अनुश्री फड़नवीस की कलम से
(हिंदी अनुवाद – रोहित शुक्ला)
मैंने मुंबई की लोकल ट्रेनों के जनाना डिब्बों में औरतों की तस्वीरें उतारनी शुरू की, अपने आस-पास के उन जगहों को जानने के लिए जो खास औरतों के लिए बनाई गई हैं। मैंने जॉन बर्जर की Ways Of Seeing (देखने के तरीके) पढ़ी है, जिसमें उनका कहना है कि औरतें अपने आप को हमेशा एक मर्द के दृष्टिकोण से ही देखती हैं। मेरी इन तस्वीरों के ज़रिए मैं एक झरोखा पेश करना चाहती थी उन गुप्त लम्हों की जब औरतें किसी की दृष्टिकोण की चिंता किए बगैर अपनी ज़िंदगी जीती हैं।
मुंबई की लोकल ट्रेनों में औरतों की ये तस्वीरें मेरी Train Diaries Series (ट्रेन डायरीज़ श्रृंखला ) में इंस्टाग्राम पर दिखीं, और प्रदर्शनियों में भी दिखाई गईं, उदाहरण के तौर पर इंग्लैंड में “A Million Mutinies Later – India at 70” (सैकड़ों विद्रोहों के बाद- 70 वर्ष का भारत) का हिस्सा बनकर। औरतों की इन तस्वीरों को बहुत सराहा गया जिनमें रात में छक-छक-खट-खट चलती ट्रेन के दरवाज़े के बाहर झूलती लड़कियों की तस्वीरें, काम के एक लम्बे दिन के बाद घर लौटती औरतों की तस्वीरें, एहतियात से चुने हुए परिधानों में चमकती हुई विपरीत लिंगी स्त्रियों की तस्वीरें शामिल हैं ।
इंस्टाग्राम पर साझा की हुई मेरी हर तस्वीर ट्रेन पर सवार औरतों की ही नहीं होती हैं, बल्कि वो सामान्यतः सार्वजनिक स्थानों पर लोगों की होती हैं। कुछ दिन पहले मैंने एक अलग तरह की तस्वीर साझा की, शीर्षक था, “मेरे प्रेमी के लिए एक तस्वीर।” वो मेरे बाथरूम में मेरी तस्वीर थी, जिसमें आप मेरे पैरों को और मेरे अंडरवियर को मेरी एड़ियों पर देख सकते हैं। ये फोटो मैंने अपने फोन पर कई साल पहले ली थी और अपने बॉयफ्रेंड को भेजी थी, लेकिन ये मेरे साथ मेरे ज़हन में मौजूद रही।
मैंने सोचा कि ये एक दिलचस्प तरीका हो सकता है वासनात्मकता, रिश्तों और सहमति पर एक शृंखला शुरू करने का। खासकर एक ऐसे माध्यम का इस्तेमाल करते हुए जिसके ज़रिये हमारे अंतरंग रिश्तों का एक बड़ा भाग संचालित होता है। हमारी आज की बहुत कुछ अंतःक्रिया इस वर्चुअल दुनिया में पनपती है, और मैंने महसूस किया कि इस तस्वीर ने इसी बात को संचारित किया।
इस तस्वीर को पोस्ट करने से पहले, मुझे ये अंदाज़ा था कि मेरे पोस्ट पर दी गई सारी प्रतिक्रियाएं सकारात्मक नहीं होंगी। ऐसे बहुत थे जिन्होंने कहा कि वो समझ रहे थे कि मैं क्या ज़ाहिर करना चाह रही हूं, पर साथ-साथ बहुत सारे नकारात्मक रिस्पाॅन्स भी आए (ज़्यादातर टिप्पणीकारों ने अपने हैंडल्स पर बड़े मर्दाने नाम रखे थे)।
मैंने उम्मीद की थी कि कुछ लोग इसपर बड़ी घृणात्मक प्रतिक्रिया देंगे, और कुछ जवाबों ने तो मुझे हंसा ही दिया। जैसे कि एक शख्स ने कमेंट किया “तुम्हारा सन्सर्ग (communication) तुम्हारा सन्सर्ग है इसमें हमारे सन्सर्ग का कुछ भी नहीं ।” एक दूसरे ने कहा “मैं पिछले एक साल से तुम्हारी तस्वीरों को देखता आ रहा हूं मगर मैंने कभी ऐसी उम्मीद नहीं की थी। तुम्हारे पास तस्वीरों का महान संग्रह है, लेकिन ये #जनसमुदाय के लिए नहीं है #निजी चीज़ें #संकुचित विचारों का नहीं अनुरोध है कि इस भद्दी तस्वीर को हटा दो #ये इंस्टापिक तस्वीर नहीं है # ”
बहुतेरे जवाबों ने इशारा किया कि ये एक निजी तस्वीर जैसी दिखती है और इसे जनता में साझा नहीं करना चाहिए। एक टिप्पणीकार ने पूछा जैसे कि ये कोई हथकंडा है जो मैं अपना रही हूं। यहां तक कि कुछ लोगों ने मुझ से मेसेज करके पूछा कि क्या मेरा एकाउंट किसी ने हैक कर (चुरा) लिया है। लेकिन सही मायनों में मुझे सबसे ज़्यादा अचंभित किया उन चंद लोगों की उत्साहवर्धक प्रतिक्रियाओं ने जिन्हें वो तस्वीर प्यारी लगी।
