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अटल जी के गाँव बटेश्वर को सिर्फ घोषणाएं मिली हैं, ज़मीन पर कुछ भी नहीं हुआ

योगी आदित्यनाथ

योगी आदित्यनाथ

आगरा से करीब 70 किलोमीटर दूर यमुना नदी के तट पर भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी का पैतृक गाँव बटेश्वर है। इस गाँव की विशेषताओं पर अगर नज़र डालें तब एक महान नेता का पैतृक गाँव होने के साथ-साथ और भी कई ऐसी बातें हैं जो इसे खास बनाती हैं। उदाहरण के तौर पर यहां यमुना किनारे शिव मंदिरों की श्रंखला है। इसी गाँव के निकट प्रसिद्द जैन तीर्थ स्थल ‘शौरीपुर’ स्थित है और इसके साथ ही इसी गाँव में उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ा पशु मेला आयोजित किया जाता है।

अब आते हैं मुख्य विषय पर, इस वर्ष 16 अगस्त को जब अटल जी ने प्राण त्यागे उसके बाद मानो उनके नाम पर ना जाने क्या-क्या नहीं किया गया। अस्थि विसर्जन का मार्केटिंग प्लान तैयार किया गया, जिस दौरान अनगिनत घोषणाएं भी हुईं। बटेश्वर में भी अस्थि कलश यात्रा और विसर्जन का आयोजन हुआ था। इस कार्यक्रम में सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ स्वयं आए थे और गाँव में अटल जी की स्मृति में कुछ बनाए जाने की घोषणा उन्होंने अपने मुखारबिंदु से ही की थी।

अस्थि विसर्जन कार्यक्रम के दौरान उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ। फोटो साभार: सोशल मीडिया

जब योगी यहां आए तब विकास को लेकर तमाम घोषणाएं सरकार द्वारा की गई थी। 25 दिसंबर को अटल जी की जयंती है ऐसे में यह पता करना ज़रूरी है कि उनके घर जाकर की गई घोषणाओं की आज क्या स्थिति है!

विकास के लिए था 220 करोड़ का प्लान, ज़मीन पर 220 रुपए भी नहीं लगे

अटल जी की मौत की मार्केटिंग के दौरान सरकार ने घोषणा की थी कि वाजपेयी के पैतृक गाँव के विकास के लिए 220 करोड़ रुपए के बजट वाला एक मेगा प्लान तैयार किया गया है। चलिए अब फाइलों से बाहर निकलकर गाँव की गलियों में आते हैं और ढूंढते हैं कि कहीं 220 करोड़ वाला मेगा प्लान मिल जाए।

220 करोड़ का प्लान

बटेश्वर को सिर्फ घोषणाएं मिली हैं। अब तक कोई काम ज़मीन पर शुरू नहीं हुआ है। हालात ऐसे हैं कि जो है वह भी बदहाल है। गाँव में स्थित पशु चिकत्सालय योगी की यात्रा के दौरान रंग दिया गया था लेकिन मेरी 4 दिनों की यात्रा के दौरान वहां कभी कोई डॉक्टर नहीं दिखा और अस्पताल की हालत देखकर लग रहा था कि शायद महीनों से यहां कोई नहीं आया। कुछ ऐसा ही हाल प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र का है

यमुना सौंदर्यीकरण के नाम पर भी सिर्फ गंदगी मिली है, मंदिर श्रंखला भी बर्बाद!

एक वादा यह भी किया गया था कि बटेश्वर स्थित यमुना के घाटों को मनोहर बनाया जाएगा। वोटिंग शुरू की जाएगी और पार्कों का निर्माण होगा जिससे पर्यटकों की संख्या बढ़ेगी। ऐसे तमाम सपने लिए हकीकत में तरस रही गाँव वालों की आँखों में देखो तो गुस्सा साफ नज़र आता है।

गाँव के ही एक युवक ने बताया, “जब बाबा (अटल जी) का स्वर्गवास हुआ तब गाँव में कुछ ऐसा हो रहा था जिससे लग रहा था यहां की तस्वीर बदलने वाली है। देश के साथ उनकी मौत पर हम भी दुखी थे लेकिन उनकी मौत हमारे गाँव को विकास की उम्मीद दे गई थी। आज जब कुछ नहीं हुआ है तो लगता है कोई हमें ठग ले गया है। यह बिल्कुल वैसा ही है जैसे आप किसी की मौत का सौदा करते हैं।”

अटल की याद में बनने वाले म्यूज़ियम की जगह कटीली झाड़ियां हैं

गाँव में जाकर देखिये तब आपको दिखेगा कि सरकारों द्वारा किसी काम का कितना और कब तक क्रेडिट लिया जाता है। बटेश्वर में जहां अटल की स्मृति में म्यूज़ियम बनाने की बात हो रही थी उस स्थान पर आज कीकड़ (जंगली बबूल) के पेड़ खड़े हुए हैं। खंडहर हो चुका उनका पैतृक आवास आज ऐसे पड़ा है जैसे अब यहां कभी कोई नहीं आएगा।

यही वो जगह है जहां हवेली जैसा स्मारक बनाए जाने की घोषणा हुई थी

सीएम योगी जब बटेश्वर गए थे तब इस जगह को चमका दिया गया था। टेंट लगाकर तमाम व्यवस्थाएं की गई थीं लेकिन आज आप देखेंगे तो असली तस्वीर नज़र आएगी जो बहुत भयावह है। इन घोषणाओं की कागज़ों पर आज क्या स्थिति है यह मैं नहीं जानता लेकिन ज़मीन बिलकुल सूनी पड़ी है। आप तस्वीरें देखिये और विचार कीजिए कि राजनीतिक धोखा किसे कहते हैं।

असीमित संभावनाओं का क्षेत्र है बटेश्वर के आसपास का इलाका

इस क्षेत्र की संभावनाओं पर अगर गौर करें तब साधारण तौर पर लगता है कि यहां बहुत कुछ हो सकता है। उद्योग के नाम पर एक बड़ा शून्य दिखता है लेकिन दूसरी तरफ ट्रिपेजियम जोन (टीटीजेड) से बाहर होने के चलते उद्योग स्थापित करने की सुगमता है। पर्यटन के नाम पर बहुत से वादे किए जा चुके हैं लेकिन धरातल पर अगर काम होता तो यहां की स्थिति कुछ और ही होती। इस क्षेत्र में बटेश्वर मंदिर श्रंखला, शौरीपुर जैन मंदिर, चंबल सेंचुरी, बर्ड सेंचुरी, कई किले और अन्य महत्वपूर्ण स्थल हैं लेकिन कागज़ों में महत्वपूर्ण दिखता यह क्षेत्र लंबे समय से सरकारों की बेरुखी का सामना कर रहा है।

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