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सेवा भाव का संदेश देती फिल्म है ‘डॉक्टर प्रकाश बाबा आमटे’

हम सभी रियल हीरोज़ अर्थात विजेताओं को पसंद करते हैं। यह लोग ही हमारे असल लीडर कहे जाने चाहिए। प्रकाश व मंदाकिनी आमटे एक ऐसे ही नाम हैं। यह दोनों हमारे सच्चे प्रेरणा स्रोत हैं। इन दोनों के जीवन पर बनी समृधि पोरे की ‘डॉक्टर प्रकाश बाबा आमटे’ देखी जानी चाहिए। आदिवासियों एवं मानवीयता के हित में जीवन मोड़ देने की प्रेरणादायक कहानी इस फिल्म का विषय बनी। प्रकाश व मंदा आमटे को सेल्युलाईड पर लाने का सराहनीय काम मराठी सिनेमा की ओर से आया।

फिल्म इंसानियत व सेवा भाव की राह में जीने के मायने समझने का अवसर देती है। एक ऐसा एहसास कि हमारी ज़िन्दगियों में ऐसे ही इंकलाब की ज़रूरत है, क्योंकि मिशन के लिए जीना स्वयं की खातिर जीने से बेहतर हुआ करता है। इंसानियत ज़िन्दगी का एक संवेदनात्मक पहलू है। जीवन को बहुआयामी परतों में देखने का नज़रिया हमें अपने प्रेरकों अथवा आदर्श लोगों से नज़दीकी संवाद का अवसर देता है।

फिल्म डॉक्टर प्रकाश बाबा आमटे का दृश्य। सोर्स- Youtube

संदेश मायने रखता है कि आदर्श व्यक्तियों की ज़िन्दगी सामान्य लोगों से बहुत अलग नहीं होती। फिर भी वो महान रास्ते तय करने वाले होते हैं। हमें भी उनके समान सकारात्मक कार्यों के लिए कदम उठाने चाहिए।

जीवनसाथी के साथ गुज़रा हर लम्हा खूबसूरत नज़रिए की चाह रखता है। समृधि ने हलके व गंभीर लम्हों से प्रकाश आमटे की कथा को आयाम दिया है। यादगार अवसर को उत्सव की तरह गांव वालों ने मनाया। बात पुरानी लेकिन महत्वपूर्ण यह कि गदचिरोली के घने जंगलों में जब रौशनी भी इजाज़त लेकर दाखिल हुआ करती थी, भय व अंधकार के उस ज़माने में नवविवाहित प्रकाश व मंदा आमटे ने जंगलों में जाकर काम करने का हौसला दिखाया। आदिवासियों के उत्थान को मिशन बनाया।

फिल्म डॉक्टर प्रकाश बाबा आमटे का दृश्य। सोर्स- Youtube

इस महान सेवा की इस मिसाल को अमेरिका में भी सराहा गया। आमटे परिवार के सेवा भाव सफर की मंजिलें अभी और भी थी। अबूझमाड़ पहाड़ों की वादियों में बसे हेमलक्सा में आमटे आज भी एक समर्पित जीवन बीता रहे हैं। आदिवासियों का जीवन संवारने की राह में नक्सलवादी ताकतें एक बाधा थी।

गुमराह करने की शक्तियों के बीच आदिवासियों की तरफ खड़े रहना एक कठिन निर्णय था। फ्लैशबैक में कथन से अतीत व वर्त्तमान के दरम्यान फासलों को संकलित किया गया, जो अंततः फिल्म को खूबसूरत बनाती है। इस गंभीरता की दूसरी ओर हेमलक्सा की नैसर्गिक भव्यता से आंखों को लुत्फ मिला है।

सत्तर के दशक के आरंभ में बाबा आमटे डंडाकारण्य व भाम्रगढ जंगलों की एक यात्रा में युवा प्रकाश को साथ ले गए। इन इलाकों में बसे आदिवासियों की बदतर हालात देखकर मन में एक मिशन का जज्बा बना। धरती के पूर्वजों के हित में एक योजना उसी संवेदना का परिणाम थी।

नौजवान प्रकाश बुजु़र्ग पिता के मिशन से भागीदारी की हद तक प्रभावित हुआ। पिता के साथ की यह यात्रा प्रकाश आमटे के जीवन में निर्णायक मोड़ साबित हुई। डॉक्टरी की शिक्षा लेने के बाद धन की बजाए समाजसेवा से नाता जोड़ा। विवाह उपरांत पत्नी मंदा के लिए एक मंज़िल इंतज़ार कर रही थी। कहानी को वास्तविक रखा गया है, व्यक्तित्वों पर आधारित फिल्में इसी मिजाज़ की होनी चाहिए। आमटे दम्पत्ति को घटनाओं व परिस्थितियों के उजाले में प्रेरक दिखाया गया है।

फिल्म डॉक्टर प्रकाश बाबा आमटे का दृश्य। सोर्स- Youtube

किसी के जीवन व कर्म पर आधारित कहानी में यथार्थ बातें होनी चाहिए। स्मृधि ने फिल्म में वास्त्विकता को महत्व दिया है। नाना पाटेकर व सोनाली कुलकर्णी ने शीर्षक किरदारों को बेहतरीन अंदाज़ में निभाया है। इसके लिए दोनों प्रशंसा के पात्र हैं।

नाना पाटेकर की आमटे परिवार से पुरानी जान पहचान रही है। साथ काम करने का अनुभव नाना व सोनाली को यहां काम आ गया। युवा प्रकाश को सुशांत एवं युवा मंदाकिनी को तेजश्री प्रधान ने आवश्यकता अनुसार अदा किया। आदिवासियों के दखल बिना फिल्म बन नहीं पाती, आधार वहीं था। यहां आदिवासी भीड़ नहीं बल्कि कलाकारों की तरह नज़र आए हैं।

आदिवासियों की नयी पौध गुमराह होने में पुलिस के रोल की व्याख्या फिल्म को अभिव्यक्ति का हौसला देती है। दिखाया गया कि प्रकाश आमटे को केवल आदिवासियों के गुमराह होने की चिंता नहीं रही। आप गुमराह नक्सलियों की  वापसी की भी बात करते हैं। प्रकाश जी द्वारा पदमश्री वापस कर देने का प्रसंग भी आप देखें।

प्रकाश आमटे के व्यक्तित्व में शोषण का विरोध था। आपने चिड़ियाघर के जीव जंतुओं पर शोषण का ज़ोरदार विरोध किया। मालूम हो कि पद्मश्री वन्यजीव के हित में आपकी सेवाओं का सम्मान था। समृधि पोरे की यह फिल्म कह रही है कि व्यक्तित्वों पर फिल्म बनाने में मराठी सिनेमा किसी से कम नहीं। यहां दादा साहेब फाल्के एवं बाल गंधर्व पर सफल फिल्में बनाई जा चुकी हैं। आदिवासियों तथा वन्य जीवों की सुरक्षा हित में चल रहे सराहनीय व प्रेरक कार्यों को प्रकाश में लाने के हिसाब से फिल्म ज़रूरी किस्त हैं।

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