Site icon Youth Ki Awaaz

#MeToo: “भारत में यौन शोषण की घटनाओं पर चर्चा करना गलत क्यों समझा जाता है?”

मी टू

भारत में मीटू का असर

भारत में जब से #MeToo केंपेन की शुरुआत हुई है तब से सोशल मीडिया पर यह चर्चा का विषय बना हुआ है। इस दौरान पूर्व केंद्रीय मंत्री एमजे अकबर से लेकर कई साहित्यकारों, फिल्म जगत के कलाकारों, फिल्म निर्देशकों, गायकों, संगीतकारों, सोशल एक्टिविस्टों, पत्रकारों और सम्पादकों पर आरोप लगे हैं। मीडिया और फिल्म इंडस्ट्री इन आरोपों के चलते जैसे हिल गई। लोगों के अंदर भय का माहौल बना है कि यदि अब हमने गलत किया तो सोशल मीडिया पर उजागर हो जाएगा।

भारत जैसे देश में बलात्कार एक जघन्य अपराध होने के बावजूद भी परिवार वालों द्वारा समाज की दुहाई देकर महिलाओं को चुप रहने के लिए कहा जाता है। भारत में यौन शोषण की घटनाओं को सामाजिक प्लेटफॉर्म पर लाना और उस पर चर्चा करना गलत समझा जाता है।

आज जिस तरीके से महिलाएं सोशल मीडिया पर मीटू के ज़रिए अपनी बात रख रही हैं वह काबिल-ए-तारीफ है। इससे पहले यदि कोई महिला किसी रसूखदार शख्स के खिलाफ अपनी आवाज़ बुलंद करती भी थी, तब उसे दबा दिया जाता था। आज महिलाओं की एकता इस बात का उदहारण पेश कर रही हैं कि आने वाले वक्त में मीटू मुहिम के ज़रिए क्रांति आने वाली है।

इस केंपेन के परिणाम स्वरूप महिलाओं के साथ पुरुषों का व्यवहार समीक्षा के दायरे में आ रहा है। क्या सही है और क्या गलत, कैसा व्यवहार यौन शोषण के दायरे मे आता है और कैसा नहीं, इस पर चर्चा हो रही है। पुरुषों पर अपने व्यवहार की समीक्षा करने का दबाव बन रहा है। मीटू की बदौलत अनेक जगहों पर कुछ ठोस बदलाव भी सामने आए हैं, जो इस प्रकार है-

इस लंबी लिस्ट के नामों पर जिस तरीके से कार्रवाईयां हुई हैं, वह काबिल-ए-तारीफ है। मीटू कैंपेन के दबाव की वजह से ही ऐसा हो पाया है।न्याय की लड़ाई अभी दूर है, जिससे हम सभी को मिलकर लड़ने की ज़रुरत है। इसके अलावा हम यह भी ध्यान में रखें कि जब कभी महिलाओं के खिलाफ हुई शोषण की बात हो, हम शर्म और झिझक को तोड़ते हुए खुलकर बात करें ताकि कोई हल निकल सके।

Exit mobile version