Site icon Youth Ki Awaaz

प्रेमगली वृन्दावन-2, निधिवन

वैसे तो वृन्दावन के कण कण में बिहारी जी का वास है किंतु कहते हैं कि निधिवन में उनका नित्य का प्रवास है।

रात्रि में वन के कपाट बंद होने के उपरांत वहाँ बिहारी जी और राधा रानी का प्राकट्य और निधिवन में फैले हुये असंख्य वृक्ष लताओं का गोपियों के रूप में रूपांतरण संबंधी कथाएं द्वापर काल से ही कौतूहल का विषय रही हैं।

लाखों श्रद्धालुओं के मन की यह जिज्ञासा ही उन्हें यहां की एक एक गली में राधा और कृष्ण को खोजने के लिए विवश करती है।

निधिवन के रंगमहल को राधा जी के श्रृंगार और विश्राम कक्ष के रूप में जाना जाता है साथ ही राधा कृष्ण के मिलन स्थल के रूप में भी। वहां उनके श्रृंगार के सभी उपकरण, सामग्री और परिधानों को देखा जा सकता है।

भक्त जब इस रंगमहल को देखते है तो बस देखते रहना चाहते हैं जबकि पर्यटक देखने की कोशिश करते हैं तो भक्त बन जाते हैं।

निधिवन वह स्थान है जहां मर्यादाएं स्वयं अपनी सीमायें सीखती हैं, महिलाएं अपने आराध्य की उपासना और प्रतीक्षा का भाव तो पुरुष अपनी वचनवद्धता और प्रेम के परिपालन का पाठ सीखते हैं।

संतजन यहां वह अमृत पान करते हैं जिसकी प्यास उनमे दिव्य ग्रंथो में श्रीकृष्ण लीलाओं के श्रवण स्वरूप जागृत होती है और फिर यह बढ़ती रहती है।

निधिवन की लताएं यह बताने के लिए पर्याप्त हैं कि कृष्ण अपनी रासलीला के समय किस भावभंगिमा में रहते है। बिहारी जी की भांति इन लताओं का स्वरूप भी बांका है, टेढ़ा है, तिरक्षा है और कटीला भी।

निधिवन का सन्नाटा बताता है कि लताएं रातभर जगी हैं और वह विश्राम कर रही हैं। उनकी आकृति बताती है कि उनके पैर में अभी भी संगीतमयी पायलें सजी है किंतु उनके विश्राम करने की वजह से वह शांत है।

निधिवन की लताओं का गुथम गुथा आकार संकेत करता है कि अभी भी वह रास में कृष्ण के साथ अर्धचेतन अवस्था में मंत्रमुग्ध होकर नृत्य कर रही हैं और वह अपने प्रति बिल्कुल भी सचेत नही होना चाहती।

निधिवन यमुना से न तो बहुत दूर है और न ही बहुत समीप।बस दोनों के बीच शाहजी जी मंदिर है।किन्तु पूर्णिमा की रात में निधिवन के पास यदि कोई थोड़ा सा भी शोर कर सकता है तो केवल यमुना जी की लहरें।लेकिन यमुना जी इतनी गहरी और शांत हैं कि कोई शोर हो ही नहीं सकता।

यहां तो भोर का शोर केवल मोर करते हैं और फिर पूरे दिन के लिए शांत।

नाविक जरूर अपनी रंग बिरंगी नावों के साथ भक्तों को यमुना जी की सैर कराने हेतु आमंत्रित करते रहते हैं। वह भी विहारी जी के विश्राम के समय जब भक्त परिक्रमा मार्ग की ओर आते हैं।

अधिकांश श्रद्धालु निधिवन से निकलकर चीरघाट की ओर आते है। यहीं से वह कर सकते हैं यमुना जी के 17 घाटों की नाव द्वारा सैर।

चीरघाट पर कदम्ब के वृक्ष के पास जरूर कुछ पल ठहरते है, याद करते हैं, चर्चा करते हैं और आगे बढ़ जाते हैं।क्योकि अब सब छक चुके होते हैं। तभी तो कहते हैं –

प्रेम रस छाके पग पड़त कहाँ के कहाँ?

वस्तुतः निधिवन का वर्णन कर पाना मेरे लिए संभव नही है अपितु इसका अनुभव करना ज्यादा उचित होगा। यह भारत का ही नही अपितु विश्व के भी आश्चर्यजनक और अद्भुत स्थानों में से एक है।

हम तो घूम आये हैं। इस प्रेमगली में। आप भी आइये प्रेमगलीवृन्दावन…….निधिवन….

गिरजेश

Exit mobile version