का अनुष्ठान किया जाता है। यह केवल भारत ही नहीं, अपितु नेपाल, फिजी, सूरीनाम, मालदीव आदि जैसे देशों में भी हर्षोउल्लास और पूरी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। छठ मानवीय मन को आत्मिक एवं सात्विक परमानंद की आलौकिक अनुभूति कराती है।

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