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“क्या कंप्यूटरों की निगरानी का फैसला निजता के अधिकार का हनन है?”

नरेन्द्र मोदी

नरेन्द्र मोदी

इस वक्त निजता के अधिकार की चर्चा ज़ोरों पर है जब से गृह मंत्रालय ने आदेश जारी कर यह साफ कर दिया है कि देश की 10 प्रमुख संस्थाएं अब किसी भी कंप्यूटर को हैक कर जासूसी कर सकती है। इससे पहले आधार की सख्ती को लेकर भी इस तरह की बातें हो रही थीं। कोर्ट के फैसले के बाद आधार पर तो विवाद खत्म हो गया है लेकिन इस बार विवादों की वजह से मोदी सरकार और गृह मंत्रालय सवालों के घेरे में है।

दरअसल, पूरा विवाद 20 दिसंबर 2018 के गृह मंत्रालय के एक आदेश को लेकर हो रहा है जिसके तहत देश की 10 संस्थाओं को देश के किसी भी कंप्यूटर पर नज़र रखने और जानकारी इकट्ठा करने की अनुमति भारत सरकार ने दी है।

आपको बता दें उन 10 संस्थाओं में इंटेलिजेंस ब्यूरो, नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो, एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट, सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेस, डायरेक्टरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलिजेंस, सीबीआई, एनआईए, केबिनेट सेक्रेटेरिएट, डायरेक्टर ऑफ सिग्नल इंटेलिजेंस और दिल्ली के कमिश्नर ऑफ पुलिस शामिल हैं।

सरकार का कहना है कि कानून पहले से ही था लेकिन हमने फिर से आदेश जारी किए हैं। सरकार शायद यह भूल रही है कि पहले सिर्फ फोन और ईमेल पर नज़र रखी जाती थी और अब नए आदेश के तहत पूरा कंप्यूटर जांच के दाएरे में आ गया है।

इस फैसले के समर्थन में राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा आगे किया जा रहा है लेकिन पूरी तरह से यह बात सच नहीं है क्योंकि इससे पहले भी संदिग्ध लोगों पर नज़र रखने के लिए गृह मंत्रालय जांच एजेंसियों को फोन टैपिंग की अनुमति देता था। जांच एजेंसियों को राज्य के पुलिस के साथ मिलकर काम करना पड़ता था।

राहुल गाँधी। फोटो साभार: Getty Images

इस मुद्दे पर मोदी सरकार को घेरते हुए विपक्ष ने कहा कि घर-घर मोदी से अब घर-घर जासूसी हो गया है। कुछ लोग यह कहते नज़र आ रहे हैं कि आपने कुछ गलत नहीं किया तो दिखाने में क्या तकलीफ है। उनसे मैं यही कहना चाहूंगा कि बाथरूम में भी तो आप सिर्फ स्नान ही कर रहे होते हैं फिर दरवाज़ा क्यों लगाते हैं?

इस मामले को समझने के बाद यह आशंका बढ़ जाती है कि यह फैसला निजता के अधिकारों के हनन के संदर्भ में लिया गया है। सोचिए अगर कोई आपका फोन रिकॉर्ड कर रहा है, ईमेल पर नज़र रख रहा है या गूगल सर्च लिस्ट देख रहा है, ऐसे में अगर आप सरकार विरोधी काम कर रहे होंगे तब भी तो मुश्किलें हैं।

सरकार एक साथ करोड़ों मोबाइल फोन, लैपटॉप, कंप्यूटर या ईमेल अकाउंट्स पर नज़र नहीं रख सकती है लेकिन डर का माहौल फिर भी बरकरार रहेगा। यह फैसला सत्ता पक्ष के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है क्योंकि चुनाव बहुत नज़दीक है। लोगों की निजी ज़िन्दगी में सरकार का दखल देना सामाजिक स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं रहेगा, यह बात सरकार ध्यान में रखे।

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