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नसीरुद्दीन शाह के सवालों पर गुस्सा होने की जगह उसके जवाब तलाशिए

controverst on Nasuruddin shah statment

बीते 4 बरस से मोदी सरकार के आने के बाद सहिष्णुता-असहिष्णुता की बहस काफी बढ़ गयी है। अवॉर्ड वापसी मसले के जैसे-तैसे शांत होने के बाद अब ताज़ा मामला है नसीरुद्दीन शाह का, जिसमें उन्होंने एक चैनल को इंटरव्यू देते हुए कहा,

यह जिन्न अब बोतल से बाहर आ चुका है, जिसे वापस बोतल में पहुंचाना बहुत मुश्किल है। मुझे इस देश में अपने बच्चों के लिए डर लगता है।

इतना कहना भर था कि मीडिया और सोशल मीडिया पर नसीरुद्दीन साहब के बयान सुर्खियों में आ गएं। इस बात पर सोशल मीडिया पर लोग दो धड़ों में बंटे नज़र आ रहे हैं। एक जो उनका समर्थन कर रहे हैं, उनके बचाव में हैं और दूसरे जो उन्हें भारत को बदनाम करने की साज़िश का हिस्सा बता रहे हैं।

कौन हैं नसीरुद्दीन शाह-

नसीरुद्दीन शाह भारतीय फिल्म इंडस्ट्री का एक जाना-पहचाना नाम है, उनके अभिनय को भारतीय जनमानस द्वारा काफी सराहा जाता रहा है। स्पर्श, त्रिकाल, अ वेडनसडे, अर्धसत्य जैसी फिल्मों में काम कर चुके शाह भारत सरकार द्वारा पद्म श्री एवं पद्म भूषण से सम्मानित हो चुके हैं। उनका विवाह रत्ना पाठक से हुआ है। बहरहाल उनकी नई एवं क्षणिक पहचान यह है कि उनके मुताबिक उन्हें इस देश में अपने बच्चों के लिए डर लगता है।

नसीरुद्दीन शाह। फोटो सोर्स- Brut India Video

क्या कहा था नसीरुद्दीन शाह ने-

नसीरुद्दीन शाह ने एक चैनल को दिये इंटरव्यू में जो कुछ कहा वो इस प्रकार है,

“मुझे मज़हबी तालीम दी गई थी जबकि मेरी पत्नी रत्ना पाठक का परिवार लिबरल था, इसलिए उनको मज़हबी तालीम बहुत कम मिली। मैंने और रत्ना ने हमारे बच्चों को मज़हबी तालीम नहीं दी है। अच्छा या बुरा होना मज़हब पर निर्भर नहीं करता है। आज मैं डरता नहीं हूं बल्कि मुझे गुस्सा आता है, ये सब देखकर जो देश में हो रहा है।

मज़हब के नाम पर जो नफरत फैलाई जा रही है, जो ज़हर घोला जा रहा है, उसे अब काबू करना बहुत मुश्किल है। यहां एक गाय की मौत बड़ा मुद्दा है बजाय एक पुलिसवाले की मौत के। मुझे अपने बच्चों के लिए डर लगता है कि किसी रोज़ अगर उन्हें भी किसी भीड़ ने घेर लिया तो वह अपना क्या धर्म बताएंगे, हिन्दू या मुस्लिम।”

नसीरुद्दीन शाह ने क्या गलत कहा है?

मुझे समझ नहीं आता नसीरुद्दीन साहब की बात का विरोध करने वाले कौन से लोग हैं? क्या जब आपको भूख लगती तो यह कहना चाहिए कि भूख नहीं लगी, क्या जब प्यास लगी हो तो क्या पानी से प्यास बुझाने के बजाय पाकिस्तान चले जाए? आप खुद देखिए कि किस तरह देश में पिछले चार सालों में फासीवादी संगठनों के हौसले बढ़े हैं, जिसका परिणाम ही है कि हिन्दू मुस्लिम, लव जिहाद, ताजमहल-तेजोमहालय, राम मन्दिर बाबरी, गौ हत्या, मॉब लिंचिंग जैसी चीज़ें सुर्खियों में रहीं।

हत्या को, किसी व्यक्ति की मौत को जेनरलाइज़ (सामान्य) करने की कैसी कोशिश की गयी। इन सब खराब हालातों के मद्देनजर यदि किसी को इस देश में अपने बच्चों के लिए डर लगता है तो उसे यह सब खुलकर कहने का हक क्यों नहीं दिया जा रहा है? अब नसीरुद्दीन साहब जैसे बड़े अभिनेता हो या देश के किसी भी कोने के साधारण से अन्य माँ-बाप, सभी को कहीं ना कहीं यह चिंता रहेगी कि इस तरह की घटना जो अभी बुलन्दशहर में हुई, वो कभी भी हमारे साथ भी हो सकती है, हमारे किसी अपने के साथ भी हो सकती है।

निष्कर्ष-

यह इस देश का मौजूदा दुर्भाग्य ही है कि हम डराने वालों की बजाय, डरने वालों से सवाल पूछ रहे हैं। कठघरे में जिन्हें खड़ा करना चाहिए था, वो न्यायाधीश बन बैठे हैं। यह ठीक वैसा ही है कि यदि किसी व्यक्ति का उसके गृहनगर में कत्ल कर दिया जाए तो हत्यारों की बजाय हम उस व्यक्ति से पूछे कि बताओ जब तुम्हें इतने लोग जानते थे, चाहते थे, तो फिर बताओ क्यों हुआ तुम्हारा कत्ल?

इन सब कुतर्कों से बाहर निकलिए जो सवाल नसीरुद्दीन शाह ने उठाए हैं, उनके जवाब तलाशिए। ज़रूरी है यह सब, क्योंकि आज अगर सवाल नहीं पूछे तो कल जवाब नहीं दे पाएंगें। नसीरुद्दीन शाह के सवालों से उस परिस्थिति के जवाब और समाधान खोजने की कोशिश कीजिए जिनसे यह सवाल उपजा कि उन्हें इस देश में अपने बच्चों के लिए डर लगता है, शायद यही एक बेहतर समाज बनाने की दिशा में हमारा एक नागरिक के तौर पर कर्तव्य है।

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