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“ट्रेन में 55 रुपये का खाना 155 रुपये में बेचे जाने के विरोध में मेरे ट्वीट का असर”

भारतीय सामाजिक जीवन की गतिशीलता में भारतीय रेल ने वह महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है जो कभी देश के पहले छापेखाने के स्थापित होने के बाद अचानक से देखने को मिली थी।

आज एशिया में दूसरा और पूरे विश्व में चौथा स्थान रखने वाला भारतीय रेलवे, कमोबेश 1.54 मिलियन लोगों को रोज़गार देता है। इस तरह की कितनी ही उपलब्धियों और यादगार सफरों के साथ भारतीय रेलवे हमारे समाज में यातायात का वह हिस्सा है, जिससे शायद ही कोई आम भारतीय महरूम हो (रेलयात्रा में कुछ अपवाद भी हो सकते हैं, क्योंकि खुद मेरे ही कितने दोस्त हैं, जिन्होंने रेल यात्रा नहीं की है)।

रेलयात्रा के मामले में हर एक व्यक्ति के पास कितने ही दास्तान होते हैं, जो वक्त-बेवक्त दास्तानगोही (किस्से-कहानियां) की शक्ल में सुनी भी जाती होगी। महात्मा गांधी का रेलयात्रा का वह किस्सा जिसमें फर्स्ट क्लास बॉगी का टिकट होने के बाद भी सामान के साथ उन्हें बाहर फेंक दिया गया था, यह घटना यह बताती है कि अधिकारों को दबाए जाने पर आपत्ति ज़रूर दर्ज करनी चाहिए उसका परिणाम चाहे कुछ भी हो।

मौजूदा दौर में रेल यात्रा के लिए टिकट बुक करने से यात्रा समाप्त करने तक तमाम चरणों में हर स्तर पर इतनी अधिक मुनाफाखोरी है कि भारतीय रेलवे भ्रष्टाचार में आकंठ तक डूबी हुई है और इससे उबरने का किसी के पास कोई रास्ता नहीं दिख रहा है।

पूरी व्यवस्था को इस कदर कमज़ोर कर दिया जा रहा है कि अंत में भारतीय रेलवे के निजीकरण के अतिरिक्त्त और कोई विकल्प ही नहीं बचे दिखते हैं। मसलन, वरिष्ठ नागरिकों को लोअर बर्थ के साथ शुल्क में रियायत है (यह एसी बॉगी के लिए भी लागू होता है) परंतु वरिष्ठ नागरिक के साथ सफर करने वाले व्यक्ति को टिकट उपलब्ध नहीं हो सकती है क्योंकि उसका विकल्प ही नहीं मौजूद है।

ज़ाहिर है वरिष्ठ नागरिक के साथ भारतीय रेलवे का व्यवहार केवल उपभोगता आधारित बनता जा रहा है जबकि इसको जनता आधारित करने की अधिक ज़रूरत है क्योंकि रेलवे में सफर करने वाले व्यक्तियों में वरिष्ठ नागरिकों की सख्यां काफी अधिक है।

फोटो प्रतीकात्मक है। सोर्स- Getty

हाल ही में रेलयात्रा के दौरान एक अनुभव यह रहा कि रेल सफर में पानी की बोतल का दाम 20 रुपया लिया जा रहा था जबकि आईआरसीटी ने पानी की बोलत का दाम 15 रुपया ही तय किया है। इसी तरह नॉन-वेज खाने का दाम 155 रुपया बताया गया जबकि आईआरसीटी ने 55 रुपया ही तय किया है।

आईआरसीटी फूड मेन्यू मंगाने के बाद जब मैंने शिकायत आईआरसीटी के ट्विटर अकांउट पर दर्ज की तो कुछ देर बाद कैंटिन मैनेजर मुझसे मिलने आएं और उन्होंने कहा, “दाम तो आईआरसीटी ने तय कर दी है पर लोगों को देने में परेशानी नहीं है इसलिए कैंटीन के वेंडर मनमानी करते हैं। जो दाम तय है आप वही दें।”

उन्होंने वेंडर से पानी के पैसे भी लौटाए और खाना भी उसी दाम पर उपलब्ध कराया जो आईआरसीटी ने तय कर रखा है। मेरी शिकायत दर्ज करने से मेरे साथ सफर करने वाले सहयात्रियों को भी इसका फायदा हुआ जो वेशभूषा से शिक्षित तो ज़रूर दिख रहे थे पर अपने अधिकार और कर्तव्य के लिए सजग नागरिक तो नहीं ही दिख रहे थे। उनके लिए बतौर नागरिक सिर्फ वोट देना ही उनका कर्तव्य है और कुछ भी नहीं।

