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“देश को राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की जनता का शुक्रगुज़ार होना चाहिए”

पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के परिणाम आ चुके हैं लेकिन लोगों को तीन राज्यों के चुनावी नतीजों में ज़्यादा दिलचस्पी थी क्योंकि इन राज्यों में दोनों राष्ट्रीय दल आमने-सामने थे इसीलिए इन चुनावों को 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव के सेमीफाइनल की तरह देखा जा रहा था। यहां हम उन कारणों पर विचार करेंगे कि क्यों ये चुनाव परिणाम भाजपा की हार और कॉंग्रेस की जीत से ज़्यादा महत्वपूर्ण है और कैसे इन परिणामों से भारतीय लोकतंत्र पर मंडराते खतरे थोड़ा कम हुए हैं-

1. भीड़तंत्र में बदलता लोकतंत्र

हाल ही में उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में जिस तरह एक इंस्पेक्टर की हत्या भीड़ द्वारा कर दी जाती है, इससे कानून व्यवस्था के साथ-साथ और भी कई सवाल खड़े होते हैं। यहां राहत इंदौरी याद आते हैं, “लगेगी आग तो आएंगे घर कई जद में। यहां पर सिर्फ हमारा मकान थोड़ी है।”

2. संवैधानिक संस्थाओं पर हमला

भाजपा सरकार के आने के बाद से ही, उसपर संवैधानिक संस्थाओं की स्वायत्तता पर हमला करने के आरोप लगते रहे हैं। हाल ही में पहले सीबीआई विवाद और फिर आरबीआई और सरकार के बीच जिस तरह का विवाद सामने आया वह अभूतपूर्व था। आरबीआई के सेक्शन सात के इस्तेमाल की बात पहली बार सामने आई, जिससे आरबीआई की स्वायत्तता पूरी तरह खत्म हो जाती है और इन सारे विवादों के बीच ही जिस तरह से आरबीआई गवर्नर का इस्तीफा हो जाता है उससे इन आरोपों को और बल मिलता है।

3. फेक न्यूज़ को बढ़ावा

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजस्थान में अपनी सोशल मीडिया कार्यकर्ताओं की एक मीटिंग में फेक न्यूज़ फैलाने को लेकर कहते हैं, “यह काम है तो करने जैसा मगर करना नहीं चाहिए, समझ में आता है?”। खुद प्रधानमंत्री मोदी सोशल मीडिया पर ऐसे कई लोगों को फॉलो करते हैं जो दिन-रात सोशल मीडिया पर झूठ और ज़हर की खेती करते हैं।

4. असहमति की हर आवाज़ को कुचलने की कोशिश

“Dissent is a safety valve of democracy. If you don’t allow dissent, the pressure valve of democracy will burst” . सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक मामले की सुनवाई करते हुए,  यह टिप्पणी सरकार के लिए की थी। पिछले कुछ सालों से जिस तरह असहमति की हर आवाज़ को एंटी नैशनल, पाकिस्तान और अर्बन-नक्सल ठहरा दिया जा रहा है वह हमारे लोकतंत्र के लिए काफी खतरनाक है।

5. जनता को मुर्ख समझना

अली या बजरंगबली, कब्रिस्तान-श्मशान,  महाभारत काल में इंटरनेट, गोबर के कोहिनूर हीरे से ज़्यादा कीमती बताए जाने जैसे बयान भाजपा के शीर्ष नेताओं द्वारा दिये गये हैं। इन बयानों को अगर आप शैक्षणिक संस्थानों के हिन्दुत्वकरण से जोड़कर देखेंगे तो आप पाएंगे कि यह सब साइंटिफिक और लॉजीकल सोच को खत्म करने की कोशिश है।

इस मैंडेट के बाद यह उम्मीद तो की ही जा सकती है कि वर्तमान सरकार लोकतंत्र को कमज़ोर करने की कोशिशों को छोड़कर नौजवानों और किसानों की समस्याओं पर अपना ध्यान केन्द्रित करेगी।

अंत में हबीब जालिब का यह शेर, “तुमसे पहले वो जो इक शख्स यहां तख्त-नशीं था। उसे भी अपने खुदा होने पर इतना ही यकीं थी”।

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