Site icon Youth Ki Awaaz

“खाद्य आपूर्ती विभाग पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाने पर मानहानि केस की धमकी”

सरयू राय

सरयू राय

जब आप यह आर्टिकल पढ़ रहे होंगे तब तक मेरे और मेरे कुछ साथियों के ऊपर झारखंड के खाद्य आपूर्ति मंत्री सरयू राय शायद मानहानि का केस कर चुके होंगे। इसकी वजह यह है कि हमने कुछ दिन पहले उनके चार सालों के कार्यकाल में उनके विभाग द्वारा 2 हज़ार करोड़ रुपये के गरीबों के राशन की चोरी एवं उससे संबंधित गड़बड़ियों का मामला उठाया। पूरे झारखंड में यह सर्वविदित है कि सरकारी राशन डीलर गरीबों के राशन में कटौती करते हैं। शायद ही कोई कार्डधारक होगा जिसे पूरा राशन मिलता हो।

हमें भी पूरे राज्य से यह शिकायत मिल रही थी। हमने राज्य के 24 में 22 ज़िलों में पता लगवाया और जो तथ्य सामने आएं वो भयावह थे। राज्य के हर कार्डधारी को डीलर द्वारा प्रति माह अनाज काट कर दिया जा रहा है। कटौती प्रति व्यक्ति 300 ग्राम से लेकर 1 किलो तक है। 5 व्यक्तियों के एक परिवार को 25 किलो राशन के जगह 20-23 किलो तक का अनाज ही मिल रहा है।

अगर राज्य के करीब 57 लाख कार्ड धारकों से औसतन 2 किलो अनाज ही प्रति माह गबन हो रहा है तब इसका मतलब हर महीने 11, 402 टन अनाजों की चोरी हो रही है। यानि कि प्रति वर्ष 1 लाख 37 हज़ार टन अनाजों का घपला हो रहा है। ज्ञात हो कि सरकार FCI से 32 रुपये प्रति किलो के दर से अनाज खरीदती है, इसका मतलब कम-से-कम 437 करोड़ रुपये के अनाजों की प्रतिवर्ष खुलेआम चोरी हो रही है।

इस हिसाब से पिछले 4 वर्षों में 2 हज़ार करोड़ रुपये से ज़्यादा का अनाज सरयू राय जी के नाक के नीचे अधिकारियों और राशन डीलरों ने चोरी कर लिया।

कई डीलरों का कहना है कि उन्हें गोडाउन से जो अनाज के बोरे मिलते हैं, उनमें ही कम अनाज रहता है। कुछ कहते हैं कि उनका मुनाफा कम है और उनको प्रतिमाह अधिकारियों को तय घूस देना पड़ता है, जिसका निर्धारित हिस्सा मंत्रालय तक भी जाता है। राशन डीलर भी दूध के धुले नहीं हैं लेकिन उनकी चोरी को अगर विभाग के अधिकारियों से संरक्षण नहीं मिल रहा है तो पूरे राज्य में इतने बड़े पैमाने पर यह चोरी कैसे संभव है।

सच्चाई यह है कि मंत्री के जानकारी में अधिकारियों के मिलीभगत से चोरी होती है। यह बिल्कुल ओपन सीक्रेट की तरह है। हमने हो रहे चोरी का हिसाब और रुपये में चोरी हुई राशन की कीमत का हिसाब लगाकर 2 हज़ार करोड़ सबके सामने रखा तो मंत्री जी भी बौखला गए। उन्होंने कहा कि 7 दिनों के अंदर हम यह साबित करें या उनसे माफी मांगें या मानहानि का केस झेलने के लिए तैयार हो जाएं।

मानहानि केस मामले की खबर टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित।

इस सच्ची घटना को मैंने इसलिए साझा किया क्योंकि इस चोरी के सवाल पर मीडिया से लेकर प्रशासन और जनता सब चुप हैं। हर कार्डधारक को वर्षों से कम राशन मिल रहा है लेकिन कहीं कोई खास हलचल नहीं। क्यों? एक मंत्री जिसके नाक के नीचे यह सब हो रहा है, वो जांच कराने और अपने गिरेबान में झांकने के बजाए आवाज़ उठाने वाले पर मानहानि का केस करने की धमकी दे रहे हैं।

मुझे हैरानी हो रही है कि 2000 करोड़ की राशन चोरी होने के बाद भी मंत्री जी को इतनी हिम्मत कहां से आ रही है कि वो शर्म के मारे मुंह छुपाने के बजाए सीनाजोरी कर रहे हैं?

