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कविता: दे सहारा मुझको, बन पतवार की तरह

नांव

नांव

फंसी जीवन की नैया मेरी बीच मझधार की तरह

तू दे दे सहारा मुझको बन पतवार की तरह।

 

तेरी पलकों की मैंने जो छांव पाई है

मेरी सुखी सी बगिया में हरियाली छाई है,

तेरा यह हंसना है या रुनझुन-रुनझुन

खनखनाना कोई वोटों की झंकार की तरह।

 

तेरे आगोश में ही रहने की चाहत है

तेरे मेघ से बालों ने किया मुझे आहत है,

मेजोरिटी कौम की हो तुम, तो इसमे मेरा क्या दोष

यह इश्क नहीं मेरा पॉलिटिकल हथियार की तरह

 

हर पांच साल पर नहीं, हर रोज़ वापस आऊंगा

तेरी नज़रों के सामने ही यह जीवन बिताउंगा,

अगर कहता हूं कुछ, तब निभाउंगा सच में

समझो ना मेरा वादा चुनावी प्रचार की तरह।

 

जबसे तेरे हुस्न की एक झलक पाई है

नहीं और हासिल करने की ख्वाहिश बाकी है,

अब बस भी करो यह रखना दूरी मुझसे

जैसे जनता से जनता की सरकार की तरह

 

चेंज की है पार्टी, तुझको क्यों रंज है

पॉलिटिकल गलियों के होते रास्ते तंग हैं,

चेंज की है पार्टी पर तुझको ना बदलूंगा

छोड़ो भी शक करना किसी पत्रकार की तरह।

 

बड़ी मुश्किल से गढ़ा यह बंधन, इसे बनाए रखना

पॉलिटिकल अपोनेंटो से इसे बचाये रखना,

बस फेविकॉल से गोंद की तलाश है ऐ भगवन

टूटे ना रिश्ता अपना मिली जुली सरकार की तरह।

 

फसी जीवन की नैया मेरी बीच मझधार की तरह

तू दे दे सहारा मुझको, बन पतवार की तरह।

 

नोट: इस कविता के ज़रिए YKA यूज़र ने यह बताने की कोशिश की है कि जब एक नेता अपनी प्रेयसी को प्यार करता है, तब वह अपने प्रेम का इज़हार कैसे करता है।

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