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क्या बेरोज़गारों और किसानों से झूठे वादों के कारण हारी बीजेपी?

अमित शाह, नरेन्द्र मोदी और योगी आदित्य नाथ

अमित शाह, नरेन्द्र मोदी और योगी आदित्य नाथ

छत्तीसगढ़ विधानसभा की कुल 90 सीटों में हुए चुनाव का नतीजा कल मंगलवार को आ गया जहां 68 सीटों के साथ काँग्रेस को प्रचंड बहुमत हासिल हुआ। लगातार 15 साल सत्ता में रही रमन सिंह की सरकार को जनता ने नकारते हुए एक बार फिर काँग्रेस को मौका दिया। काँग्रेस की जीत का सीधा श्रेय किसानों, छात्रों, मज़दूरों, दलितों, आदिवासियों एवं आम जनता को जाता है।

भाजपा के शासन से परेशान हर वर्ग के लोगों ने अलग-अलग मसलों पर अपने अधिकारों की मांग है। पूरे प्रादेशिक स्तर पर काँग्रेस सत्ता पर दबाव बनाने में असफल रही लेकिन फिर भी जनता ने पार्टी को शानदार जीत दिलाई।

आज काँग्रेस की सफलता का एक महत्वपूर्ण कारण है उनका घोषणा पत्र जिसके ज़रिए किसानों की समस्याओं पर ज़्यादातर फोकस किया गया था। किसानों के मुद्दों पर बात करने या प्राथमिकता देने में भाजपा पीछे रह गई। हालांकि काँग्रेस पार्टी द्वारा किए गए घोषणाओं के शर्तों और नियमों को स्पष्ट नहीं किया गया है।

अगर किसानों की माने तो भाजपा सरकार ने उनके साथ धोखा किया है। साल 2013 से लेकर अब तक भाजपा ने किसानों के मुद्दे को कभी गंभीरता से लिया ही नहीं। किसानों का यह भी कहना है कि जब अजीत जोगी, दिग्विजय सिंह की सरकार थी तब उन्हें बिजली बिल्कुल मुफ्त मिलती थी।

इन सबके मद्देनज़र काँग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में किसानों को 50% बिजली मुफ्त देने का वादा किया है। यदि समर्थन मुल्य केंद्र सरकार ना दे तब राज्य सरकार उन्हें देगी। इसके अलावा कर्ज़ माफी भी बड़े वादों में से एक है। यूं तो केंद्र और राज्य सरकारें किसानों के लिए काफी योजनाएं बनाती हैं लेकिन देखा जाए तो उनका फायदा किसी को नहीं मिलता है।

छत्तीसगढ़ में भाजपा ने शिक्षित बेरोज़गारों से भी बड़े-बड़े वादे किए थे मगर सरकार इसमें भी फेल हो गई। वही काँग्रेस ने शिक्षित बेरोज़गारों को 2500 रुपये प्रतिमाह देने का वादा किया है। इनमें वरिष्टों को 1000 रुपये और 75 साल से अधिक उम्र वालों को 1500 रुपये देने की बात कही गई है।

छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह। फोटो साभार: Getty Images

छत्तीसगढ़ में किसानों की ज़मीनें छीन ली गई और रोज़गार के नाम पर उन्हें निराश किया गया। एनटीपीसी लारा रायगढ़ ज़िले की बात करें तो  200 से अधिक किसान बेरोज़गार हैं। कुछ आंदोलनकारियों ने आंदोलन किया जिसके बदले वे डंडे खाए और उन्हें जेल भी जाना पड़ा। 3600 करोड़ के चावल घोटाले की ही बात कर लीजिए जिसने पूरे राज्य को प्रभावित कर दिया। नसबंदी कांड जिस पर लोगों को अब तक न्याय नहीं मिली।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि काँग्रेस पार्टी ने अच्छी रणनीति के तहत चुनावी मैदान में अपनी छाप छोड़ी। काँग्रेस ने अंतिम समय में अपने प्रत्याशियों के नामों की घोषणा की जिससे किसी को नाराज़ होने का मौका नहीं मिला। वही बीजेपी ने इसके विपरीत काम किया जिसका फायदा कुछ निर्दलिय प्रत्याशियों को मिला।

वही एक और काँग्रेस पार्टी के कद्दावर नेता रहे अजित जोगी ने अपनी एक पार्टी बनाकर बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन किया लेकिन वो भी मुद्दों को भूना पाने में नाकाम रहे।

दलित आदिवासियों ने भी कई पार्टियां बनाकर चुनाव लड़े लेकिन वे भी अपने स्वार्थ साधते नज़र आए। मूलतः यहां रोज़गार, शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, पानी, बिजली, किसान, मज़दूर ,बेराजगारी और दलित आदिवासी से जुड़े तमाम मुद्दों पर केन्द्रीत रहे। ऐसे में विकल्प के तौर जनादेश का साथ काँग्रेस को मिला।

राहुल गाँधी। फोटो साभार: Getty Images

लोग भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व से काफी नराज़ थे जिसका परिणाम इस चुनाव में दिखाई पड़ा। भाजपा में जिस तरीके से बयानबाज़ी होती है उस पर खेद भी प्रकट नहीं किया जाता है। भाजपा ने पिछले कुछ दिनों से पिछली सरकार को कुछ ज़्यादा ही नीचा दिखाया जबकि 4 सालों से वह अपने कामों से भागती नज़र आती है। भाजपा की इस रणनीति को शिक्षित वर्ग अच्छी तरह समझता है।

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