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“उस 4 साल के बच्चे के भीख के पैसे दलाल ले जाता है”

आज शाम की चाय की वह चुस्की मैं शायद ही कभी भूल सकूं। शाम के 5 बजे थे, रोज़ की तरह आज सभी मित्र मिलकर चाय पीने के लिए अपने हॉस्टल से निकले और चाय की दुकान पर बैठकर अपनी चाय आने का इंतज़ार करने लगे। जो भी कुछ आज क्लास में हुआ उसके बारे में हम सभी आपस में बात कर रहे थे, जैसा कि सभी स्टूडेंट्स करते हैं।

उसी बात के दौरान एक बमुश्किल से 4 साल का बच्चा आया और कुछ देर तक हम सब उसकी छोटी और गहरी आंखों में झांकते रहें। उसकी मासूमियत को निहारते रहें, उसने हमारी तरफ देखकर अपने नन्हे हाथ हमारी ओर कर दिया और बोला भाई कुछ पैसे दे दो खाने के लिए।

हमने उस बच्चे को पैसे नहीं दिए लेकिन हमने उसे चाय देने के लिए जब हाथ बढ़ाया तो पीछे से एक लगभग 8 साल का बच्चा आया और उसका हाथ पकड़कर दूसरी और ले गया।

उसके बाद हम सब थोड़ी देर तक चाय का कप लिए बैठे रहें। हम सभी इसपर बात कर ही रहे थे कि उसने चाय ली नहीं या उसे लेने नहीं दी गई, तभी अचानक से वह बच्चा दोबारा से हमारे पास आ गया और उसने इस बार चाय मांगी। मैंने उसे चाय का कप पकड़ाया और पूछा कि बिस्किट खाओगे तो वह हमारी तरफ देखने लगा लेकिन उसने ना तो हां कहा और ना ही मना किया। इतने में मेरे साथ के एक लड़के ने उसे एक बिस्किट दे दिया ।

छोटा सा बच्चा उसे इस तरह जल्दी-जल्दी खाने लगा, जैसे उसे किसी बात की जल्दी हो। मैंने उसकी पीठ पर हाथ रखकर कहा, “बेटा आराम से खाओ जल्दी क्या है।” वह अपने खाने में ऐसे व्यस्त रहा जैसे उसने मेरी बात सुनकर अनसुना कर दिया हो।

उससे हमने पूछा यह बताओ कि तुम पढ़ने नहीं जाते हो, तब उसने कहा कि नहीं। उससे पूछा कि स्कूल जाने का मन नहीं होता कभी। इसपर उसने कहा कि बहुत होता है पर कोई भेजता नहीं है।

फिर मैंने पूछा अच्छा यह बाताओ कि तुम पैसों का करते क्या हो और तुम्हें यहां किसने भेजा है? तब उसका जवाब चौंकाने वाला था, उसने बताया.

सुबह घर पर फोन आता है, फिर मेरे पापा मुझे तैयार करके यहां तुम्हारे स्कूल के बाहर छोड़ देते हैं। यह जो लड़का आया था जो मुझे यहां से ले गया था यह सारा दिन मेरे साथ रहता है और जितने पैसे मुझे मिलते हैं यह लड़का अपने पास रख लेता है।

फिर एक ने दोबारा उस बच्चे से पूछा कि तुम इन पैसों का क्या होता है? उसने बोला,

यह पैसे हम घर पर दे देते हैं और फिर एक आदमी आकर वो पैसे ले जाता है। कुछ पैसे पापा को दे जाता है।

मैंने उससे पूछा तुम्हारे पापा क्या करते हैं? तब उसने बताया कि वह भी मेरी तरह पैसे मांगते हैं। हम उससे कुछ और पूछते कि इतने में पीछे से एक आवाज़ आयी और वह बच्चा उठकर चल दिया बगैर अपनी चाय का कप खाली किए। हमने उसे रोका और उससे वह चाय खत्म करने को कहा उसने चाय खत्म की तभी हमने उसे एक बिस्किट का पैकेट दिया उसने वह पैकेट लिया और वहां से चला गया।

वह बच्चा जाते-जाते बहुत से सवाल छोड़ गया, वह शख्स कौन है, जो इससे यह सब करवा रहा है? क्या सरकार हमने सिर्फ नाम बदलने और मंदिर बनाने के लिए बनाई थी? क्या प्रशासन अंधा हो गया है, जिसे यह नाबालिग बच्चे नहीं दिखते भीख मांगते हुए? क्या वह सिर्फ एंकाउंटर करने के लिए है? क्या मोदी जी के वे बड़े-बड़े वादें और सबका साथ सबका विकास ऐसे पूरे होंगे? क्या सरकार इसपर कोई एक्शन लेगी? ऐसे बहुत से सवाल हैं, जो मेरे दिमाग में पिछले 3-4 दिनों से घूम रहे हैं।

सरकार को इसपर ठोस कदम उठाने चाहिए। बहुत से बच्चे हमें दिख जाते हैं, कभी मंदिर के बाहर, कभी किसी कैंटीन में, स्टेशन पर, सड़कों पर, पुलिस थाने के बाहर ऐसे ही कई अन्य जगहों पर बच्चे भीख मांगते हुए दिखते हैं। फिर भी हमारी सरकार और प्रशासन कानों में रुई और आंखों पर पट्टी बांधकर सब देखती रहती है।

इन जैसे लाखों छोटे बच्चे भीख मांगते हुए अपना जीवन नष्ट कर लेते हैं। क्या इसके लिए सरकार ज़िम्मेदार नहीं है? क्या हम उसके लिए ज़िम्मेदार नहीं हैं? बिलकुल हम भी उतने ही ज़िम्मेदार हैं जितना की सरकार।

सिर्फ यह कह देना कि यह तो सरकार का काम है हमारा नहीं तो इससे काम नहीं चलने वाला। हमें इसके खिलाफ आवाज़ बुलंद करनी होगी, इतनी बुलंद की संसद में बैठे बहरे लोगों तक यह आवाज़ पहुंच सके। उन्हें पता चले कि सिर्फ नामकरण के लिए ही उन्हें सत्ता नहीं दी गयी है। बल्कि हो रहे दुराचारों को खत्म करने के लिए और चल रहे ऐसे गोरखधंधे को जड़ से खत्म करने के लिए उन्हें चुना गया है।

भारत में अपराधियों की बढ़ती लिस्ट का कारण यह भी है क्योंकि 4 साल का बच्चा जब भीख मांगेगा तो वो आगे चल कर ज़ुर्म की ही दुनिया को अपनाएगा। हमें ऐसा नहीं होने देना है, हमें इसके खिलाफ खड़े होना है और अपनी आवाज़ बुलंद करनी है। ताकि 4 साल का बच्चा सड़कों पर भीख मांगने की बजाए स्कूल में जाकर शिक्षा हासिल करे। पढ़ेगा इंडिया तभी तो बढ़ेगा इंडिया।

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