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“जिस देश में बच्चे सुरक्षित नहीं वह देश विकसित नहीं हो सकता”

झुग्गियों में रहने वाले बच्चे

झुग्गियों में रहने वाले बच्चे

कुछ दिन पहले राजधानी दिल्ली के द्वारका इलाके के एक शेल्टर होम में बच्चियों के साथ शारीरिक और मानसिक शोषण का गंभीर मामला सामने आया है। सुनकर रूह कांप जाती है कि कोई इन अबोध बालिकाओं के साथ ऐसा कैसे कर सकता है?

खैर यह हुआ है। बच्चियों ने अपनी आपबीती में बताया कि उन्हें शेल्टर होम की साफ-सफाई से लेकर यहां की केयर टेकर सहित अधिकारियों के लिए नौकरानी की तरह काम करना पड़ता था। बच्चियों ने बताया कि उन्हें काम नहीं करने या गलती करने पर कठोर सज़ा दी जाती थी।

कठोर सज़ा? हमने और आपने शायद कठोर सज़ा के तौर पर मुर्गा बनाना, छड़ी से पिटाई या फिर पेंसिल को उंगलियों के बीच रखकर टीचर द्वारा ज़ोर से दबा दिए जाने के बारे में सुना होगा और हममें से कईयों को ये सज़ा मिल भी चुकी है। मैं यहां जिस सज़ा का ज़िक्र करने वाला हूं वह आप और हम महसूस भी नहीं कर सकते हैं।

बच्चियों ने बताया कि उनकी केयर-टेकर किसी गलती पर सज़ा के तौर पर उनके गुप्तांगों में लाल मिर्च पाउडर डाल  देती है। क्या हुआ? सुनकर यकीन नहीं हुआ ना। ऐसी सज़ा तो सिर्फ नर्क में दी जा सकती है।

क्या यह इसी दुनिया की घटना  है, भारत की? हां, यह घटना भारत की ही है, राजधानी की। जहां एक बदलाव पुरुष मुख्यमंत्री है तो वहीं दूसरा बदलाव का देवता प्रधानमंत्री। सारे मंत्रालय भी वहीं हैं और देश की सबसे मुस्तैद और हमेशा सेवा को तत्पर पुलिस भी। फिर भी बच्चियों की चीखें और सिसकियां किसी के भी कानों को भेद नहीं पाईं।

झारखण्ड, बिहार, उड़ीसा और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों से बच्चों खासकर लड़कियों को काम के बहाने लाकर महानगरों में बेच दिया जाता है और फिर इनमें से अधिकांश कभी भी अपने घर नहीं लौट पाती। शेल्टर होम में रहने वाली बच्चियों के साथ भी यही होता है।

दिल्ली के शेल्टर होम से गायब हुई थीं 9 बच्चियां

अभी कुछ दिन पहले ही दिल्ली के एक शेल्टर होम से 9 बच्चियां गायब हो गईं थी। दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाती मालीवाल ने इसे संज्ञान में लिया तब कहीं जाकर सरकार, प्रशासन और पुलिस की नींद खुली, वह भी सिर्फ आश्वासन देने के लिए।

आप लोग बिहार का मुज़फ्फरपुर कांड तो भूले नहीं होंगे या शायद भूल गए हैं? क्या करें मीडिया में बीच का दौर बड़ी-बड़ी रॉयल शादियों वाला जो रहा। कोई नहीं, हम आपको याद दिला देते हैं।

मुज़फ्फरपुर में न्यूज़ पेपर निकालने वाले कथित समाजसेवी और फुलटाइम बाहुबली टाइप एक आदमी अनाथाश्रम चला रहा था। टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस के स्टूडेंट्स ने बताया कि यहां कुछ तो गड़बड़ है लेकिन प्रशासन की नींद खुली काफी लेट। वहां की बच्चियों ने रेस्क्यू के बाद जो बताया वह हैरान से ज़्यादा डराने वाला था।

बच्चियों ने बताया,

यहां अक्सर कुछ अंकल आया करते थे और हमें उनके साथ गंदी हरकत के लिए मजबूर किया जाता था। मैडम जी मारती थीं अगर मना करो तो। एक अंकल तो गुप्तांगों में लात मारते थे। दीदी गई तो फिर वापस नहीं आई।

ज़ाहिर है कि उनसे देह व्यापार कराया जा रहा था। शर्मनाक बात यह है कि मुख्य आरोपी के बचाव में उसकी पत्नी और बेटी उतर आई, सबकुछ पता होते हुए भी। आखिर कैसे की जाए महिला सुरक्षा की बात। इस मामले की भी लीपा-पोती की खूब कोशिशें हुईं।

बच्चे हैं इसका यह कतई मतलब नहीं कि उनके साथ किसी भी तरह की शर्मनाक हरकत की जाए, बर्बरता की जाए लेकिन यह हो रहा है। यौन उत्पीड़न, मानव तस्करी, मारपीट, बाल मज़दूरी या फिर स्कूलों में निजी खुन्नस निकालना, सबके लिए तो बच्चे ही आसान टार्गेट हैं। वे बेचारे बोलेंगे नहीं।

हाल ही में संसद के शीतकालीन सत्र में सपा सांसद द्वारा बच्चों के प्रति हुए अपराधों के बाबत पूछने पर महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के हवाले से बताया कि साल 2014 से लेकर साल 2016 के बीच 22,167 मामले सामने आए हैं बच्चों की तस्करी को लेकर।

उन्होंने वर्षवार ब्यौरा देते हुए कहा कि साल 2014 में बच्चों की तस्करी से जुड़े 5985 मामले सामने आए। साल 2015 में 7148 मामले आए तो वहीं साल 2016 में 9034 मामले दर्ज किए गए। ज़ाहिर है कि इन बच्चों की तस्करी यौन हिंसा से लेकर बाल मज़दूरी और अंग व्यापार तक के लिए किए गए। इनमें से कितने मामलों में पुलिस ने सफलतापूर्वक बच्चों को रेस्क्यू किया इसपर बात की जाए तो बहस और भी लंबी होगी।

ज़ाहिर है कि जब हाल ही में बच्चों के प्रति अपराध के लिए कठोर कानून से संबंधित विधेयक संसद में पास होता है उसी समय बच्चियों के साथ अपराध की दुर्दांत घटना सामने आ जाती हैं। बाल मज़दूरी करते बच्चे आपकी इसी गलतफहमी का मखौल उड़ाते हैं। इसके बाद भी धरातल पर सब वैसे ही चल रहा है तो बंद करिए इस देश को सबसे बड़ा लोकतंत्र और उभरता भारत  कहना और बंद करिए सबसे लोकतांत्रिक सरकार होने का दावा करने वाला ढोंग।

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