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“राजस्थान में हर वैकेंसी के बाद युवाओं को कोर्ट के चक्कर क्यों काटने पड़ते हैं?”

बेरोज़गार युवा

बेरोज़गार युवा

21 तारीख की सुबह बेहद हैरान कर देने वाली खबर पर मेरी नज़रें पड़ी। खबर यह थी कि राजस्थान के अलवर में कथित तौर पर बेरोज़गारी से परेशान तीन युवा दोस्तों ने ट्रेन के आगे कूदकर जान दे दी। घटना में एक अन्य युवक घायल हो गया है। राजस्थान के चुनावी माहौल के बीच यह बेहद ही परेशान कर देने वाली खबर थी।

पिछले कुछ दिनों से मीडिया में चल रहीं तमाम खबरों के बीच यह खबर ऐसी थी जिसने मुझे झकझोर कर रख दिया। आत्महत्या करने वाले तीनों छात्र मेरे ही समुदाय से थे। यहां पर किसी जाति की बात नहीं हो रही है बल्कि समुदाय से मेरा मतलब है ‘छात्र वर्ग।’

हमारे देश में युवाओं की तादाद काफी अधिक होने के बाद भी सरकारों का ध्यान उनकी तरफ नहीं जाता। मौजूदा सरकार इन युवाओं का इस्तेमाल विकास के लिए ना करके इन्हें भीड़ में तब्दिल करने का काम कर रही है। राजनीतिज्ञों को एक बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि आज अगर हमारे देश में युवाओं की अच्छी संख्या है, तब आने वाले तीस सालों में बुजुर्गों की संख्या भी काफी अधिक हो जाएगी। ये वो बुजुर्ग होंगे जिन्होंने अपनी पूरी ज़िन्दगी नौकरी पाने के लिए गंवा दी और बदले में कुछ मिला नहीं।

यह खबर मेरे लिए दु:खद इसलिए भी है क्योंकि मैं भी सरकारी नौकरियों की तलाश में तमाम परिक्षाएं दे रहा हूं लेकिन मुझे सिर्फ सरकारी निराशाओं का सामना करना पड़ रहा है। परीक्षा में पास या फेल होने की बात तो छोड़ दीजिए, कभी परिक्षाएं रद्द कर दी जाती हैं तो कभी सालों तक एग्ज़ाम होते ही नहीं हैं।

राजस्थान की सरकारी वैकेंसी उस नई-नवेली दुल्हन की तरह हो गई है जिसके लिए शादी के बाद किसी मंदिर में जाना अनिवार्य कर दिया जाता है। आज वैसे ही हर वैकेंसी के बाद युवाओं को हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाना पड़ता है। आखिर ऐसी क्या बात है कि राज्य लोक सेवा आयोग की परिक्षाओं के बाद युवाओं को कोर्ट का चक्कर लगाना पड़ता है।

राजस्थान लोक सेवा आयोग की आरएएस प्री परीक्षा-2018 को लेकर भी विवाद उत्तपन्न हो गया जब इसका परिणाम 78 दिनों बाद निकाला गया। पिछली परीक्षा (RAS-2016) का नतीजा महज़ 17 दिन में घोषित कर दिया गया था। इस बार यह कहा गया कि लोक सेवा आयोग कोई रिस्क नहीं लेना चाहता है इसलिए व्यापक परीक्षण के बाद ही नतीजों को घोषित किया जाएगा।

बेरोज़गार युवा। तस्वीर प्रतीकात्म है। सौजन्य: YKA English

सरकार ने सरकारी नियुक्तियों को कमाई का ज़रिया बना दिया है। ऐसा लगता है कि कोचिंग सेंटरों और सत्ता के बीच कोई जुगलबंदी चल रही है। सरकार पहले तो कोई वैकेंसी निकालती है और फिर लंबे वक्त तक परीक्षा नहीं करवाती है। ऐसे में तमाम कोचिंग सेंटर वालों की दुकानें भी आसानी से चलती हैं।

सरकारी वैकेंसी के भ्रष्टाचार को हमें समझाना होगा। मान लीजिए कि किसी वैकेंसी में 15 लाख फॉर्म भरवाया जा रहा है और एक फॉर्म भरने की कीमत 500 रुपये है। आपको अंदाज़ा भी है कि सरकार ने जनता से 75 करोड़ रुपये वसूल लिए हैं।

राजस्थान में युवा या तो सरकारी नौकरी के पीछे भागते हैं या फिर खेती और मज़दूरी का सहारा लेते हैं। राजस्थान के किसी भी शहर में मल्टीनैशनल कंपनी का कोई बड़ा कॉरपोरेट ऑफिस नहीं है। चौपट उद्योग धंधे के बीच बेहतर रोज़गार के विकल्प भी नहीं हैं। सरकारी नौकरी एक तरह का बैताल है जो यहां के युवाओं के कंधे पर बैठा रहता है।

एक क्लर्क की वैकेंसी के लिए 15 लाख तक आवेदन आते हैं और चपरासी की नोकरी के लिए पीएचडी धारी तक आवेदन करते हैं। मेरे काफी दोस्त अपना बहुत कुछ दांव पर लगाकर बड़े-बड़े शहरों में रहते हैं ताकि उनकी सरकारी नौकरी लग सके। किसी की शादी नहीं हो रही है तो किसी को लगता है कि गरीबी दूर करने के लिए सरकारी नौकरी ही एकमात्र ज़रिया है।

मैं कई ऐसी लड़कियों को जानता हूं  जिन्हें ससुराल वालों ने ठुकरा दिया है और अब सरकारी नौकरी ही उनके लिए उम्मीद की एकमात्र किरण है। यह किरण कई सालों तक काले बादल से बाहर नहीं निकलती है।

मैं अंत में एक बात कहना चाहता हूं और वो यह कि जो बोर्ड या संघ हमारी परिक्षाएं बिना पेपर लीक के नहीं करवा सकता, जो बिना किसी विवाद के परिणाम नहीं जारी कर सकता और बिना कोर्ट के चक्कर में फंसे एक वैकेंसी भी पूरी नहीं करवा सकता, ऐसे बोर्ड को छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने का कोई हक नहीं है।

उनके लिए सरकारी वैकेंसी सिर्फ एक खाली पद होगा जिसे किसी प्रक्रिया के माध्यम से भरना है लेकिन लाखों छात्रो के लिए वह एक आशा और उम्मीद है। आप हर बार उन उम्मीदों का गला नहीं घोंट सकते। अगर आपसे एक वैकेंसी पूरी नहीं हो सकती तब या तो शर्म से मर जाना चाहिए या अपना इस्तीफा दे देना चाहिए, ताकि आगे से कोई छात्र आपके अत्याचार के कारण खुदखुशी ना करे।

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