पिछले कुछ वक्त से राम मंदिर की रट लगाने वाले लोगों के लिए “मंदिर वहीं बनाएंगे” का नारा काफी आम हो गया है। जिन लोगों के लिए आप लड़ रहे हैं उन्हें ना तो राम से मतलब है और ना ही उनके मंदिर से, वे तो बस आपके माध्यम से राजनैतिक रोटियां सेंक रहे हैं। जिस दिन उनकी ज़रूरत आपसे खत्म हो गई, उसी दिन आपके साथ भी वही करेंगे जो अयोध्या में राम मंदिर के पुजारी लालदास के साथ हुआ।
कई सवाल हैं जिनपर आपको विचार करने की ज़रूरत है। क्या राम मंदिर किसी के धार्मिक स्थलों को तोड़कर बनाना चाहिए? क्या श्री राम की इच्छा थी कि किसी दूसरों की भावनाओं को ठेस पहुचाओ और अपने मंदिरों का निर्माण करो?
गौरतलब है जिस धरती ने ‘सर्व धर्म समभाव’ और ‘सर्व जन हिताय-सर्व जन सुखाय’ का नारा दिया और पूरे विश्व को बताया कि अनेकता को एकता में कैसे पिरोया जाता है, कैसे दूसरों के साथ खुश रहा जाता है, आज उसी धरती पर कुछ ऐसे नारे लगते हैं कि दिल दहल जाता है। जिस देश ने पूरे विश्व को कबीर जैसा महान विचारक दिया, आज उन्हीं कबीर के विचारों पर हमला किया जा रहा है।
अब यह समझ नहीं आ रहा है कि हम आगे बढ़ रहे हैं या अभी भी इतिहास में जी रहें हैं। कब तक हमें यह समझ में आएगा कि जो मुद्दे सरकार को उठाने चाहिए, क्या वे उठ रहे हैं या नहीं ?
क्या शहरों के नाम बदले जाने से गरीबी ख़त्म हो जाएगी? क्या किसान जो कि ‘राम राज’ में राज कर रहे थे, वे राज करेंगे? क्या उन्हें उनका पूरा मेहनताना मिल रहा है या नहीं? दिक्कत यह है कि हमें राम मंदिर तो चाहिए लेकिन राम के सिद्धांतो पर चलकर नहीं, हमें राम की मूरत तो देखनी है लेकिन राम के आदर्शों पर अमल नहीं करना। ध्यान रहे, इसे ढोंग कहते हैं, भक्ति नहीं।
अगर ‘राम राज’ लाना ही है तब पहले जाति-प्रथा खत्म करना होगा। जिस राम ने शबरी के झूठे बेर खाए, आज उन्हीं की धरती पर लोगों को जाति और मज़हब के नाम पर बांटा जाता है।
हमें वह राम राज चाहिए जहां हर एक बच्चे को शिक्षा और रोज़गार का पूरा मौका मिले। जहां किसी भी निर्दोष का खून ना बहे और सबके साथ न्याय हो। राम के पुरुषार्थ की बात तो कोई नहीं करने वाला है, बस उन्हें मंदिर चाहिए।
राम मंदिर-बाबरी मस्जिद के मुद्दे को हम आपस में बैठ कर सुलझा सकते हैं। ऐसे में ना तो किसी का दिल दुखेगा और ना ही किसी की जान जाएगी। भारत की वर्तमान स्थिति को देख कर चंद पंक्तियां मैंने लिखी थी जो आज यहां साझा कर रहा हूं।
वो मंदिर-मस्जिद पर भटकाएंगे, तुम शिक्षा पर अड़े रहना
वो हिन्दू-मुस्लिम में लड़वायेंगे, तुम रोज़गार पर अड़े रहना।
वो या अली-राम में बांटेंगे, तुम ‘जय हिन्द’ पर अड़े रहना
वो भगवा राज पर भटकाएंगे, तुम ‘तिरंगे’ पर अड़े रहना
वो गोडसे पर और तुम गाँधी पर अड़े रहना।