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“मोदी जी, नोटबंदी के फैसले से पहले थोड़ी तैयारी तो कर लेते!”

नोटबंदी

नोटबंदी

भारतीय नोटों के विमुद्रीकरण या नोटबंदी को आज दो वर्ष हो चुके हैं। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा 8 नवंबर 2016 को देश के नाम जो संबोधन किया गया था, वह आज भी मेरे कानों में गुंजती है। प्रधानमंत्री ने भारत में चल रहे 500 और 1000 के नोटों को 8 नवंबर की आधी रात से ही अवैध घोषित कर दिया था। 

नोटबंदी की घोषणा के बाद बैंकों व डाकघरों में पुराने नोटों को बदलने के लिए 30 दिसंबर 2016 तक का वक्त दिया गया ताकि लोग अपने पुराने  पांच सौ व हज़ार के नोट भारत सरकार द्वारा जारी दो हज़ार रुपये के नए नोटों के साथ एक्सचेंज कर सकें या उन्हें अपने बैंक खातों में जमा करा पाएं।

राष्ट्र के नाम अपने संदेश में प्रधानमंत्री मोदी ने इस प्रकार बिना किसी पूर्व सूचना के बड़े नोटों का विमुद्रीकरण कर सबको चौंका दिया था। सरकार द्वारा उठाए गए इस कदम के पीछे बड़ी मात्रा में बाज़ार में चल रहे नकली नोटों की समस्या, नकली नोटों के बल पर बढ़ रहे आतंकवाद, भारत में चल रहे गैर कानूनी व्यापार और काले धन का होना बताया जा रहा था।

सरकार का दावा था कि काला धन लोगों के पास बड़े नोटों की शक्ल में अल्मारियों व तहखानों में छिपाया गया है। इसलिए बड़े नोटों को खत्म करने से काला धन भी बाहर आएगा। काले धन से निपटने के लिए सरकार ने इससे पूर्व ‘आय घोषणा कार्यक्रम IDS’ चलाया जहां सरकार को बहुत कम सफलता मिली।

बढ़ते भ्रष्टाचार पर लगाम व भ्रष्टाचारियों के खिलाफ एक जंग को भी सरकार ने बड़े नोटों के विमुद्रीकरण का कारण बताया लेकिन हमारे देश में काला धन मुद्रा के रूप में ना होकर अवैध संपत्ति के तौर पर रखा जाता है। बेनामी संपत्ति या अपने किसी खास के नाम पर खरीदी गई संपत्ति या कोई बहुमूल्य धातु खरीद कर काले धन को ठिकाने लगाया जाता है।

भारत सरकार के इस कदम से सभी ओर खलबली मच गई और पूरे देश में एक माह से भी अधिक समय तक अफरातफरी का माहौल रहा। कुछ लोगों ने नोटबंदी को एक ऐतिहासिक कदम बताया तो कई जगहों पर इसे नासमझी वाला फैसला करार दिया गया।

कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों के प्रमुखों ने भारतीय प्रधानमंत्री को इस प्रकार के कड़े फैसले लेने के लिए बधाई संदेश भी भेजे। परन्तु देश में कई राजनीतिक पार्टियों ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया व संसद का शीतकालीन सत्र नोटबंदी की भेंट चढ़ गया।

सरकार द्वारा पुराने नोटों के चलन पर कई जगहों पर कुछ समय के लिए छूट भी दी गई। जैसे- अस्पतालों, पेट्रोल पंपों, टोल नाकों आदि पर 15 दिसंबर 2016 तक सरकार द्वारा पुराने नोटों से लेन-देन में छूट प्रदान की गई जिसकी अवधि बाद में और बढ़ा दी गई।

नोटबंदी के खिलाफ प्रदर्शन

यह कहना गलत नहीं होगा कि सरकार द्वारा लिया गया यह फैसला काला धन, भ्रष्टाचार, कालाबाज़ारी, टैक्स चोरी व आतंकवाद से देश की लड़ाई में एक अहम कदम साबित हो सकता था, लेकिन इतने बड़े स्तर पर लिए गए फैसले से पूर्व कुछ तैयारियां होनी चाहिए थी।

