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“इतिहास और वर्तमान पढ़े बिना एक पोस्टर से क्यों आहत हो गया ब्राह्मण समाज?”

‘ब्राह्मणवाद’ और ‘पितृसत्ता’ शब्द अपने आप में ही संवाद का मुद्दा बन जाते हैं। इस बार ये दोनों शब्द ट्विटर के सीईओ जैक डॉर्सी के ट्विटर हैंडल से चर्चा में आए हैं जिसमें वह एक पोस्टर लिए खड़े है। इस पोस्टर की चारों और निंदा की जा रही है क्योंकि इसमें ब्राह्मणवादी पितृसत्ता को खत्म करने की बात लिखी गई है। इसके बाद से ही ब्राह्मण समुदाय बहुत ही गुस्से में है और उनकी तरफ से लगातार तीखी प्रतिक्रिया आ रही है।

ब्राह्मणवाद, पितृसत्ता सुनकर हमें न जाने ऐसे क्यों लगता है कि यह एक समुदाय के प्रति युद्ध छेड़ने जैसा है। हम अपने इतिहास और वर्तमान को ठीक से देखने और पढ़ने की ज़रा भी ज़हमत नहीं उठाते और आहत हो जाते हैं। हम इसे आपत्तिजनक क्यों मान रहे हैं इसके पीछे भी वह सोच है जो आज तक ब्राह्मणदवाद और पितृसत्ता को सिरे से खारिज करती आई है।

अगर हम इसके मतलब को ज़मीनी तौर पर समझे तो हमें दिखता है कि पितृसत्ता को ब्राह्मणदवाद से जोड़कर ही देखा जाता रहा है। इसके अंदर जातियों का फर्क और उसपर पितृसत्ता यानी पुरुष का वर्चस्व जाहिर होता है। एक उदाहरण हम प्रणय,अमरुता की कहानी से ले सकते हैं। जिसमें प्रणय की इसलिए हत्या की जाती है क्योंकि अमरुता ने नीचि जाति के लड़के से शादी की थी। ऐसे उदाहरण आपको कई और मिल जाएंगे जिसमें एक समुदाय यह तय कर लेता है कि वह ऊंचे वर्ग से ताल्लुक रखता है और साथ ही पितृसत्ता तो उसके हाथ में है ही तो वह मार भी सकता है और

इसी पोस्टर पर शुरू हुआ था विवाद

शादी के साथ हमें समाज में यह भी दिखता है कि दलित महिलाओं की स्थिति सामान्य महिलाओं जैसी नहीं है और उन्हें कई समस्याओं से जूझना पड़ता है। उनकी जाति उसमें सबसे विशेष कारण है। अब आते हैं उन लोगों की ओर जो इसके विरोध में है, वे सब समझदार हैं और अच्छी शिक्षा ग्रहण किए हुए है और साथ ही एक अच्छे पद पर आसीन भी है लेकिन वे समझ नहीं पा रहे हैं कि यह पोस्टर ब्राह्मणों के खिलाफ नहीं है और न ही पुरुषों के खिलाफ है। बल्कि यह उस सोच के खिलाफ है जो कब से औरतों और दूसरी जाति के साथ हो रहे भेदभाव के लिए ज़िम्मेदार है।

कभी कभी लगता है बाबा साहब का संविधान जो कि अल्पसंख्यकों के उद्धार के लिए बनाया गया था वह आज भी एक सपने जैसा है क्योंकि उसका ज़मीनी स्तर पर मंज़र कुछ और ही है। हम पोस्टर के विरोध में नारे लगा रहे है और दोषारोपण कर रहे है जबकि हमें जाति व्यवस्था के के खिलाफ आवाज़ उठानी होगी।

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