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Affirmative action(USA) vs आरक्षण(भारत)

Affirmative action(USA) vs आरक्षण(भारत)
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इनसे मिलिए !! ये हैं डॉ अजय कोठारी अमेरिका के ऐरो साइंटिस्ट और ‘इंडियन इंजीनियर असोसिएशन, अमेरिका’ के अध्यक्ष। इस वीडियो में अपने दर्द भरे अनुभव साझा करते हुए कह रहे हैं कि वो देश की सेवा कर रहे हैं लेकिन उनके साथ अमेरिका में भेदभाव हो रहा है।इनके मुताबिक गोरे लोगों को भारतीय लोगों से ज्यादा अवसर मिलते हैं। इन्हें ये भी शिकायत है कि हमेशा से ‘स्पेलिंग बी’ (अमेरिका में होने वाली स्पेलिंग प्रतियोगिता) में भारतीय बच्चे जीतते आये हैं लेकिन हॉलीवुड ने एक अफ्रीकन बच्ची को लेकर इसी विषय पर फिल्म बनाई भारतीय बच्चे को लेकर नहीं। (‘तोता रटंत’ पद्धति के मास्टर, ‘भारतीय बच्चे’ सिर्फ इसी प्रतियोगिता में बाज़ी मारते हैं यह एक अलग पोस्ट का विषय हो सकता है।) इन्होने NBA (नेशनल बास्केट बाल  असोसिएशन)  टीम में भी अपने लिए जगह माँग ली।
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मौजूदा समय में हार्वर्ड विश्वविद्यालय में एशियाई स्टूडेंट्स की संख्या लगभग 20% है जबकि देश में एशियाई लोगों की जनसंख्या लगभग 6% है। फिर भी बहुत से एशियाई छात्र विश्वविद्यालय पर भेदभाव का आरोप लगा कर सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा कर रहे हैं, और उनके इस काम में मदद वो व्यक्ति कर रहा है जो अमेरिका में अल्पसंख्यकों को मिल रहे affirmative action को ख़त्म करना चाह रहा है। एडवर्ड ब्लूम नामक यह व्यक्ति पहले ही ‘काले’ लोगों के लिए फिक्स कोटा को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देकर ख़त्म करवा चुका है। इसका कहना था कि एक ‘गोरे’ लड़के को कॉलेज में एडमिशन इसलिए नहीं था क्योंकि वहाँ ‘काले’ लोगों के लिए कोटा फिक्स था।

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जरा ध्यान से देखिये !! ऐसा ही तर्क भारत में ‘प्रतिनिधित्व विरोधी’ भी दिया करते हैं। किसी भी योग्य उम्मीदवार के चुनाव में उसका ‘सम्पूर्ण मूल्यांकन’ होना चाहिए जिसमें उसका ‘सामाजिक वर्ग’ भी शामिल होना चाहिए। इस बात को ऐसे समझा जा सकता है कि किसी फाइन आर्ट के कॉलेज के अंडरग्रेजुएट कोर्स में अगर 100 सीटें हों तो उसमें 17 सीटें उन ऍप्लिकेन्ट्स को मिलनी चाहिए जो स्टिल लाइफ, मेमोरी ड्राइंग, और सामान्य ज्ञान में इतने निपुण हों कि इसे तय समय में क्वालिटी के साथ पूरा कर सकें, और!! SC कंम्यूनिटी से आते हों। यानि सीटों के बँटवारे के समय यह सुनिश्चित करना चाहिए कि छात्र किसी भी परीक्षा के लिए ‘मूलभूत योग्यता’ (एंट्रेंस टेस्ट या कट ऑफ परसेंट आदि) को पूरा करते हों और समाज के सभी वर्गों से आते हों।

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लेकिन भारत के विश्वविद्यालयों के असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति में ‘विभागवार नियुक्ति’ और ’13 पॉइंट रोस्टर’ और कॉलेज की सीटों में अपने ही वर्ग में फाइट करने की बाध्यता जैसे कुटिल नियमो को लागू करके वंचित समुदाय से आने वाले योग्य उम्मीदवारों की भी नियुक्ति के रास्तों को बंद करने का षड्यंत्र उसी समुदाय के लोग जारी रखे हुए हैं जो अमेरिका जैसे बाहरी देशों में तुरंत अपने साथ भेदभाव का रोना रोने लगते हैं।
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source: Hasan Minhaj- The patriot act: Affirmative action

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