इस तरह के भ्रष्टाचार के कई आर्थिक और प्रशाशनिक कारण हो सकते हैं। परंतु जो थोड़ी बहुत मेरी समझ बनी है, उस हिसाब से भ्रष्टाचार के पीछे कुछ और ही सामाजिक और राजनीतिक कारण हैं। निम्नलिखित कुछ सामाजिक और राजनीतिक पहलुओं पर यदि हम थोड़ा सतही चिंतन भी करें तब उन पहलुओं के भ्रष्टाचार से गहरे संबंध नज़र आते हैं।

हमें बचपन से यह पढ़ाया गया कि विधायक और सांसद के रूप में राजनीतिक प्रतिनिधि को चुनते हैं। यह बात हमें अच्छे से नहीं समझाई जाती है कि इन्हीं सांसदों के बीच से देश की सरकार में बने मंत्री और प्रधानमंत्री को देश के सालाना करीब 20 से 30 लाख करोड़ की तिजोरी का मालिक भी बनाया जाता है। जो 5 साल के लिए करीब 100 लाख करोड़ रुपये के मालिक बन जाते हैं।

हम जिस विधायक को चुनते हैं उसी के बीच से बने मंत्री और मुख्यमंत्री को झारखंड जैसे राज्य में यहां की जनता सालाना करीब 70-80 हज़ार करोड़ की तिजोरी का चाभी सौंपती है। जो पांच साल में करीब 4 लाख करोड़ की तिजोरी होती है। यदि वोट देते वक्त वोटर को पता हो कि वो सिर्फ अपना प्रतिनिधि नहीं बल्कि सरकारी तिजोरी का मालिक चुन रहे हैं, तब शायद वो ज़्यादा सतर्क होकर, जांच-पड़ताल करके भ्रष्ट लोगों के बजाए ईमानदार सांसद और विधायक चुनने की सोचते।

यदि लोग यह सोच कर वोट देते कि हम जिसे विधायक चुनने जा रहे हैं, उसे राज्य के खजाने की चाभी भी देने वाले हैं तब शायद जिस मंत्री के विभाग से 2000 करोड़ की राशन चोरी हो रही है, इस तरह का विधायक कभी चुना नहीं जाता।

दूसरी बात जो हमें नहीं समझाई गई कि सरकारी खजाने का पैसा आम जनता के टैक्स का पैसा है। पूरा देश लोगों के टैक्स से चलता है। उसमें एक भिखारी और कचड़ा चुनने वाले बाल मज़दूर से भी सरकार टैक्स लेती है। दुर्भाग्यवश हमारे किताबों से इस तथ्य का विस्तृत विवरण गायब है। इनकम टैक्स को प्रत्यक्ष टैक्स और सामान एवं सेवा पर लग रहे टैक्स को अप्रत्यक्ष टैक्स के रूप में परिभाषित करते हुए झूठ फैलाया गया कि इस देश में सिर्फ अमीर ही टैक्स देते हैं।

जबकि सच्चाई यह है कि एक भिखारी अगर 5 रुपये की बिस्कुट खरीदता है तब उसपर भी टैक्स देता है। इसी टैक्स से सरकारी खजाना भरता है और उसी सरकारी खजाने से देश और राज्य के सरकारी सेवाओं के काम होते हैं। लोगों को यह ठीक से नहीं समझाया गया कि सरकारी पैसा जिससे काम हो रहा है और जिसकी चोरी भ्रष्ट नेता अधिकारी कर रहे हैं, यह हमारा पैसा है, जिसकी चोरी हो रही है।