बहरहाल, एक-दो घंटे के बाद ट्रेन की मेस से एक स्टाफ मेरे बर्थ तक आया और उसने अनुरोध किया, “सर, प्लीज ट्वीट डिलीट कर दें, ऊपर से बहुत फोन आ रहा है, नहीं तो उसकी कंपनी को फाइन चार्ज होगा।” मैंने ट्वीट डिलीट तो नहीं किया पर समस्या के समाधान होने की बात ज़रूर लिख दी, फिर भी वह काफी देर तक अनुरोध करता रहा।

मौजूदा घटना रेलवे सफर में खाना-पानी सर्व करने वाली कंपनियों की लूट का उदाहरण है, जो रेल सफर में जनता से पैसा भी लूटती है और तयशुदा वेतन भी पाती है। उनके वेतन और श्रम के घंटे एक अलग से बहस का विषय ज़रूर बन सकती है।

यह इस तरह की लूट है जिसपर नियंत्रण के लिए रेल मंत्रालय कभी सीरियस नहीं रहा है और इसका खमियाज़ा यात्री को कभी अपनी जेब से तो कभी अपनी सेहत को दांव पर लगाकर भुगतना पड़ता है।

इसी सफर में दूसरी घटना यह रही कि मुझे सिगरेट पीने की इच्छा हुई और अपने डिब्बे के दरवाज़े की तरफ गया तो बोर्ड लगा देखा कि सिगरेट पीने पर 200 रुपये का जु़र्माना लग सकता है। हाथ कंगन को आरसी क्या, पढ़े-लिखे को फारसी क्या? मैंने मोबाइल पर गूगल से यह सवाल पूछा How much is the fine for smoking in train?

जवाब मिला-

Not with standing anything contained in subsection (1), A Railway administration may prohibit smoking in any train or part of a train. Whosoever contravenes the provisions of sub section (1) or sub-section (2) shall be punishable with fine which may extend to one hundred Rupees.

मतलब आप अगर सिगरेट पीते पकड़े जाते हैं तो आपको 100 रुपए का फाइन देना पड़ेगा। फिर मैंने तय किया कि अपराध का ज़ुर्माना दे दूंगा पर फिलहाल एक सिगरेट पीता हूं। गाड़ी की गेट पर खड़े होकर सिगरेट जलाई और तीन चार पफ के बाद आरपीएफ के एक जवान ने टोका गेट बंद करके बाजू आ जाएं। मैंने दो तीन पफ और लिया और गेट बंदकर उन जनाब से मुखातिब हुआ।

आरपीएफ के जवान ने अपनी आईडी दिखाई और आठ सौ रुपया फाइन मांगने लगा। मैंने कहा “किस खुशी में, कहा लिखा है कितना फाइन होगा और किस-किस सेक्शन में।” अब आरपीएफ वाला जवान थोड़ा अधिक सख्ती दिखाते हुए बोला दिखाऊ तुझे कानून।

मैंने अराम से कहा, “आप नहीं दिखा सकते हैं, मैं दिखाता हूं” और गूगल का जवाब दिखाया। इस बहस में तब तक कुछ लोग जमा हो चुके थे कुछ सिगरेट के तलबदार भी थे और कुछ कौतुगवश देखने वाले कि माज़रा क्या है?

मैंने फिर कहा-मैं सौ रुपया भी फाइन तभी दूंगा जब फाइन की रसीद मिलेगी मुहर के साथ और आपका हस्ताक्षर मुझे बैच नम्बर के साथ चाहिए। आरपीएफ का जवान मामला खराब होते देख, वहां से निकल गया।

मैं सफर खत्म होने तक यही सोचता रहा कि मेरे ही विरोध या आपत्ति दर्ज करने से क्या हो जाएगा? कल फिर कैंटीन का कर्मचारी और आरपीएफ का जवान इसी तरह लोगों को बेवकूफ बनाते रहेंगे। लोग बनते रहेंगे और सरकारों पर अपनी तल्खी उतारते रहेंगे। अपनी नागरिक धर्म की ज़िम्मेदारियों से कंधे झटकटे हुए।

सफर खत्म होने के करीब था तो आस-पास के लोगों ने धन्यवाद दिया और कहा कि आपने रात में कैंटीन के कर्मचारी की शिकायत के बारे में जो जानकारी साझा की उसके बारे में हम अब रेल सफर में सर्तक रहेंगे और लोगों को भी इसके बारे में ज़रूर बताएंगे।

मौजूदा दौर में यह बहुत अधिक ज़रूरी है कि बतौर देश के नागरिक या शिक्षित नागरिक हम अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति अधिक सजग हो। क्योंकि हर एक नागरिक का अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक होना समाज और सामाजिक संस्थान के लोगों को गैर-ज़िम्मेदार होने से रोक सकता है। साथ ही देश कोई भी सरकार और सरकारी कानूनों या नीतियों से नहीं वहां रहने वाले नागरिकों से बनता है।

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