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सर्जरी के ज़रिये सेक्स चेंज कराने के मेरे फैसले पर घर वालों का रिएक्शन

सुमन मित्रा

सुमन मित्रा

पता नहीं क्यों, लेकिन मुझे हमेशा लगता था कि मेरा जन्म गलत शरीर में हुआ है। मैं अक्सर सोचती थी कि मैं कुछ और होती तो अच्छा होता। साल 2013 में मैंने पुरुष से महिला बनने के लिए सर्जरी कराई लेकिन उससे पहले काफी सालों से मैं खुद को पुरुष के रूप से आज़ाद करना चाहती थी। मुझसे अगर आप ट्रांसजेंडर का उदहारण पूछेंगे तब मैं यही कहूंगी कि एक गलत आत्मा का गलत शरीर में प्रवेश करने को ही ट्रांसजेंडर कहते हैं।

बिहार की पहली ‘ट्रांस वुमन’ होने के तौर पर मुझे खुशी भी होती है। मुझे मेरे फैसले पर कोई अफसोस नहीं है। दिल और दिमाग की कशमकश में उलझे हुए इंसान को सही फैसला लेना होता है और मैंने वह फैसला ले लिया है।

बहुत लोगों को लगता है कि किसी लड़के या लड़की के साथ ऐसा क्या हुआ कि अचानक ‘सेक्स चेंज’ कराने का फैसला ले लिया। मैं क्लियर करना चाहती हूं कि अचानक से कुछ भी नहीं होता बल्कि आप जैसे-जैसे बड़े होते हो आपके साथ चीज़ें चलती रहती हैं। मुझे सर्जरी के बारे में पहले से जानकारी थी क्योंकि मैं ‘ज्योग्राफिक चैनल’ पर अक्सर सेक्स चेंज कराने को लेकर चीज़ें देखती रहती थी।

मैं शुरू से ही लड़की बनकर रहना चाहती थी और जब भी अपने सिस्टर की फ्रॉक पहनती थी तब कंफर्टेबल हो जाया करती थी। मुझे हमेशा लड़कियों के कपड़े पहनना अच्छा लगता था। मेरे भैया देख लेते थे तब मुझे डांट पड़ती थी। मुझे कहा जाता था, “पागल हो गया है जो ऐसा कर रहा है।”

उस वक्त मुझे यह समझ नहीं आता था कि ये लोग मुझे डांट क्यों रहे हैं। मैं खुद को लड़की ही मानती थी। मैं हर वो आदत फॉलो करती थी जो एक लड़की में होती थी।

मेरे भाईयों के साथ शुरुआत में मेरी अच्छी बॉन्डिंग नहीं थी। उन्हें लगता था कि शायद मैं पागल हो रही हूं या फिर मैं गलत संगत के चक्कर में बिगड़ रही हूं लेकिन वह गलत संगत नहीं था, वो तो मेरी आत्मा थी। मेरे अंदर जो औरत थी वो बाहर निकलने की कोशिश में थी लेकिन उसे रास्ते नहीं समझ में आ रहे थे। मेरे घरवाले आज मेरे इस फैसले के साथ हैं।

स्कूल के दिनों में मेरा संघर्ष

जब मैं स्कूल जाने लगी तब लड़कियों के साथ मेरी केमेस्ट्री कुछ इस कदर बढ़ गई कि पता ही नहीं चला कब लड़कों ने मुझे अपनों से अलग समझना शुरू कर दिया। मैं लड़कियों के साथ ज़्यादा कंफर्टेबल होती थी, जैसे- उनके सीट पर बैठना, टिफिन शेयर करना और उनके साथ घूमने जाना।

जब मैं चौथी या पांचवीं कक्षा में थी तब क्लास के बच्चे अक्सर मेरा मज़ाक उड़ाते थे। मुझे मेरे असली नाम से नहीं पुकारकर 50-50 बुलाते थे। मैं इसमें उनका दोष भी नहीं दूंगी क्योंकि अगर मुझे वे 50-50 बुलाते थे, तब कहीं ना कहीं मेरे अंदर उन्हें ये चीज़ें दिखती थीं। यानि कि मैं उन्हें आधा मर्द और आधी औरत दिखती थी। धीरे-धीरे दोस्तों ने मुझे 50 % से 65, 70 और 90 % बुलाना शुरू कर दिया।

आखिरी दफा मुझे याद है जब 99 तक मुझे बुलाया जाने लगा। आज मैं उन्हें बता देना चाहती हूं कि मैं 100 पर्सेंट बन चुकी हूं और लोग भी जानते हैं कि सुमन मित्रा कौन है।

मुझपर हंसने वाले लोगों को क्या पता कि उन दिनों मेरी बढ़ती उम्र के साथ मेरे अंदर की औरत भी बड़ी हो रही थी। सिर्फ मेरी ही बात नहीं है। बहुत सारी ऐसी महिलाएं हैं जो आज भी दिमागी तौर पर खुद को मर्द मानती हैं।

सर्जरी कै दौरान जब मैं देवीना से मिली

मैं जब ‘महात्मा गांधी मेडिकल कॉलेज एण्ड रिसर्च सेंडर’ में सर्जरी की प्रक्रियाओं से गुज़र रही थी तब मेरी मुलाकात देवीना से हुई। वो उस अस्पताल में महिला से पुरुष बनने के लिए आई थी क्योंकि उसे एक लड़की से प्यार था। जो लोग सेक्स चेंज करवाने वाले या फिर ट्रांसजेंडर्स पर हंसते हैं, उन्हें देवीना की कहानी ज़रूर सुननी चाहिए। देवीना अपनी जिस महिला मित्र के लिए सर्जरी के ज़रिए पुरुष बनने जा रही थी, वह मित्र भी देवीना का काफी ख्याल रखती थी।