आम आदमी पार्टी, झारखंड द्वारा लगाए गए आरोपों के बाद खाद्य आपूर्ति मंत्री सरयू राय का बयान

राशन चोरी के मामले में भी लोगों को लग ही नहीं रहा है कि यह उनके पैसे का अनाज है। जिससे हर माह राशन डीलर विभाग के अधिकारियों की सांठ-गांठ से 2-3 किलो चुरा लेता है। यदि जनता इसे अपने पैसे की चोरी मानती तब इतनी उदासीनता उनमें नहीं होती। कोई सब्ज़ी या फल वाला 100 ग्राम वजन में चोरी कर ले तब हम हल्ला करते हैं लेकिन यहां हर माह राशन चोरी हो रही और हम चुप हैं, क्योंकि लोगों को लगता है सरकारी राशन है, 25 के जगह 20 किलो भी मिला तब हमें फायदा ही है। चोरी तो सरकारी पैसे की हुई, इसमें उनका क्या जाता है!

तीसरी सबसे अहम बात है कि आज राजनीति और सत्ता से ईमानदार लोग बाहर हैं। यही कारण है कि पूरी सरकारी व्यवस्था चोरी और लूट का अखाड़ा बन गया है। शिक्षा हो या स्वास्थ्य विभाग, बिजली हो या कृषि, थाना हो या कचहरी हर विभाग में चोरी और भ्रष्टाचार चरम पर है। अगर इसे रोकना है तब ईमानदार लोगों को राजनीति और सत्ता में आना ही होगा।

ईमानदार लोग जब राजनीति और सत्ता में आते हैं तो क्या बदलाव आता है इसका स्पष्ट उदाहरण दिल्ली में केजरीवाल की सरकार है। जहां पहले से जिस फ्लाईओवर का बजट 243 करोड़ था उसे 143 करोड़ में पूरा किया गया। आम आदमी पार्टी की ईमानदार राजनीति ने दिल्ली का कई मामलों में कायापलट ही कर दिया। ईमानदार राजनीति ही देश को अब बचा सकती है। दिल्ली में राशन चोरी को रोकने के लिए अब राशन की घर-घर डोरस्टेप डिलीवरी की योजना बन रही है।

आपलोगों के बीच मैं चौथी बात को सवाल के ज़रिए पेश करना चाहूंगा। ईमानदार लोग राजनीति में आते क्यों नहीं? कुछ लोग आने की कोशिश करते रहे हैं, कुछ कामयाब भी हुए लेकिन एक बड़ी संख्या में जितना रुझान ईमानदार लोगों का राजनीति के प्रति होना चाहिए, वो नहीं है, क्योंकि इसे काफी बदनाम और गैरज़रूरी करार दे दिया गया।

मुझे लगता है यह खास शाषक वर्ग द्वारा जानकर फैलाया गया दुष्प्रचार है। हमारे घर में पानी आएगा या नहीं? आएगा तो दर क्या होगा? सड़कें बनेंगी या नहीं? बिजली आएगी या नहीं? उसका दर क्या होगा? स्कूल-कॉलेज खुलेंगे या नहीं? खुलेंगे तो कितने ? कौन खोलेगा? क्या पढ़ाया जाएगा? कितनी फीस लगेगी? अस्पताल खुलेंगे या नहीं? यह सब कौन तय करता है? हमारे सांसद और विधायक।

हमारे जीवन का 99% पहलू राजनीति और राजनीतिज्ञों के निर्णय पर निर्भर करता है लेकन जान बूझ कर इसके प्रति समाज में घृणा पैदा कर दी गई है। जिस राजनीति से हर कुछ प्रभावित होना है उसके प्रति इतनी खराब नज़रिया पैदा कर दी गई कि राजनीति और नेता शब्द गाली लगने लगा।

