चीन की ‘साउथर्न यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी’ के ‘हि जीआनाकुई’ द्वारा Crispr-Cas9 तकनीक का उपयोग कर एक जुड़वा बच्ची के CCR5 जीन में बदलाव कर उन्हें HIV के खतरे से निज़ात दिलाने की घोषणा ने पूरे विश्व में मानो तहलका ही मचा दिया। ‘हि’ के इस बयान पर कई लोगों ने खुशी जताई तो कई लोगों ने अपनी आपत्ति दिखाई।
वर्ष 2016 में आई पुस्तक ‘द जीन-एन इण्टीमेट हिस्ट्री’ में लेखक सिद्धार्थ मुखर्जी मानव जीन व उसके मानव जीवन पर प्रभाव के विषय में विस्तार से लिखते हैं। वे कहते हैं कि मानव जीन में होने वाली एक छोटी सी गड़बड़ी हमें सदा के लिये अक्षम बना सकती है या हमें किसी ऐसी जेनेटिक बीमारी या डिसऑर्डर से ग्रसित कर सकती है, जिससे हमारा जीवन जीना दुभर हो जाए।
मानव जीनोम और मानव जीन के समूह को पढ़ना अभी तक हमारे लिये सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक था क्योंकि इससे हम किसी भी प्रकार के जेनेटिक डिसऑर्डर के कारण का पता लगाकर, उस बीमारी से लड़ सकते थे। अब Crispr-Cas9 के बाद हम ना केवल किसी बिमारी को जड़ से खत्म कर सकते हैं, अपितु भविष्य में होने वाली किसी भी प्रकार की सम्भावित बीमारी के कारण को ढूंढकर और उसे खत्मकर, अपने भविष्य को बेहतर बना सकते हैं।
अति सूक्ष्म स्तर पर जेनेटिक कोड में कांट-छांट करने की विधि द्वारा ना केवल हम मनुष्य के बल्कि अन्य जीवों के जेनेटिक कोड को भी बदल सकते हैं। इस प्रकार रोग फैलाने वाले कई जीवों, जीवाणुओं व वायरसों या उनके वाहकों को ना केवल रोक सकते हैं बल्कि उन्हें सदा के लिए इस धरती से मिटा सकते हैं।
इस तकनीक के प्रचारित होते ही एक बात यह कही जाने लगी है कि क्यों ना मलेरिया के वाहक मच्छर के जीन में संशोधन कर इस बीमारी को सदा के लिये इस धरती से मिटा दिया जाए। इस विधि द्वारा हम ना केवल किसी बीमारी को मिटा सकते हैं बल्कि मानव शरीर की योग्यताएं भी बढ़ा सकते हैं।
आने वाले भविष्य में विज्ञान गल्प का हिस्सा रही बातें सच साबित होने वाली हैं, जब हम अपने आस-पास जेनेटिक मॉडीफाइड मानवों से घिरे होंगे। हम अपने अनुरूप सुन्दरता, बल, बुद्धि व आयु हासिल कर सकते हैं। इस प्रकार जीन सम्पादन द्वारा मानव अपनी बढ़ती आयु को रोक चिरायु हो सकता है।
यदि ‘हि’ की बातों पर विश्वास करें, तो मानव ने यह पहला कदम महामानव बनने की ओर उठा लिया है लेकिन अब देखना यह है कि यह कदम हमें लेकर कहां जाता है। हम प्राकृतिक नियमों से छेड़खानी कर रहे हैं व यह बहुत मुमकिन है कि प्रकृति हमसे इसका बदला ले। क्या हमें स्वयं को और परिष्कृत कर महामानव बनने से पीछे हटना चाहिये?