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“क्यों एक ऑटो वाले ने मुझसे कहा कि अन्ना का चूस लिया गन्ना!”

Arvind Kejriwal And Anna Hazare

पहली बात तो मैं यह बता दूं, ना तो मैं केजरीवाल का विरोधी हूं और ना अन्ना जी का समर्थक। एक बात यह भी बता दूं कि इस लेख का जो शीर्षक है उसका लेखक भी मैं नहीं। इस लेख का लेखक दरअसल एक ऑटो वाला है जिसने हाल ही में यह बात कही थी, मज़ाकिया अंदाज़ में।

खैर उसने यह बात, “अन्ना का चूस लिया गन्ना” इस परिप्रेक्ष्य में कही थी,

केजरीवाल ने अपने राजनैतिक करियर के लिए अन्ना का उपयोग किया, उनका इस्तेमाल किया, फिर उपयोग करके उन्हें फेंक दिया। यह बात मेरे ज़हन में भीतर तक घुस गयी। उस ऑटो वाले की बात मुझे बार-बार चुभ रही थी।

एक-एक करके मुझे वे सारी पुरानी बातें  याद आने लगी। वह रामलीला मैदान याद आने लगा जहां मेरे जैसे हज़ारों लोग अन्ना के नाम पर पहुंचे थे। बारिश में भींगते हुए घंटों तक अन्ना का इंतज़ार किया था। यहां तक कि मेरा सैमसंग का महंगा मोबाइल भी पानी में भींगकर खराब हो गया था। समकालीन सरकार के विरुद्ध ज़बरदस्त गुस्सा था मन में। अन्ना को ज़बरदस्ती तिहाड़ जेल में डाल दिया गया।

अन्ना आंदोलन में शामिल लोग। फोटो सोर्स- Getty

यह बात हम सभी को आश्चर्यचकित कर रही थी कि एक बूढ़ा आदमी देश के हितों की रक्षा के लिए इतने दिनों से भूखा पड़ा था। उन दिनों हमलोग अन्ना और किरण बेदी के नाम से ही पहुंचे थे। केजरीवाल जी को कोई नहीं जान रहा था। कुमार विश्वास की कविताएं हमें आंदोलित कर रही थीं।

अन्ना के उपवास के दबाव में पार्लियामेंट का सेशन बुलाया गया। मुझे यह भी याद आया कि कैसे अन्ना को जेल भेजा गया और कैसे अन्ना के समर्थन में सारा देश जाग उठा था। देश का कोना-कोना अन्ना की ताकत की दुहाई दे रहा था।

लोकपाल की बातें चल रही थीं। अन्ना में गांधीजी की झलक दिखाई पड़ रही थी। चारों तरफ “मैं भी अन्ना, तू भी अन्ना” की आवाज़ें चल रही थीं। फिर कैसे आम आदमी पार्टी की स्थापना की गयी। कैसे अरविन्द केजरीवाल ने अन्ना की असहमति के बावजूद आम आदमी पार्टी की स्थापना की घोषणा कर दी।

फोटो सोर्स- Getty

घोषणा के वक्त मैं भी मौजूद था जंतर-मंतर पर। लोगों को एक राजनितिक पार्टी दिखाई पड़ रही थी, जो धर्म और जाति की राजनीति नहीं कर रही थी। यह आशा जगी मन में कि यह शायद भारत की वह पार्टी है जिसके लिए महात्मा गाँधी, सुभाष चन्द्र बोस, सरदार भगत सिंह, चन्द्र शेखर आज़ाद ने अपने प्राणों की आहुति दी थी। मैंने भी आम आदमी पार्टी के लिए यह कविता बनाई थी।

वादा किया जो मोदी ने,

पूरा करेगी आप।

दिल्ली से शुरुआत हो चुकी,

जनता करेगी राज।

 

जनता जाग चुकी है अब,

बस है यह आगाज़।

बंद करो अब हाथ वालों,

दिखाना सब्ज बाग।

 

अब जाति धर्म के नाम पर,

नहीं बिकेगी जनता।

नेताओं के मकड़ जाल में,

नहीं फसेगी जनता।

 

नहीं फसेगी जनता,

कि जन में अलख जगा रहे हैं।

अरविंद सपने जो दिखा रहे हैं,

सच में निभा रहे हैं।

फिर दिखाई पड़ने लगता है आज का दिन। केजरीवाल का साथ एक-एक करके सारे लोगों ने छोड़ दिया। योगेन्द्र यादव, प्रशांत भूषण, यहां तक कि किरण बेदी केजरीवाल के विरुद्ध चुनाव के मैदान में उतर गयीं। कुमार विश्वास भी यदा-कदा कविताओं के माध्यम से अपने विरोध प्रदर्शित करते रहे हैं। केजरीवाल आज दिल्ली के सीएम, मनीष सिसोदिया दिल्ली के डिप्टी सीएम और अन्ना राजनैतिक हासिये पर हैं।

आज केजरीवाल मुसलमान भाइयों की टोपी पहनते हैं तो कभी पंजाब में जाकर सिख भाइयों की पगड़ी भी पहनते हैं। लोकपाल बिल की बात ठंडे बसते में चली गयी। उसी धर्मगत और जातिगत राजनीति पर उतर गयी है आम आदमी पार्टी।

फोटो सोर्स- Getty

मैं सोचता हूं आज जो कुछ भी हुआ है, अगर अन्ना का आंदोलन नहीं हुआ होता, तो क्या आज यह हो पाता? क्या केजरीवाल आज दिल्ली के सी.एम और मनीष सिसोदिया दिल्ली के डिप्टी सी.एम. बन पाते? क्या लोग केजरीवाल और मनीष सिसोदिया को जान पाते?

आज के दिन अन्ना भले ही याद नहीं आते हो पर यह बात भूलने वाली नहीं है कि सत्तर से ज़्यादा उम्र का एक आदमी कैसे देश की भलाई के लिए अपनी जान की बाज़ी लगा देता है। मायावती ने भी अपने राजनैतिक गुरु कांशीराम को अमर बना दिया। अब कांशीराम को दुनिया जानती है।

यदि केजरीवाल उस ऑटो रिक्शावाले की बात को सच में गलत साबित करना चाहते हैं तो यह बेहतर होता कि दिल्ली में अन्ना के नाम का कोई हॉस्पिटल, स्कूल, कॉलेज आदि बनवा दें ताकि लोग अन्ना के योगदानों को भूल नहीं सकें। नहीं तो उस ऑटो रिक्शावाले जैसे कई लोग केजरीवाल पर यह लांछन ज़रूर लगाते रहेंगे कि केजरीवाल ने अन्ना हज़ारे का उपयोग अपने राजनैतिक भविष्य को बनाने के लिए किया है और तब तक उस ऑटो रिक्शावाले की यह बात मेरे मन में खटकती रहेगी कि केजरीवाल ने “अन्ना का चूस लिया गन्ना”।

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