मुझे यह गहरी साज़िश लगती है जिसके तहत समाज, राज्य और देश के सबसे उच्च निर्णायक और क्रियानवयक संस्थानों में जहां समाज का सबसे तेज और सबसे ईमानदार लोगों को पहुंचना था, वहां भ्रष्ट ठेकेदार, माफिया और दलाल पहुंचने लगे हैं। नई पीढ़ी को तो उसके नाम से घृणा करवाया गया। राजनीति से दूर रहो! घर, स्कूल, कॉलेज, ऑफिस, मैदान हर जगह यही सिखाया गया।

प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता।

इसे जान बूझ कर इतना बदनाम कर दिया गया कि शरीफ और ईमानदार आदमी इससे दूर रहे। बच्चे डॉक्टर बनें, इंजीनयर बनें , साइंटिस्ट बने, शिक्षक बने, व्यवसायी बने लेकिन नेता बनने की सोच भी ना आए यह सुनिश्चित करने का भरसक प्रयास किया गया। मुझे राजनीति में दिलचस्पी नहीं या मैं राजनीति से दूर हूं बोलने वाले लोग फक्र महसूस करने लगे। ‘नेता’ उपहास का शब्द बना दिया गया।

इसे एक उदाहरण के ज़रिए और बेहतर तरीके  से समझा जा सकता है। देश में रणजी, आईपीएल और अंतराष्ट्रीय क्रिकेट को मिला दें तब ज़्यादा से ज़्यादा 500 से 700 खिलाड़ी सम्मानपूर्वक स्थान प्राप्त कर पाते हैं। 125 करोड़ की आबादी वाले देश में 500 से 700 क्रिकेटरों के बीच अपनी जगह बनाने के लिए करोड़ों बच्चे सपना देखते हैं और वे गर्व से कहते हैं, “हम क्रिकेटर बनना चाहते हैं।”

लाखों माँ बाप आज उन बच्चों के सपने को पूरा करने की कोशिश में क्रिकेट अकादमी में उनकी ट्रेनिंग करवाते मिल जाएंगे। अगर देश में अच्छे क्रिकेटर ना निकले तो क्या हो जाएगा? क्रिकेट देश में ना ही खेला जाए तो क्या हो जेएगा? दुनिया के 200 देश में महज़ 20 देशों में भी ढंग से क्रिकेट नहीं खेला जाता। सच पूछिए तो कुछ फर्क नहीं पड़ेगा। मैं किसी खेल के विरोध में नहीं हूं लेकिन देश और समाज के प्रायोरिटी से चिंतित हूं।

वही इस देश में एमपी, एमएलए, ज़िला पार्षद, नगर निकाय और विभिन्न सरकारी बोर्ड निगम के चैयरमैन एवं सदस्य को मिला दें तो कम से इस देश में 10 हज़ार से ज़्यादा सम्मानपूर्वक पद होंगे जहां राजनीति करने वाले लोग पहुंच कर समाज, राज्य और देश का भाग्य बनाते या बिगाड़ते हैं। समाज और देश के इन सबसे महत्वपूर्ण जगहों पर पहुंचने का सपना भी हम अपनी बाल पीढ़ी और युवा पीढ़ी को नहीं दिखाते।

शायद ही कोई बच्चा राजनीतिज्ञ बनना चाहता है। शिक्षा मंत्री- स्वास्थ्य मंत्री-मुख्यमंत्री-प्रधानमंत्री किसी बच्चे को नहीं बनना। हमने उन्हें बताया ही नहीं कि अन्य कामों की तरह राजनीति भी करने की चीज़ और राजनेता भी बनने की इस समाज में जरूरत है। यह स्थिति जानबूझ कर लाया गया ताकि गुंडे, ठेकेदार और माफिया के हाथ में सरकारी खजाने की चाभी रहे और ईमानदार लोग वहां ना पहुंच पाएं। ताकि उनकी लूट और चोरी का सिलसिला जारी रहे।

यदि समाज ने अच्छा नेता पैदा किया होता तब आज झारखण्ड में गरीबों के 2000 हज़ार करोड़ का राशन चोरी पर सीनाजोरी करने वाला मंत्री और विधायक नहीं होता।

