कुछ दिन पहले मैं सरकारी ड्यूटी पर एक गाँव मे गया हुआ था जहाँ ठहरना एक सरकारी स्कूल में हुआ। वह एक प्राथमिक शाला थी जहाँ कक्षा 1 से 5 तक की कक्षाएं लगती हैं। लेकिन अगर उस स्कूल की बात करें तो वहाँ स्कूल के नाम पर एक कमरा था, जो प्रधानाचार्य के ऑफिस और 1-5 तक की कक्षाओं के काम आता है। बहुत अजीब लगा यह सब देख कर कि एक ही कमरे में अलग अलग तरह की 5 कक्षाओं के बच्चों को एक साथ कैसे पढ़ाया जा सकता है। आखिर सरकार यह किस तरह से शिक्षा का ढाँचा खड़ा कर रही है, जहाँ बुनियादी जरूरत भी पूरी नहीं की गई है। प्रत्येक कक्षा के साथ बच्चों की सोच, ज्ञान का स्तर और पाठ्यक्रम भी बढ़ता है, लेकिन इस तरह के ढाँचे के साथ आप किस तरह भारत के भावी भविष्य का निर्माण करना चाहते हैं। वहीं मुझे एक सहायक शिक्षिका के द्वारा पता चला कि इन 5 कक्षाओं के लिए सिर्फ 2 शिक्षक ही स्कूल में है जो उन्हें पढ़ाते हैं, सोच के देखिये की आखिर कैसे ये सब मुमकिन है और समझिए क्यों माता-पिता अपने बच्चों को निजी स्कूलों में भेजना ज्यादा उचित समझते हैं। सरकार को जरूरत है कि शिक्षकों की संख्या व भवन जैसी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने में कोई कोताही नहीं बरती जाए क्योंकि इन स्कूलों से ही भारत का एक गरीब बच्चा इस देश के भविष्य का निर्माता बनकर निकल सकता है। इसके लिए जरूरी है कि राज्य और केंद्र सरकारें इन बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रभावी कार्य करें और दूसरे राज्यों एवं देशों के शिक्षा मॉडलों से सीख लें। इस क्षेत्र में दिल्ली के शिक्षा मंत्री का कार्य अत्यंत सराहनीय है। यह भी सच है कि देश की जनता का एक बड़ा गरीब वर्ग अपने बच्चों को आज के निजी स्कूल में नहीं भेज सकता, क्योंकि गरीब वर्ग के लिए वर्तमान निजी स्कूल उस सपने की तरह हो गए हैं जिसे देख तो सकते हैं पर जी नहीं सकते। सरकार को निजी स्कूलों की मनमानी फीस बढ़ोत्तरी पर भी लगाम लगानी चाहिए क्योंकि कई निजी स्कूल ने शिक्षा को व्यवसायिक उद्देश्य के साथ सिर्फ़ धन कमाने का साधन बना लिया है। संविधान में शिक्षा को मूल अधिकार में शामिल करना ही काफी नहीं है बल्कि उचित शिक्षा व उचित माहौल में शिक्षा मिलना उतना ही अनिवार्य है।