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भीख मांगकर टॉयलेट बनाया, मिसाल बनीं लेकिन ज़िन्दगी अब भी बद्तर

अमीना खातून

बिहार की अमीना खातून जिसने भीख मांगकर शौचालय बनवाया

स्वच्छ भारत मिशन के तहत इन दिनों तेज़ी से देशभर में शौचालय निर्माण कार्य जारी है। सरकार द्वारा ग्रामीण इलाकों के लिए प्रति परिवार 12000 रुपये की राशि ज़रूर दी जा रही है लेकिन वह नाकाफी है। ऐसा इसलिए, क्योंकि ग्रामीण इलाकों में जिन प्रकियाओं के ज़रिए यह राशि लाभुकों तक पहुंचती है, वह बेहद जटिल है। कभी ब्लॉक कॉर्डिनेटर कुछ रकम खा लेते हैं तो कई दफा मुखिया और जल-सहिया की मिलीभगत से कुछ पैसे मार लिए जाते हैं।

इन सबके बीच पंचायत को ओडीएफ घोषित करने की होड़ में लाभुकों पर दबाव बनाया जाता है कि वे अपने पैसे लगाकर पहले शौचालय बनवाएं तब उन्हें राशि मिलेगी। सिस्टम की इन्हीं लेट-लतिफी की वजह से बिहार की अमीना खातून को शौचालय बनवाने के लिए भीख तक मांगना पड़ जाता है।

बिहार के सुपौल ज़िले के पिपरा प्रखंड की पथरा उत्तर पंचायत के वार्ड नंबर 2 की 45 वर्षीय अमीना खातून ने भीख मांगकर अपने घर में शौचालय निर्माण कराया है। Youth Ki Awaaz से बात करते हुए अमीना बताती हैं कि साल 2017 की बात है जब प्रशासन की ओर से पंचायत को ओडीएफ घोषित करने के लिए ग्रामीणों पर दबाव बनाया जा रहा था। इसका उद्देश्य सिर्फ इतना था कि लोग खुले में शौच करने के लिए ना जाएं लेकिन मेरी आर्थिक स्थिति तब भी बेहद खराब थी और अब भी वैसी ही है।

वो आगे कहती हैं, “ मेरे पति ‘मोहम्मद रज्जात’ का इंतकाल हो चुका है। एक बेटी की शादी हो चुकी है और 14 साल का एक बेटा है जो मेरे साथ रहता है। उसके भरण-पोषण के लिए मुझे दूसरों के यहां चौका-बर्तन का काम करना पड़ता है। ऐसे में जब प्रशासन की ओर से दबाव बनाया गया तब मेरे पास भीख मांगकर शौचालय बनवाने के सिवाए कोई अन्य विकल्प नहीं था। मैंने घर-घर जाकर लोगों से अपनी बात कही और जो भी कुछ पैसे मुझे मिले, मैंने किसी तरह से शौचालय बनवाया।”

अमीना मुस्लिम समुदाय से आती हैं जहां भीख मांगना हराम माना जाता है लेकिन टॉयलेट बनवाने के लिए उन्हें यह काम भी करना पड़ा। अमीना जब लोगों के घर जाती थीं तब कोई उन्हें पैसे तो कोई बांस या अन्य चीज़ें देकर उनकी मदद करता था।

बिहार के सुपौल ज़िले की अमीना खातून जिसने भीख मांगकर शौचालय बनवाया

ये पूछे जाने पर कि क्या सोचकर उन्होंने स्वच्छ भारत मिशन के इस मुहिम में नायाब तरीके से अपना योगदान दिया, अमीना बताती हैं कि भीख मांगकर तो बेशक मैंने सिर्फ अपने ही घर में शौचालय बनवाया लेकिन ऐसा करने से कहीं ना कहीं मुझे प्रेरणा मिली और मैंने पंचायत के अन्य घरों में जाकर भी लोगों को शौचालय बनवाने के लिए प्रेरित करने का काम किया। मैं घर-घर जाकर लोगों से बोलती थी कि मेरे पास भी पैसे नहीं थे लेकिन मैंने भीख मांग कर शौचालय बनवाया तो आप भी बनवा सकते हैं।

पथरा दक्षिण के साक्षरता प्रेरक ओम प्रकाश बताते हैं, “एक वक्त ऐसा आया जब अमीना प्रखंड के लिए मिसाल बन गईं। प्रेरक के तौर पर मैं उन्हें हर मीटिंग में ले जाया करता था और ज़रूरत पड़ने पर वो हमारे साथ घर-घर जाकर भी लोगों को प्रेरित करने का काम करती थीं। हम इन्हें उदाहरण के तौर पर पेश करते थे कि अगर भीख मांगकर यह महिला शौचालय बनवा सकती हैं तब आप क्यों नहीं। इस काम में वार्ड नंबर दो की वार्ड सदस्य समीला बेगम और उप-मुखिया राज कुमार ने भी हमारा साथ दिया है।