यहां भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने के लिए कुछ और सामाजिक पहलू ज़िम्मेदार हैं। भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों के प्रति भारतीय समाज में घृणा और नफरत के बजाए उनके प्रति लोगों का सम्मान बरकरार है। इस सामाजिक स्वीकार्यता का कारण है सरकारी पैसे की चोरी और लूट को गलत बात ना समझना। तभी तो खासकर उत्तर भारत में ऊपरी कमाई (भ्रष्टाचार) वाले लड़के के लिए ज़्यादा दहेज की मांग होती रही है।

कड़े कानून और सामाजिक चेतना से जिस तरह देहज एक हद तक समाज में बुरी चीज़ के रूप में स्थापित की गई, उसका परिणाम यह हुआ कि दहेज की ज़्यादा मांग करने वाले को लोगों को आज कम-से-कम बुरी नज़र से देखेने की शुरुआत हो गई है। ठीक इसी प्रकार कड़े कानून और सामाजिक अपमान से इस भ्रष्टाचार की सामाजिक स्वीकार्यता को खत्म करना होगा।

झारखण्ड के खाद्य आपूर्ति मंत्री सरयू राय द्वारा आप पार्टी को सात दिनों में माफी मांगने वाली बात पर प्रकाशित खबर।

यदि भ्रष्टाचार की सामाजिक स्वीकार्यता ना होती तब राशन चोरी के खबर के बाद मंत्री जी इस्तीफा देते, ना कि सीनाजोरी करते। आज उनके समर्थक गाली गलौज करने के बजाए शर्म करते। इस सामाजिक स्वीकार्यता को एक और पहलू बल देता है। हमारा भारतीय समाज सवाल पूछने की आदत को ना तो बढ़ावा देता है और ना ही हिम्मत।

घर की सबसे अच्छी बेटी कौन? जो सबसी कम बोले! घर का वो बेटा अच्छा जो पिता से नज़रें ना मिलाए। समाज और परिवार की आलोकतांत्रिक बनावट सवाल करने वालों को बहुत बर्दाश्त नहीं करता। सामंतवादी सामाजिक ढांचे में अगड़ी जाति के पुराने दबंग जमींदार और आज के सरपंच साहब से कौन सवाल करने की इजाज़त देता है।

यही कारण है कि जब घर के अंदर और घर के बाहर सवाल बर्दाश्त ना किये जायएं तब इतने बड़े मंत्री और विधायक से कौन सवाल करे? किसी ने सवाल करने की हिम्मत कर दी तब उनके साथ मार पीट किया जाएगा, धमकाया जाएगा और झूठे केस लाद दिए जाएंगे।
झारखण्ड में 2000 करोड़ के राशन चोरी के मामले में भी यही हो रहा है।

इसलिए सवाल पूछने की प्रवृति को बढ़ावा देना होगा, नहीं तो मुल्क में लोकतंत्र के बजाए तानाशाही व्यवस्था कायम होने में देर नहीं लगेगी। अंत में सिर्फ एक बात! यदि भारत को बचाना है, यहां से भ्रष्टाचार को खत्म करना है, तो ईमानदार लोगों और युवाओं को आगे आकर राजनीति करना ही पड़ेगा।

जिनके सिने में समाज और देश के लिए दर्द है उन्हें सामाजिक और राजनीतिक नेतृत्व अपने हाथ में लेना ही होगा। वरना जिस कदर भ्रष्ट कॉरपोरेट, माफिया एवं भ्रष्ट ठेकेदार-नेता-अधिकारी की तिकड़ी व्यवस्था पर कुंडली मार चुके हैं, देश को बचाना नामुमकिन है।

नोट: YKA यूज़र राजन कुमार सिंह दिल्ली विश्वविद्यालय में पीएचडी (राजनीति शास्त्र विभाग) के छात्र हैं। इसके अलावा वो आम आदमी पार्टी, झारखंड के प्रदेश सचिव भी हैं।

Exit mobile version