उस वक्त मेडिकल की पढ़ाई करने वाली देवीना सर्जरी के बाद देव बन गई। मौजूदा वक्त में देव अपनी गर्लफ्रेंड के साथ दिल्ली में ही कहीं रह रहा है लेकिन अभी मेरे साथ संपर्क में नहीं है। अभी मैं उससे कॉन्टेक्ट में इसलिए भी नहीं हूं क्योंकि जब से उसने सर्जरी कराई है तब से पटना में रहना उसके लिए काफी मुश्किल हो गया था। लोग ताने मारने लग गए थे। इन्हीं चीज़ों से बचने के लिए वो दिल्ली चला गया और अब मेरे कॉन्टेक्ट में नहीं है।

आज सर्जरी के ज़रिए सेक्स चेंज करवाकर बहुत से लोग हमारे और आपके बीच में रहते हैं लेकिन उन्हीं में से बहुत से लोगों को अपनी पहचान छुपानी पड़ती है। मैं ‘ट्रांसजेंडर वेलफेयर बोर्ड बिहार’ की मेंबर होने के नाते भी सेक्स चेंज कराने वालों से बात करने के अलावा उन्हें गाइड भी करती हूं। मेरे बाद जिन 6-7 लोगों ने सेक्स चेंज कराया उन्होंने मुझसे इतना ही कहा कि दीदी किसी को बताना मत।

ऐसा रहा परिवार वालों का रवैया

किसी भी फैमिली में अगर अचानक कोई यह बात कहे कि मैं औरत से मर्द या फिर मर्द से औरत बनना चाहता हूं, तब मेरे लिहाज़ से अजीब बात ही होगी। लोगों को यही लगने लगता है कि या तो मैं गलत संगत में हूं या फिर भूत का चक्कर है। मेरे घर में किसी को यह बात पता नहीं थी कि लड़का से लड़की बनने के लिए मैंने हॉर्मोन की डोज़ लेनी शुरू कर दी है।

अचानक जब मेरे शरीर में बदलाव होने शुरू हुए और महिलाओं की तरह मेरे स्तनों का विकास होने लगा तब मेरे घर में सब मुझे नोटिस करने लग गए। मेरी मॉं अब इस दुनिया में नहीं रहीं लेकिन वो मुझे बहुत प्यार करती थीं। जब उन्हें लगा कि मेरी बॉडी में अचानक चेंजेज़ क्यों होने लगे, तब उन्होंने मुझे डॉक्टर से सलाह लेने की बात कही।

मैंने कई दफा मना किया लेकिन एक दिन मुझे अपनी मॉं को बताना पड़ा कि मैं हॉर्मोन के डोजेज़ ले रही हूं। मेरी मॉं को मेरे लिए बुहत फिक्र होने लग गई। उन्होंने मुझे समझाना शुरू किया कि देख बेटा ऐसा करना गलत है। समाज में लोग तरह-तरह की बात करेंगे।

मैं हमेशा अपनी मॉं के बेहद करीब रही हूं। जब मैंने सर्जरी नहीं कराई थी तब भी मुझे मॉं का ख्याल रखाना होता था कि कौन सी साड़ी पर मॉं को कौन से रंग की बिंदी अच्छी लगेगी। इसके अलावा मॉं की साड़ियों को पिन करने से लेकर और भी चीज़ें मैं ही करती थी।

बहुत लोगों का सवाल होता है कि सर्जरी के लिए मेरे पास पैसा कैसे आया? मैं उन्हें बताना चाहती हूं कि जिस वक्त मैं हॉर्मोन की दवाईयां लेती थी उस दौरान ब्यूटी पार्लर में भी काम करती थी जहां से मुझे पैसे आते थे। जो दवाईयां मैं लेती थी वो 2500-3000 के बीच की आती थी।

मेरी फैमिली के साथ अभी मेरी बहुत अच्छी बॉन्डिंग है और सब मुझे बहुत पसंद करते हैं। जब से मेरे घर में मेरी भाभी आई है, मुझे औरत के रूप में ही देखा है उन्होंने। इस वजह से उनके अंदर एक्सेप्टेंस है। मैं दो साल से छठ व्रत करती हूं। इस बार भी मैंने छठ व्रत किया था जहां मेरी बहन भी आई थी। मुझे मेरी फैमिली का साथ मिला, लोगों का सपोर्ट मिल रहा है और एक पहचान मिली जो मुझे औरों से अलग करती है।

मैं एक संपन्न परिवार से हूं जिस वजह से मुझे बुनियादी चीज़ों के लिए दिक्कतों का सामना करना नहीं पड़ रहा है लेकिन कई ऐसे भी ट्रांसजेंडर्स हैं जिनके लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ बहुत मुश्किल हो गया है। ऐसे में अगर वे दो पैसे कमाने के लिए सेक्स वर्क करती हैं तो इसमें क्या बुराई है?

अगर मेरे पास अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए पैसा नहीं होता तब शायद मुझे भी मजबूरन उसी लाइन में उतरना पड़ता। शिक्षा भी इस दिशा में एक अच्छी पहल हो सकती है।

मैं अपनी ज़िन्दगी अच्छे तरीके से जी रही हूं और आशा है कि हर वो लड़का या लड़की जो अपनी जीवन में मेरे जैसे फैसले लें, तब यह समाज उसके हौसले को ना तोड़ें।

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