अभिषेक कपूर द्वारा लिखित एवं निर्देशित फिल्म ‘केदारनाथ’, केदारनाथ त्रासदी में काल कवलित हुए सैकड़ों लोगों के साथ बेहद भद्दा मज़ाक है।
फिल्म में टिपिकल बॉलीवुड लव स्टोरी है और यहां भी लड़की का पिता लव स्टोरी का विलेन है। ट्रेलर में लड़की का पिता लड़की (सारा अली खान) से कहता है, “नहीं होगा यह संगम, फिर चाहे प्रलय ही क्यों ना आये” तो सारा अली खान निहायत ही घटिया तर्क देते हुए कहती हैं, “तो जाप करुंगी दिन-रात कि आये” और ट्रेलर के अगले ही सीन में प्रलय आ जाता है।
दिखाने का मतलब यह कि सारा अली खान के कहने पर उस क्षेत्र में दक्षिणी मौनसून एवं पश्चिमी विक्षोभ सक्रीय हुए और भयंकर वर्षा हुई। नायिका ने अपने प्रेमी को पाने के लिए सैकड़ों लोगों की जान एवं करोड़ों के माल के नुकसान की चिंता किए बिना प्रलय का आह्वान किया। उसके आह्वान पर प्रलय आया भी।
पूरी कपोल कल्पित घटना ही कितनी हास्यास्पद और घृणित लगती है। धूर्तता की पराकाष्ठा यह कि फिल्म को हिट करवाने के लिए कई बार पूर्व परीक्षित पैंतरा आज़माया गया। फिल्म में नायक तथा नायिका क्रमशः मुस्लिम-हिन्दू दिखाये गए ताकि खबर सुनते ही सैकड़ों फलां-फलां सेनाएं सड़कों पर उतर आये और फिल्म का फोकट में प्रमोशन हो जाये।
इतनी भयंकर त्रासदी में लव स्टोरी का सीन क्रिएट करके पैसा कमाना फिल्ममेकर की च्वाइस हो सकती है लेकिन उसके ज़रिए इस तरह के अमानवीय डायलॉग्स दिखना सही नहीं हो सकता। कितना घिनौना है, यह उन परिवारों की भावनाओं के साथ मज़ाक है जिनके अपनों ने जान गंवाई, जिनके घर उजड़े, जिनके सपने उजड़े, जिनके गांव वीरान हो गएं।
कितना क्रूर हृदय चाहिए होता होगा ऐसी फिल्म बनाने और अभिनीत करने के लिए। आधुनिक बॉलीवुड की परिभाषा यही है कि वह धन लोलुपता में मानवीय मूल्यों, घटना की प्रासंगिकताओं, संवेदनशीलता आदि सबको ताक पर रखकर ‘क्रिएटिविटी की आज़ादी’ की आड़ में लोगों की भावनाओं की धज्जियां उड़ाता है।
अगर आपका फिल्म देखने का मन हो भी जाये तो यह ज़रूर सोचियेगा कि कहीं इस फिल्म का आनंद आप सैकड़ों उजड़े आशियानों के क्रंदन के कोलाहल में बिछी कुर्सी पर बैठकर तो नहीं ले रहें? क्योंकि यह भयानक त्रासदी के साथ भद्दा मज़ाक करके बनाई गई एक लव स्टोरी है।