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क्या निज़ामुद्दीन दरगाह में महिलाओं को प्रवेश मिल पाएगा?

सबरीमाला मंदिर में जब महिलाओं के प्रवेश को मंज़ूरी मिली तब भी वह सुर्खियों में रहा। सुप्रीम कोर्ट के फैसले का कई संगठनों और लोगों ने समर्थन किया। महिलाओं के हक की बातें हुई फिर भी सबरीमाला मंदिर में महिलाएं प्रवेश नहीं कर पाईं, पूजा-अर्चना तो बहुत दूर की बात है। महिलाओं पर हमले हुए, विरोध हुए और महिलाओं को मंदिर परिसर में प्रवेश नहीं मिला। इससे एक बात तो स्पष्ट है, भले ही कोर्ट सुप्रीम फैसला सुना दे, महिलाओं के हक की बात करे, फिर भी  जो असर होना चाहिए, वह हो नहीं पाता।

हाजी अली में भी महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध था, जिसे महिलाओं ने मुंबई हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। इस पर कोर्ट ने कहा था, ‘हाजी अली दरगाह में महिलाओं के प्रवेश पर लगाया गया बैन भारत के संविधान की धारा 14, 15, 19 और 25 का उल्लंघन है’। इसके बाद से दरगाह में महिलाओं के प्रवेश पर लगी पाबंदी को हटा लिया गया।

क्या कहती है संविधान की ये धाराएं?

निज़ामुद्दीन औलिया की दरगाह में भी महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी है। हालांकि अन्य दरगाह और मज़ारों पर महिलाएं जाती हैं, इबादत करती हैं तो फिर किसी निश्चित स्थान पर, नियमों का हवाला देकर महिलाओं को उनके हक से दूर रखना, कहां का इंसाफ है? कई महिलाएं तो खुद ये मानती हैं कि ये नियम वर्षों से चले आ रहे हैं और इन नियमों में बदलाव करना गलत है।

कुछ स्थानों पर पुरुषों के प्रवेश पर भी पाबंदी है। वहीं कुछ महिलाएं मानती हैं कि ईश्वर की इबादत में कैसा फर्क? ये बस सोच का फर्क है। बख्तियार काकी की दरगाह के पीछे बीबी साहिब की मज़ार है, जहां मर्द क्या लड़के भी नहीं जा सकते। निज़ामुद्दीन औलिया की दरगाह का मामला अब कोर्ट के अधीन है। फैसला अब कोर्ट के हाथ में है कि वह सभी दलीलों को सुनने-समझने के बाद क्या फैसला सुनाता है। सबरीमाला मंदिर में अभी तक महिलाओं का प्रवेश नहीं हो पाया है। वहीं हाजी अली दरगाह में महिलाओं के प्रवेश पर लगी पाबंदी को हटा लिया गया है। अन्य मज़ारों और दरगाहों में भी महिलाएं फातिहा पढ़ती हैं।

धर्म, नियम और परंपराओं के नाम पर किसी के अधिकारों का हनन करना गलत है, सबको अपना हक मिलना चाहिए। लिंग के आधार पर भेदभाव करना गलत है। उम्मीद है महिला अधिकारों की जीत होगी और समाज भी इसे अपनाएग।

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