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“सियासत करनी है तो नाम बदल दीजिए, अपना भी और शहरों के भी”

शेक्सपियर ने अपने एक नाटक में कहा था कि नाम में क्या रखा है क्योंकि एक मिठाई का नाम गुलाब रख लेने से उस मिठाई से गुलाब की खुशबू तो नहीं आ सकती।

आजकल की राजनीति पर नज़र डालें तो ऐसा लगता है कि केवल नाम ही बदल देने से आपके पांच सालों के कर्मों का हिसाब होता है। योगी आदित्यनाथ जिनका असली नाम अजय सिंह बिष्ट है, उन्होंने इस प्रथा को तेज़ी से बढ़ाया या कह सकते हैं कि बढ़ा रहे हैं। उनके राज्य यूपी में ज़िलों और शहरों के नाम बदले जा रहे हैं, जिनका अनुसरण अब बाकी के राज्य भी करने जा रहे हैं।

नाम से पहले योगी रख लीजिये या फिर इलाहाबाद का नाम प्रयागराज रख लीजिये इससे आखिर बदलता क्या है और इसका फायदा किसको किस तरह हो पाता है इसको समझना भी आवश्यक है। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में वैसे तो हर कोई अपने हिसाब से कुछ भी नाम रख या बदल सकता है लेकिन जब कोई व्यक्ति राजनेता हो तो फिर उसके नाम और उसके फैसलों के मायने कई होते हैं।

योगी जिसकी असल परिभाषा श्रीमद्भगवद्‌गीता में भगवान श्री कृष्णा ने दी है आइये पहले उसपर ही नज़र डालते हैं-

श्रीकृष्ण कहते हैं, जो पुरुष कर्मफल का आश्रय न लेकर करने योग्य कर्म करता है, वह संन्यासी तथा योगी है। केवल अग्नि का त्याग करने वाला संन्यासी नहीं है तथा केवल क्रियाओं का त्याग करने वाला योगी नहीं है।

जिस जीवात्मा द्वारा मन और इन्द्रियों सहित शरीर जीता हुआ है, उस जीवात्मा का तो वह आप ही मित्र है और जिसके द्वारा मन तथा इन्द्रियों सहित शरीर नहीं जीता गया है, उसके लिये वह आप ही शत्रु के सदृश शत्रुता में बर्तता है।।

सर्दी-गर्मी और सुख-दुखादि में तथा मान और अपमान में जिसके अन्तःकरण की वृत्तियां भलीभांति शांत हैं, ऐसे स्वाधीन आत्मावाले पुरुष के ज्ञान में सच्चिदानन्दघन परमात्मा सम्यक प्रकार से स्थित है अर्थात उसके ज्ञान में परमात्मा के सिवा अन्य कुछ है ही नहीं।

सुहृद् (स्वार्थ रहित सबका हित करने वाला), मित्र, वैरी, उदासीन (पक्षपात रहित), मध्यस्थ (दोनों ओर की भलाई चाहने वाला), द्वेष्य और बन्धुगणों में, धर्मात्माओं में और पापियों में भी समान भाव रखने वाला अत्यन्त श्रेष्ठ है। (चैप्टर-6)

चलिए यहां सब गुण किसी में हो यह संभव नहीं लेकिन नाम के आगे योगी लगाने वाले महाराज के कुछ आपराधिक मामले हम सबके सामने हैं। मुकदमों को वापस लेने या ना लेने का संशय अदालतों में चल रहा है। योगी जी के अगस्त 2014 के बयान पर नज़र डालें जिसमें वो कहते हैं,

अगर वे एक हिंदू लड़की का धर्म परिवर्तन करवाते हैं तो हम 100 मुस्लिम लड़कियों का धर्म परिवर्तन करवाएंगे।

उन्होंने फरवरी 2015 में बयान दिया था,

अगर उन्हें अनुमति मिले तो वो देश के सभी मस्जिदों के अंदर गौरी-गणेश की मूर्ति स्थापित करवा देंगे।

तो जब अजय सिंह बिष्ट का नाम योगी आदित्यनाथ हो सकता है तो फिर जो भी अब हो रहा है उसपर चौंकने की ज़रूरत नहीं। सवाल केवल नाम का नहीं है सवाल है नाम बदलने से आखिर होता क्या है?

क्योंकि कनॉट प्लेस का नाम बदला गया लेकिन उसे पुकारते आज भी सब उसी नाम से हैं। मद्रास का नाम बदला गया लेकिन हाईकोर्ट को आज भी मद्रास हाईकोर्ट के नाम से जाना जाता है। बॉम्बे और कलकत्ता का नाम भी बदला गया लेकिन वहां के हाईकोट को भी बॉम्बे हाईकोर्ट और कलकत्ता हाईकोर्ट के नाम से ही जाना जाता है।

आपसे 5 साल का कोई हिसाब ना मांग सके तो आसान सा रास्ता है बस नाम बदल दीजिये। गोरखपुर में मरे बच्चों का कातिल कौन और जांच में कसूरवार कौन ये पूछने वाला कोई नहीं। लखनऊ में पुल गिरा, वहां की ज़िम्मेदारी किसकी और इस घटना में मरे लोगों का गुनाहगार कौन इसका जवाब कोई देने को तैयार नहीं।

कर्ज़ माफी का ऐलान कर मज़ाक बनाया गया लेकिन जवाब कौन देगा? सड़कों के गड्ढों को भरने का वादा था और वादा ऐसा जैसे कि 3 महीनों में जादू की छड़ी से गड्ढे भरे जाने वाले थे उनका आज तक क्या हुआ कोई जवाब नहीं।

तो उपचुनाव में मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री की सीट गंवाने के बाद सत्ता क्या करेगी केवल और केवल माहौल बनाएगी। मंदिर का मुद्दा प्राइम टाइम से हटने नहीं देगी, जिससे बाकी मुद्दे उठ ना पाए और मूर्तियों के निर्माण की बात कर साधु संत को खामोश करेगी फिर हिन्दुओं के लिए कितना काम किया बताने के लिए नाम बदल देगी।

सियासत है और राजनीति भी करनी है तो माहौल तो बनाना ही पड़ेगा, यहां साहब बस नाम बदल दीजिये अपना भी और अपने शहर का भी।

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