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“निष्पक्ष जांच होती तो सलाखों के पीछे होते कमलनाथ”

कुछ लोग कह रहे हैं कि हाल ही में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बनाए गए कमलनाथ पर कोई केस दर्ज नहीं है। 1984 सिख विरोधी दंगों में कमलनाथ पर कोई केस दर्ज ना होने का कारण उनका निर्दोष होना नहीं, बल्कि राजीव गांधी द्वारा जांच को प्रभावित करना है।

कमलनाथ शायद पहले नेता रहे होंगे जिनके नरसंहार में सीधे-सीधे शामिल होने के गवाह मौजूद हैं। इंडियन एक्सप्रेस के जर्नलिस्ट संजय सुरी दिल्ली के रकाब गंज गुरुद्वारा के बाहर मौके पर कवर करने के लिए मौजूद थे। संजय सुरी के अनुसार, कमलनाथ रकाब गंज गुरुद्वारा के बाहर कॉंग्रेस के गुंडों का नेतृत्व कर रहे थे। उन्होंने बताया कि भीड़ पूरी तरह से कमलनाथ के नियंत्रण में थी और कमलनाथ के निर्देशों पर चल रही थी। कमलनाथ की मौजूदगी में भीड़ ने गुरुद्वारे पर हमला भी कर दिया। ये सब जब चल रहा था तब गुरुद्वारे के बाहर 2 सिख ज़िंदा जल रहे थे। कमलनाथ ने उन्हें अस्पताल पहुंचाने की कोई कोशिश नहीं की।

संजय सुरी ने यह भी बोला कि कमलनाथ ने भीड़ में कुछ लोगों को काबू में करने की कोशिश की लेकिन इस बात से उन्होंने कमलनाथ को निर्दोष नहीं ठहराया।

उन्होंने सवाल इस पर भी उठाया कि वो भीड़ ज़रूर कॉंग्रेस के कार्यकर्ताओं की रही होगी तब तो कमलनाथ का उस भीड़ पर इतना नियंत्रण था कि उनके कहने पर भीड़ उग्र हो जाती थी और उनके कहने पर शांत। भला खून की प्यासी भीड़ एक एमपी के कहने पर अपनी प्यास कैसे भुला देगी जब तक वो एमपी उस भीड़ का नेतृत्व ना कर रहा हो।

अगले दिन इंडियन एक्सप्रेस की हेडलाइन में भी इस बात का ज़िक्र था कि कमलनाथ रकाब गंज गुरुद्वारा में भीड़ का नेतृत्व कर रहे थे। दिल्ली पुलिस कमिश्नर सुभाष टंडन और एडिशनल कमिश्नर गौतम कौल ने भी कमलनाथ के रकाब गंज गुरुद्वारा में मौजूद रहने की पुष्टि की।

कमलनाथ। फोटो सोर्स- फेसबुक

दंगों की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश रंगानाथ मिश्रा की अध्यक्षता में कमिटी बनाई गई। संजय सुरी ने कमिटी में एफिडेविट भी दिया कि कमलनाथ पर जांच होनी चाहिए लेकिन रंगानाथ मिश्रा कमिटी ने कमलनाथ पर कोई जांच तक नहीं की। रंगनाथ मिश्रा कमिटी का रवैया पूरी तरह से पक्षपातपूर्ण था। मीडिया को जांच प्रक्रिया रिपोर्ट करने की भी आज़ादी नहीं दी गई, जिससे साफ पता चलता है कि जांच में कोई पारदर्शिता नहीं बरती गई। बाद में कॉंग्रेस ने रंगनाथ मिश्रा को राज्यसभा सांसद भी बना दिया। क्या यह तोहफा था?

दंगों के बाद प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने बयान दिया, “जब एक बड़ा पेड़ गिरता है तो ज़मीन हिलती है”। प्रधानमंत्री ने एक तरह से सिखों के नरसंहार को सही ठहरा दिया। यह बयान इस बात का प्रमाण था कि जितनी असंवेदनशीलता प्रधानमंत्री ने यह बयान देते हुए दिखाई, उतनी ही असंवेदनशीलता नरसंहार के वक्त पुलिस ने दिखाई और बाद में जांच करने वाली रंगानाथ मिश्रा कमिटी ने भी दिखाई।

20 साल बाद नानावटी कमीशन ने कमलनाथ को कोई क्लीन चीट नहीं दी। कमलनाथ ने नानावटी कमीशन के सामने खुद भी माना कि वो गुरुद्वारा रकाब गंज पर मौजूद थे। हालांकि उन्होंने भीड़ का नेतृत्व करने के आरोपों का खंडन किया। नानावटी कमीशन ने बोला,

कमलनाथ नहीं बता पाए कि वो 2 घंटे गुरुद्वारे में क्या कर रहे थे। वो नहीं बता पाए कि उन्होंने दंगाइयों पर नियंत्रण करने के लिए वहां मौजूद पुलिस अफसरों से संपर्क क्यों नहीं किया लेकिन शायद वो यह सब इसलिए नहीं बता पाए क्योंकि उन्हें 20 साल बाद बुलाया गया।

नानावटी कमीशन ने कमलनाथ पर “बेहतर सबूत ना होने के अभाव” में केस दर्ज नहीं किया। इसे आप क्लीन चीट मानते हैं तो भक्त आप भी हैं। कमलनाथ को नानावटी कमीशन ने “बेनिफिट ऑफ डाउट” दिया था। रंगानाथ मिश्रा ने निष्पक्ष जांच की होती तो कमलनाथ पर भी केस दर्ज होते और उन्हें सज़ा भी हो सकती थी।

कॉंग्रेस के शशि थरूर का कहना है कि जैसे नरेंद्र मोदी को गुजरात दंगों के लिए “बेनिफिट ऑफ डाउट” मिला वैसे ही कमलनाथ को भी मिलना चाहिए। यह बयान देते हुए शशि थरूर ने कॉंग्रेस और बीजेपी के अंतर को और कम कर दिया। कॉंग्रेस का कमलनाथ को मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री बनाना और फिर शशि थरूर का यह बयान देना, इस देश की जनता को निराश कर सकता है जो बीजेपी की सांप्रदायिक राजनीति का विकल्प कॉंग्रेस में देखते हैं।

1984 सिख विरोधी दंगों में इंसाफ के लिए लगातार लड़ रहे सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील एचएस फूलका का कहना है कि कमलनाथ के खिलाफ भी पर्याप्त सबूत हैं और वह कमलनाथ को सज़ा दिलाने के लिए न्यायायिक लड़ाई लड़ेंगे।

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