Site icon Youth Ki Awaaz

“इंटरनेट की दुनिया क्यों छीन रही है बच्चों के चेहरों से मुस्कान?”

ऑनलाइन गेम खेलते बच्चों की प्रतीकात्मक तस्वीर

ऑनलाइन गेम खेलते बच्चों की प्रतीकात्मक तस्वीर

बचपन में मिट्टी में लोटते हुए खेलना और खेलते हुए बड़ा होना आज से दो दशक पहले जन्में बच्चों का प्रिय खेल हुआ करता था। छोटे-छोटे बच्चों को उसी में आनन्द आता था और उन्हें ऐसा करते देख बड़ों के चेहरों पर भी मुस्कान ठहर जाती थी। मिट्टी से सने कपड़ों में जब बच्चे घर लौटते थे तब उन्हें डांट भी पड़ती थी। ये बातें और वो यादें हममें से लगभग सभी के साथ जुड़ी हुई हैं लेकिन अब वक्त बदल चुका है।

21वीं सदी के आरम्भ से ही दुनिया भर के घरों में इंटरनेट ने अपनी पैठ बनानी प्रारम्भ कर दी थी। पहले यह घरों तक पहुंचा, फिर इंसान की जिंदगी में घुसा और अब उनके दिलों-दिमाग पर हावी है। इस इंटरनेट की आभासी दुनिया का सबसे ज़्यादा दुष्प्रभाव बच्चों के कोमल मन पर पड़ रहा है और इसके कुचक्र से वे बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। इसके लिए स्वयं बच्चों से ज़्यादा उनके माता-पिता उत्तरदायी हैं जिनके पास अपने बच्चों के लिए समय ना होने के कारण उन्हें मोबाइल और इंटरनेट का झुनझुना दे दिया जाता है।

साइबर बुलिंग या साइबर स्टॉकिंग जैसे इंटरनेट के बुरे प्रभाव किसी से छुपे हुए नहीं है। इंटरनेट के ज़रिए खेले जाने वाले हिंसक गेम और इस आभासी संसार में फैली झूठी खबरें व अफवाहें बच्चों को तुरंत उत्तेजित कर किसी भी बात पर त्वरित प्रतिक्रिया देने को मजबूर कर देती हैं।

साइबर बुलिंग, स्टॉकिंग या हैकिंग भले ही अलग-अलग नाम हैं लेकिन इनके अर्थ लगभग एक ही हैं। सरल शब्दों में कहें तब इन शब्दों का मतलब है ऑनलाइन किसी का पीछा करना, उसे परेशान करना, उसका डाटा या जानकारियां चुराकर ब्लैकमेल करना। साइबर बुलिंग की चपेट में बच्चे काफी जल्दी आ जाते हैं। इंटरनेट के बढ़ते प्रयोग की वजह से साइबर अपराधों की संख्या भी बढ़ रही है। हमारी सुरक्षा एजेंसियां इन अपराधों से निपटने में विफल साबित हो रही हैं।

पिछले कुछ समय से हेलिकॉप्टर पैरेंटिंग शब्द काफी चर्चा में रहा है। यह शब्द उन माता-पिता के लिए होता है जो अपने बच्चों की गतिविधियों पर निरन्तर एक हेलिकॉप्टर की तरह नज़र रखते हैं। बच्चों के इंटरनेट उपयोग के मामलों में कुछ लोग हेलिकॉप्टर पैरेंटिंग को उचित मानते हैं। लोगों के मुताबिक इससे साइबर बुलिंग का खतरा कम हो सकता है।

ज़्यादा वक्त नहीं बीता है जब ‘ब्लू व्हेल‘ नामक गेम की वजह से कई बच्चों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था। इस गेम में कुछ टास्क पूरे करने होते थे और बच्चे उसमें उलझते चले जाते थे। इस गेम का अंतिम टास्क ‘आत्महत्या’ होता था। बच्चों की लगातार हो रही आत्महत्या की घटनाओं को देखते हुए सरकार को इसमें हस्तक्षेप करते हुए गेम पर बैन लगाना पड़ा।

ऑनलाइन गेम की एक दूसरी घटना कुछ दिनों पूर्व दिल्ली के वसंत कुंज की है जहां के किशनगढ़ इलाके में एक 19 वर्षीय सूरज ने ऑनलाइन गेम के चक्कर में माँ, पिता और बहन की हत्या कर दी।

बच्चे आज के समय में अपने आप को बहुत जल्दी ही अपनी उम्र से ज़्यादा बड़ा महसूस करने लगे हैं। अपने ऊपर किसी भी पाबंदी को बुरा समझते हैं, चाहे वह उनके हित में ही क्यों ना हो। इंटरनेट की यह आभासी दुनिया ना जाने और कितने सूरज व छोटे बच्चों को अपनी जाल में फंसाएगी और उनका जीवन तबाह करेगी। बच्चों के इंटरनेट उपयोग पर निगरानी व उन्हें उसके उपयोग की सही दिशा दिखाना बेहद ज़रूरी है।

यदि 5 इंच की स्क्रिन और अंगुलियों के बीच सिमटते बच्चों के बचपन को बचाना है, तब एक बार फिर से उन्हें मिट्टी से जुड़े खेल, दिन भर धमा-चौकड़ी मचाने वाले और शरारतों वाली बचपन की ओर ले जाना होगा। ऐसा करने से उन्हें भी खुशी मिलेगी और वे खतरों से दूर होते चले जाएंगे।

Exit mobile version