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“राजनीति ने समाज को असहनशील बना दिया है..।”

 

पिछले वर्षों में देश मे एक राजनैतिक व सामाजिक असहनशीलता का विष बहुत ही तीव्र गति से समाज व व्यतिगत संबधों व हिन्दुस्तान की मूल गंगा-जमुनी तहजीब को तार-तार करता जा रहा है।वैचारिक असमानता हिंदुस्तान के लोकतांत्रिक मूल्यों और सामाजिक गठजोड़ को राजनैतिक कुंठा व व्यतिगत स्वार्थ के चलते बहुत ही निम्न श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया है।विचारधारा के नाम पर हिंसा,मारपीट,हत्या आज बहुत ही आम हो गया है।

साथ ही बहुत ही दोयम दर्जे के कुतर्को के सहारे एक विचार अन्य व निष्पक्ष विचार के ऊपर हावी है और उसे हिंसा,हत्या या किसी भी अन्य तरीके से दूसरे विचार को गिराने के लिए राजनीति की चाभी(पद व चुनावी टिकट) थमा दिया जाता हैं।सायद अब यह अत्यंत जटिल समय है निष्पक्ष आमजनों, लेखकों,एवं पत्रकारों का जिन्हें अपने आस-पास ऐसी परिस्थितियों का रोजाना दो-चार होना पड़ता है।

सायद अब इस दौर में राष्ट्रीय राजनीति में व देश के भले के लिए व सामाजिक व राष्ट्रीय समरसता हेतु पूर्व प्रधानमंत्री स्व.श्रीमती इंदिरा गांधी जी विपक्ष के नेता स्व.अटल बिहारी वाजपेयी जी को संयुक्त राष्ट्र में देश का प्रतिनिधित्व करने भेजती है,ऐसे फैसले लेकर हिंदुस्तान की युवा पीढ़ी व राजनीति को गंगा-जमुनी तहजीब व राष्ट्रवाद की प्रेणना दी जाएंगी, यह कहना अब इस असहनशीलता के दौर में दूर की कौड़ी होगी।परन्तु निश्चित ही हम आप सभी को इन सब से स्वंम व परिजनों व अपने आस-पास के मित्रों को इस प्रकार की गतिविधियों से बचा कर रखना होगा व समाज मे ईर्ष्या, द्वेष एवं कुंठाओ को दूर कर प्रेम की एक अलख जगाने होगी।

जय मानवता!!

-सोशलिस्ट हर्षित आज़ाद

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