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2019 राहुल गांधी या मोदी का नहीं किसानों और युवाओं के भविष्य का चुनाव है

पांच राज्यों के चुनावी परिणाम आते ही, एक बार फिर से लोकतंत्र के तथाकथित चौथे स्तंभ ने इसे व्यक्ति प्रमुख का राजनीतिक कौशल बताना शुरू कर दिया है। सोशल मीडिया पर मीम वायरल हो रहा है “पप्पू पास हो गया”। ज़ाहिर है मीडिया व्यक्तित्व के चंदरबरदाई गायन में मूल मुद्दों को फिर से भटकाने की कोशिश हो रही है।

ज़रूरत इस बात की है कि तमाम नेता चाहे वह किसी भी पार्टी के हो या तमाम मीडिया चैनल मुख्य मुद्दे पर वापस आएं, क्योंकि वास्तविक मुद्दा किसानों को उनकी फसल का उचित दाम देना है। किसानों और युवाओं की नाराज़गी ही है, जिसने सत्ताधारी दल को ज़मीनदोख करने में असल भूमिका निभाई है।

राहुल गांधी कठोर आलोचना, उपहास, सोशल मीडिया पर निरंतर ट्रोलिंग और नेतृत्व के गुणों के ना होने के कारण अपमान बर्दाश्त करते रहे हैं। उनके सामने नरेंद्र मोदी जैसे आत्मनिर्भर, चतुर, कठिन संघर्ष करने वाले मोदी का व्यक्तित्व है जिसके खिलाफ राहुल गांधी ने अपनी आक्रामक छवि को गढ़ने के लिए नरेन्द्र मोदी की शैली का अनुसरण किया है, जिसके कारण वह श्रोताओं से सीधा संवाद कायम करने में कामयाब हो रहे हैं।

चुनावी संदेश देश के किसानों और युवाओं के रोज़गार के सवालों पर होना चाहिए, क्योंकि मौजूदा वक्त में देश में किसानों और युवाओं की बेरोज़गारी की समस्या पार्टियों के व्यक्तित्व से छोटी नज़र आती है।

पांचों राज्यों का जनादेश यही बता रहा है कि आमदनी और नौकरी जैसे सवालों ने अन्य सारे इमोशनल सवाल को किनारे कर दिया है। किसानों की नाराज़गी वास्तव में कई मुद्दों पर है, अपनी उपज का वाजिब दाम नहीं मिल रहा है, लागत बढ़ने के कारण फसलों की बिक्री के बाद भी उनके हाथ खाली रहते हैं।

यह तंगी अब जातिगत मुद्दे का रूप ले रही है, जैसे मराठा अब आरक्षण की मांग कर रहे हैं, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, गुजरात में भी आरक्षण के पक्ष में माहौल बनते-बिगड़ते देखे गए हैं। नौकरियों का अभाव और अर्थव्यवस्था का कछुआ चाल अगर यही बना रहा तो भविष्य में इस तरह के कई विरोध प्रदर्शन देखने को मिलेंगे।

किसानों और युवाओं की समस्या मौजूदा वक्त में देश के लिए स्थानीय नहीं हैं, बल्कि राष्ट्रीय मुद्दा है। 2019 के लोकसभा चुनावों में भी इन दोनों मुद्दों को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता है इसलिए चुनाव जीतने के बाद किसानों की कर्ज़ माफी के बयान को जोड़-तोड़कर वायरल किया जा रहा है कि राहुल गांधी किसानों की कर्ज़ माफी के वादे से मुकर चुके हैं।

इसके पहले 2008 में भी कॉंग्रेस ने किसानों के 65,000 करोड़ रुपये से कर्ज़ माफ किए थे, जिसका फायदा उनको 2009 के आम चुनाव में देखने को मिला था, मगर आज फिर किसान कर्ज़ के जाल में फंस चुका है। ज़ाहिर है कर्ज़ माफी केवल किसानों की समस्या का समाधान नहीं है। इसकी चर्चा कई अर्थशास्त्री और कृषि चिंतक भी कर चुके हैं, जिसको राहुल गांधी चुनाव के परिणाम आने के बाद प्रेस कॉन्फ्रेस में बता रहे थे।

यह सही है कि चुनावी नतीजों के बाद राहुल गांधी का कद बहुत बढ़ गया है, वह अचानक से सुर्खियों में आ भी गए हैं परंतु, चर्चा इस बात पर होनी चाहिए कि कॉंग्रेस के बाद किसानों और युवाओं के लिए रोड मैप क्या है?

देश में एक समान आर्थिक विकास की संकल्पना साकार करने के लिए कॉंग्रेस के पास कौन-सा आर्थिक चिंतन है? इसका आधार उनको बताने के लिए उनसे सवाल पूछे जाने चाहिए। व्यक्तित्व की राजनीति में उलझकर इन सवालों का जवाब नहीं खोजा जा सकता है क्योंकि खेती, किसानी और युवाओं के रोज़गार के सवाल केवल 2019 के आम चुनाव से ही नहीं देश के भविष्य से जुड़े विषय हैं।

तमाम दलों के नेताओं को इन पांच चुनावों के नतीजों से यह समझना चाहिए कि चुनाव राहुल गांधी और नरेन्द्र मोदी का नहीं किसानों और युवाओं के भविष्य का चुनाव है और उन्होंने यह बात चुनावों के परिणाम में संदेश देकर समझा दिया है।

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