मैं नहीं जानती कि ये प्रतिक्रियाएं वैसी ही होतीं यदि किसी लड़के ने ऐसी कोई तस्वीर पोस्ट की होती – शायद हां या शायद ना। लेकिन मैंने ये महसूस किया कि औरतों द्वारा अपने विषय की कोई तस्वीर साझा करने पर मर्दों को अवश्य समस्या होती है। जैसे कि मेरी सारी कृतियों को देखने के बाद, उन्होंने सोचा “ मैं इस इंसान को जानता हूं और मुझे इससे ऐसी उम्मीद नहीं थी।” कुछ फब्तियों ने दर्शाया कि मैंने कुछ इतना निजी पोस्ट करके जैसे कोई लक्ष्मण रेखा पार कर दी हो। ऐसा तो नहीं था कि कि मैंने अपनी योनी की तस्वीर साझा कर दी थी। मैं ये बिलकुल भी नहीं कहूंगी कि ऐसा करना गलत है या बुरा है या फिर सुन्दर नहीं है पर उस तस्वीर को नग्नता का अंश, संकेत, निजी जगह पर दाखिला देने का इशारा मानकर कुछ लोग बहुत हैरान-परेशान हो गएं।
जब किसी एक्टर या मॉडल का सवाल नहीं होता, तो हर कोई किसी महिला को पड़ोस की लड़की के बतौर देखना चाहता है । मगर जब आप एक स्त्री हैं जो पड़ोस का दरवाज़ा खुद खोल देती हो, और लोगों को अपनी ज़िन्दगी जैसी है, वैसे ही सरलता से दिखाती हो, खासकर तब, जब किसी के जिस्म और वासना की बात हो तो वो लोगों को काफी असहज बना देता है। हम फिल्मों और किताबों के सन्दर्भ में वासनात्मकता की बातें कर सकते हैं पर निजी जीवन में यह लोगों को हजम नहीं होता।
वो तस्वीर अगर थोड़ी और मसालेदार होती, तो लोग पलक तक नहीं झपकाते। अगर वो कोई एक्टर या कोई मॉडल या फिर कोई अश्लील-चित्र-कलाकार होता जिसने वो तस्वीर कामोत्तेजक अंदरूनी वस्त्रों में उतारी होती या फिर किसी लड़की की किसी लड़के द्वारा खींची गई तस्वीर होती तो सब ठीक और शांत रहता। इस तस्वीर में मैं रोज़मर्रा की दुनियावी चीज़ों का वर्णन करने की कोशिश कर रही थी- कुछ इस तरह की फोटो जो हम औरतें किसी भी अच्छे दिन अपने प्रेमियों को यूंही भेजा करती हैं।
मेरे प्रेमी ने संभवतः उस वक्त मुझसे पूछा हो कि मैं उस पल क्या कर रही हूं, और जवाब में मैंने शायद ये तस्वीर उसको भेज दी होगी। मैं सोचती हूं कि ये उस तस्वीर का साधारणपन ही है जिसने टिप्पणीकारों की गिल्लियां बिखेर दीं।
मेरे काम में भी किसी तस्वीर में वासनात्मक भाव होते हैं, जैसे कि किसी औरत ने बहुत संभाल के कपड़े पहने हों या कोई ट्रांसजेंडर-स्त्री (transgender woman) कामुक मुद्रा में खड़ी हो लेकिन मैंने जान-बूझकर कभी भी वासनात्मक तरीके से उन्हें दर्शाने की कोशिश नहीं की है। उन तस्वीरों में लोगों का प्रतिबिम्ब मात्र है। ट्रेन में फोटो लेने के दौरान बहुत सी स्त्रियों ने मुझे बताया कि कैसे उन्हें लोगों के अनचाहे व्यंगों का और स्पर्शों का सामना करना पड़ता है। लोग तब हल्ला नहीं मचाते जब औरतों के साथ यह सब किया जाता है पर अगर वो अपनी चाहत व्यक्त करती हैं तो हल्ला मचाने वाले बहुत होते हैं, खासकर जब किसी के खुद की यौनइच्छाओं का ज़िक्र हो।
लोगों के मन में आपकी एक छवि है, और अगर आप उससे कुछ अलग निकलते हैं, तो लोग उस बात को झेल नहीं पाते। मैं सोचती हूं कि यही कारण है कि लोग इस तस्वीर को उस अनुश्री से नहीं मिला पाए जिसे वो समझते हैं कि वो जानते हैं क्योंकि वो मेरी कृतियों को देखते आए हैं।
मेरी वो तस्वीर एक वार्तालाप को दर्शाती है, दो व्यक्तियों के बीच एक संवाद, वासनात्मकता, चाहत और सहमति के बारे में। ये सब ऐसी बातें हैं जिनके बारे में मैं चाहती हूं कि हम सब ज़्यादा और अक्सर बातें करें।
(दीपिका एस से बातचीत में कही गई बातें)
अनुश्री फड़नवीस हिंदुस्तान टाइम्स में बतौर एक चित्र-संवाददाता कार्यरत हैं।
इनके चित्रलेख आप Nights Full of Women में Agents Of Ishq (एजेंट्स ऑफ इश्क) पर देखिए।