विमुद्रीकरण के इस फैसले का आम जन पर बहुत गहरा असर पड़ा। मीडिया में कई माह केवल विमुद्रीकरण और आम जन को इससे होने वाली परेशानियों की ही खबरें सुर्खियों में रहीं। कहीं-कहीं तो लोगों ने बैंकों की लाइनों में खड़े-खड़े ही अपने प्राणों से हाथ धो दिए। बैंकों में लोग अपने पुराने नोट बदलवाने खड़े थे लेकिन बैंकों के पास उचित मात्रा में नए नोट ही नहीं थे।

सरकार द्वारा इस तरह बिन बताए, बिना उचित तैयारी के ऐसा फैसला लेने से यह लग रहा था कि सरकार आम जनता के प्रति असंवेदनशील रवैया अपना रही है। बैंकों को इस प्रकार की समस्या से निपटने के लिए पूर्व में सूचना ना देना, उचित मात्रा में नए नोटों को भारतीय रिज़र्व बैंक से ना छपवाना, नियमों में बार-बार परिवर्तन, जनता पर विमुद्रीकरण से पड़ने वाले प्रभावों की अनदेखी करने जैसी चीज़ों से यह साफ़ नज़र आ रहा था कि विमुद्रीकरण के फैसले के पीछे तैयारियां क्या थी।

अर्थशास्त्रियों के अनुमान के अनुसार इस बीच देश की अर्थव्यवस्था को भारी क्षति का सामना करना पड़ा एवं हमारे देश के पूर्व प्रधानमंत्री व जाने-माने अर्थशास्त्री डॉक्टर मनमोहन सिंह द्वारा भी इस बात की शंका जताई गई कि बड़े नोटों के विमुद्रीकरण के फैसले से हमारे देश की अर्थव्यवस्था पर इसका बहुत गहरा असर पड़ेगा व सकल घरेलू उत्पाद में 2 या उससे अधिक प्रतिशत की कमी देखने को मिलेगी।

नोटबंदी के फलस्वरूप छोटे व मझोले उद्योगों पर इसका बहुत व्यापक असर देखने को मिला और नोटबंदी की मार झेलने के बाद कई छोटे उद्योगों ने दम तोड़ दिया। कई असंगठित क्षेत्रों के श्रमिकों को अपने रोज़गार से हाथ धोना पड़ा। कई तरह के नव-रोज़गार जो सरकार द्वारा चलाए जा रहे कार्यक्रमों के अंतर्गत ही शुरू हुए थे लेकिन नोटबंदी की मार के बाद बंद होने की कगार पर पहुंच गए।

नोटबंदी के एक साल बाद जब प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ किया गया प्रदर्शन। फोटो साभार: Getty Images

सरकार द्वारा निकासी सीमा निर्धारित करने से भी बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ा। बुआई का समय नज़दीक था और किसानों के पास कैश ही नहीं थे जिससे वे फसल बोने के लिए बीज खरीद सकें। सरकार द्वारा नकदी की कमी को पूरा ना कर पाने पर नकद रहित लेन-देन को बढ़ावा देने की पहल की गई। सरकार ने इसके लिए ‘गो कैशलेस’ पंचलाइन का प्रयोग किया।

सरकार द्वारा बैंकों के माध्यम से छोटे व मझोले व्यापारियों को क्रेडिट व डेबिट कार्ड द्वारा लेन-देन करने हेतु पॉज़ मशीनों के आवंटन की भी बात कही गई। आम-जन से भी अधिक से अधिक मात्रा में नकद रहित लेन-देन करने की प्रार्थना की गई। 

लोगों को नकद रहित लेन-देन के प्रति प्रेरित करने हेतु ‘लकी ड्रॉ’ की योजना भी शुरू की गई, जो अपने आप में सरकार की तैयारियों की पोल खोलती है क्योंकि सरकार की तैयारियां अगर पूरी होती तब जनता को कोई लालच देने की आवश्यकता नहीं पड़ती।

भारत जैसे देश, जहां एक-तिहाई आबादी गरीबी रेखा से नीचे अपना जीवन-यापन कर रही है और जहां अशिक्षा अभी भी एक बड़ी समस्या है, यह सम्भव हो पाना मुश्किल था। मोदी सरकार द्वारा बड़े नोटों का विमुद्रीकरण वाकई में एक नई पहल थी लेकिन इस फैसले को लेने से पूर्व उसकी ज़मीनी तैयारी ना करना, मुझे एक बचकानी बात लगती है। वास्तव में नोटबंदी किसी भयावह सपने की तरह थी जिसमें चारों ओर अफरातफरी का माहौल था और हम कुछ भी कर पाने में सक्षम नहीं थे।

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