अमीना भले ही भीख मांग कर शौचालय बनवाने के बाद से राष्ट्रीय मीडिया में सुर्खियों में रही हैं लेकिन नहीं बदली है तो बस उनकी ज़िन्दगी। आज भी उन्हें आजीविका चलाने के लिए काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। उनका कहना है कि अगर वो चौका-बर्तन का काम छोड़ देंगी तब माँ-बेटे के लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ भी मुश्किल हो जाएगा।

इंदिरा आवास के पैसों के लिए करनी पड़ रही है जद्दोजहद

ज़िला प्रशासन को जब ज़रूरत पड़ी तब अमीना खातून की छवि भूनाकर लोगों से शौचालय बनवाने की अपील तो कर डाली लेकिन सरकारी तंत्र में किसी ने यह सोचने की ज़हमत नहीं उठाई कि अमीना का अधूरा मकान कब बनकर तैयार होगा। अमीना बताती हैं कि इंदिरा आवास के तहत मुझे तीन किश्तों में राशि मिलनी थी लेकिन सिर्फ दो किश्तें ही मिली, एक किश्त राशि अब भी नहीं दी गई है। इस वजह से घर अभी भी अधूरी है।

अमीना आगे बताती हैं, “जिस वक्त इंदिरा आवास के दो किश्तों की राशि (50 हज़ार) मुझे मिली थी उस दौरान ही मेरे पति का इंतकाल हो गया था। 50 हज़ार की राशि में से ज़्यादातर पैसे मैंने घर बनाने में लगाया और कुछ पति के इलाज के लिए खर्च हो गए। यदि मुझे सरकार द्वारा बकाया राशि (20 हज़ार) मिल जाती, तब मैं कम-से-कम अपना घर बनवा लेती।”

इस संदर्भ में पिपरा के बीडोओ अरविंद कुमार कहते हैं, “हमने अमीना के घर का जाएज़ा लेने के बाद पाया कि जो राशि उन्हें दी गई थी उसका प्रयोग सही से नहीं किया गया। इंदिरा आवास योजना के तहत जो आवास बनना था वह अधूरा है।”

बंद कर दिया गया वृद्धा पेंशन

अमीना कहती हैं कि मुझे पहले वद्धा पेंशन दिया जाता था लेकिन कई महीनों से बंद कर दिया गया है। जब भी मैं प्रखंड कार्यालय जाती हूं, तब मुझसे यही कहा जाता है कि अगले महीने मिल जाएगा लेकिन वो अगला महीना कभी नहीं आता।

वृद्धा पेंशन की बात पर पिपरा के बीडीओ अरविंद कुमार का कहना है कि अमीना के बैंक खाते में पेंशन की राशि भेजी जाती है, हो सकता है उन्हें इस बात की जानकारी नहीं होगी। बीडीओ से बात करने के बाद जब हमने इस बात की पुष्टि के लिए फिर से अमीना से बात की, तब अपनी बात पर कायम रहते हुए उन्होंने कहा कि मुझे वृद्धा पेंशन नहीं मिलती है।

नहीं है राशन कार्ड

भीख मांगकर शौचालय बनवाने के बाद सुर्खियों में आई अमीना अब भी बुनियादी सुविधाओं के लिए प्रखंड कार्यालय के चक्कर लगा रही हैं। वो बताती हैं कि राशन कार्ड के लिए काफी पहले उन्होंने अप्लाई कर दिया है लेकिन अब तक बनकर नहीं आया है।

इस विषय पर पिपरा प्रखंड के बीडीओ अरविंद कुमार से पूछे जाने पर वो कहते हैं, “मुझे इस बात की जानकारी नहीं है लेकिन हो सकता है उनके द्वारा जमा किए गए ‘कागज़ात’ प्रकिया के किसी चरण में होंगे। मैं इस विषय में अमीना से बात करूंगा और हमारे द्वारा जो भी मदद हो पाएगी, हम करेंगे।”

ऐसे में कई बड़े सवालिया निशान इस देश के व्यवस्था पर भी खड़े होते हैं जो मजबूर और लाचार अमीना को सरकारी योजनाओं से वंचित रखती है। इस देश में स्वच्छता के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च किए जाने के बाद भी अमीना जैसी गरीब महिला को अगर भीख ही मांगनी पड़ जाए, तब वाकई में यह सिस्टम पर करारा तमाचा ही है। आशा है इसी सरकारी तंत्र के ज़रिए जल्द बदलेगी अमीना की ज़िन्दगी।

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